2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले तक आते आते हमारी दुनिया में बहुत कुछ जो ढँका छिपा सा लग सकता था, और ज़ाहिर हुआ। पूँजी के काम करने के तरीके में कोई बदलाव तो नहीं आया पर पूँजी ने अपने आवरण उतार दिए हैं और अब वह अपनी कुरूपता के उल्लास को बहुत खुल कर ज़ाहिर कर रही है, अब इसके लिए किसी को यक़ीन दिलाने की ज़रूरत नहीं है। आने वाला समय पूँजी की सत्ता के आम जन में विधिमान्यकरण (legitimization) का समय है और शोषण के लिए बाइनेरी निर्माण की जगह, वैचारिक स्तर पर पूँजीवाद की सार्वभौमिकता और अपरिहार्यता को स्थापित करने की कोशिश करेगा। जब उत्तरआधुनिकता ने सलीके से सांस्कृतिक और राजनीतिक तरीक़ों से हमारी दुनिया के प्रमुख प्रश्नों को मान्यता दी, उसने यह भी स्थापित करने की कोशिश की कि पूँजीवाद ही वह इकलौता great system है जिसके अनुरूप समाज की कल्पना सम्भव है। यह मान लेना चाहिए कि इसमें उसे सफलता मिली है और हर उस विचार को पूँजीवाद के इस हथियार ने हराया जिसने इससे बाहर जाकर दुनिया की कोई आदर्श कल्पना करने की कोशिश की।इसका समर्थन चीन-अमेरिका सम्बन्धों की वर्तमान स्थिति भी करती है और यही वजह है कि लातिन अमेरिका में जिसे return of the left कहा जा रहा है उसको भी skeptically देखने पर मजबूर करती है। भारत की स्थितियाँ बहुत अलग नहीं हैं और बाज़ार का प्रतिरोध करने के लिए कुछ नहीं दिख रहा।
एक ऐसा समय आ गया है कि दुनिया की जनसंख्या आठ ख़रब से ज़्यादा है और दुनिया भर में ऐसी पीढ़ी अभी अपने उत्स पर है जिसका अधिकांश सिर्फ़ खुला बाज़ार जानता है और मानता है। उसके संदर्भ, उत्तर और engagement उसी घेरे में निर्मित और फलीभूत होते हैं जिसकी चेतना पूँजीवाद ने उनके सामने प्रस्तुत की है। दूसरे शब्दों में, अन्य के शोषण की स्मृति पर हमला कर और उसे मान्यता देने का काम अब आगे होगा।यहाँ से चिन्ताएँ शुरू होती हैं और कार्ययोजना कैसी हो इसपर सोचना भी।मुझे लगता है प्रतिरोध की संस्कृति को जिस सबसे बड़े प्रश्न से जूझना है, नए साल में प्रवेश करते हुए, वह यही है।पिछले एक बरस में इंद्रधनुष लगातार इन्हीं संदर्भों के आसपास काम करता रहा है। संस्कृति निर्माण और स्मृति की राजनीति में उसका यही मत रहा है। आगे भी यही सोचना होगा और इसी की पड़ताल। इस प्रश्न के आसपास विचार गोष्ठियाँ हों और लेखकों को इन्हीं संदर्भों के आसपास सामूहिकता से पढ़ा जा सके इसकी कोशिश भी टीम के तौर पर हम करेंगे।
2022 में गोदार नहीं रहे। उनकी आख़िरी स्मृति जो दिमाग में उभरती है वह एक टिपिकल गोदार इमेज है जैसे उनकी किसी फ़िल्म से ही बाहर आयी हो। वे केरल की किसी फ़िल्म सॉसायटी के एक ऑनलाइन कार्यक्रम में बोल रहे थे और उनको सीधे सुन पाना एक अद्भुत अनुभव था। गोदार पर बहुत पढ़ा लिखा गया है लेकिन एक पंक्ति में कहा जाए तो उन्होंने तकनीक को प्रतिरोध के एक सफल तरीके में बदला। यह उनसे सीखना होगा। farewell our auteur!
अंचित