कविता : मुहम्मद अल-माग़ूत
अनुवाद एवं प्रस्तुति : विष्णु पाठक

कवि परिचय: मुहम्मद अल-माग़ूत (Muhammad al-Maghout, 1934–2006)। वे कभी स्कूल नहीं गए, कभी कविता नहीं सीखी— फिर भी उन्होंने कविता को बदल दिया। सीरिया के एक छोटे से कस्बे सलमियाह में जन्मे अल-माग़ूत नाज़ुक बचपन और तंगहाली के दिनों से निकले थे पर उनके पास थी एक क़लम जो झोपड़ियों से लेकर जेलों तक की आवाज़ बन गई। वे पहले अरबी कवि थे जिन्होंने बिना तुकांत, बिना अनुमति, बिना भय लिखना शुरू किया। उनकी हर कविता, जैसे किसी भूखे प्रेमी की अंतिम पुकार — जिसे कुछ नहीं मिला, लेकिन जिसने सब देख लिया। यह कविता, “फ़ुटपाथ की नींद”, उसी चीख़ की गूँज है। कभी उन्होंने कहा था: मैं जब कविता लिखता हूँ, तो वह कविता नहीं होतीवह चीख़ होती है।उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं, “सेडनेस इन द मूनलाइट”, ए रूम विथ ए मिलियन वॉल्स, जॉय इस नॉट माय प्रोफेशन, द बर्निंग ऑफ़ वर्ड्स, आई विल बेट्रे माय होमलैंड। 

फुटपाथ की नींद 

दुनिया के सारे खेत—
उलझे हैं दो होठों की खामोशी से।

इतिहास की सारी गलियाँ—
उलझी हैं दो नंगे पाँवों की धूल में।

प्रिये,
वे चले जाते हैं— और हम रह जाते हैं ताकते।

उनके पास हैं फाँसी के फंदे,
और हमारे पास गरदन।

उनके पास हैं मोती 
हमारे पास बस तिल और झाइयाँ।

रात, सवेरे, दिन, दोपहर—
उनके हिस्से हैं।
और हमारे हिस्से— बस चमड़ी और हड्डियाँ।

हम रोपते हैं दुपहरिया की धूप में,
वो खाते हैं छाँह में बैठ के।

उनके दाँत— भात जैसे सफ़ेद,
और हमारे— जले जंगल से काले।

उनकी छातियाँ— रेशम जैसी मुलायम,
हमारी— फाँसी की चौखट-सी गँदली।

लेकिन फिर भी— ये दुनिया हमारे हिस्से है।

उनके घर— क़र्ज़ और हिसाब से दबे हैं।
और हमारे— पतझड़ की पत्तियों से ढँके।

उनकी जेबों में हैं निशान— चोर और ग़द्दारों के।
और हमारी जेबों में— नदियों और तूफ़ानों के।

उनके पास हैं खिड़कियाँ,
हमारे साथ हैं हवाएँ।

उनके पास हैं जहाज़,
हमारे साथ हैं लहरें।

उनके सीने पर टँगे हैं तमग़े,
हमारे हाथ मिट्टी से सने हैं।

उनके नाम हैं दीवारें और छज्जे,
और हमने थाम ली हैं रस्सियाँ और खंजर।

आओ, प्रिये—
फ़ुटपाथ पर ही सो जाएँ।


विष्णु पाठक कवि एवं अनुवादक हैं। वे बैंगलोर में रहते हैं। उनसे और परिचय एवं इंद्रधनुष पर उनके पूर्व प्रकाशित कार्यों के लिए यहाँ देखें : तुम्हारे बदन को आती हैं सभी भाषाएँ | लोकगीतों को आती है सभ्यता की भाषा | बरसात के इंतज़ार में खड़ी नावों पर 

Categorized in: