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महावन मे जीवित छी हमसभ!

राजकमल चौधरीक किछु मैथिली कविता :: हम कविता लिखइ छी, सदत अपना हेतु मात्र अपनेटा हेतु… अहिपन अहिपन मे नहि लिखू फूल पात-लता-चक्र हे स्वप्न-संभवा कामिनी, आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार! जखन पूर्णिमेक साँझ मे चन्द्रमा भ’ गेल छथि पीयर आ बक्र आब नहि फोलि क’ राखू अप्पन मोनक दुआर! हे स्वप्न-संभवा कामिनी, आब एहि घर-आङन मे अनागतक प्रतीक्षा जुनि करू, जुनि करू… अहिपनक फूल-पात-लता बनि जायत गहुमन...

जब छाँव मिलल दुपहरिया में, आ सूरज गोल भिनसहरे

गद्य :: उत्कर्ष गाँव डायरी : जब छाँव मिलल दुपहरिया में, आ सूरज गोल भिनसहरे का हाल बा? सब ठीक बा न? आशा बा, रउआ सब कुशल-मंगल से होखब आ हंसत-मुस्कात जीवन के पावल-छूटल में लागल होखब. रउआ सब सोचत होखब कि ई डायरी शीर्षक के आलेख, चिट्ठी-पत्री के रूप में कान्हे आरम्भ होता. ई कान्हे से कि लेखक के आप-सबे से सीधा-संवाद करे के मन कइल. एहि से. खैर, बात ई बा कि कटिया होई गइल बा. शहर से दूर आजकल हम आपन साईकिल...

रेल के जनमाई

भोजपुरी कहानी :: तुषार कान्त उपाध्याय ई गाड़ी कुल्हि कतना देर हो जईहन स कहल नईखे जा सकत…अब त कुहो के दिन खतम हो गईल…ऊहो सात घंटा देरी से…कमल झुझुवात अपना बगल के अनजान जातरी से बरबरात कहत रहले. गाँव से भोर होखे से पहिले तीन किलोमीटर पैदल आ फेर पसिंजर से सवा सई किलोमीटर दूर एह जंक्शन पर पहुचल रहले जहाँ से सीधे गाड़ी कोझिकोड जाये खातिर मिले के रहे. पंद्रह दिन के छुट्टी मना के. स्टेशन...

फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल : हरेकृष्ण झा

मैथिली कविता:: हरेकृष्ण झा फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल फार सँ छिटकैत अछि कनखा इजोतक, भक टूटि जाइत अछि. सोझाँ अबैत अछि अर्घासनक कोहा चर्बी सँ उमसाम, एकटा कुंजी चकरी मारने बीचोबीच. बामा हाथ रखैत छी हरीस पर हरबाहक बाम हाथक संग, दहिना हाथ सँ धरैत छी लागनि, ताव लैत छी खपटी पेट सँ, मारैत छी जोर हरक नास पर ठीकोठीक कुंजीक सीक मे. फार सँ छिटकत आब बेलीक फूल हरबाहक माथ पर हट्ठा सँ घुरैत काल, पिजा गेल अछि...

हम नहि त्यागब अपना ‘हम’केँ

मैथिली कविता :: अनुराग मिश्र टोकन बैंक मे पाइ भेटबा सँ पहिने भेटैत छैक टोकन जकरा जेबी मे राखि, लोक परतारैत अछि मोन केँ एहि अजस्त्र हेंज मे छी हमहूँ एकटा प्रत्याशी ओहि टोकन केँ देखि-देखि मनुक्ख घोरैत अछि आशाक नेबाड बनबैत अछि भविष्यक मारिते रास चित्र रोपैत अछि नेहक गाछ सजबैत अछि सुखक बंदनवार अहाँ हमर ओहने ‘टोकन’ तँ छी. स्मृतिलोप सोचैत छी कखनहुँ-काल जे हारल मनुक्खक लेल कतेक सुखद होइत छैक...

पाँच पत्र : हरिमोहन झा

मैथिली कथा :: पाँच पत्र : हरिमोहन झा (१) दड़िभंगा १-१-१९ प्रियतमे अहाँक लिखल चारि पाँती चारि सएबेर पढ़लहुँ तथापि तृप्ति नहि भेल. आचार्यक परीक्षा समीप अछि किन्तु ग्रन्थ मे कनेको चित्त नहि लगैत अछि. सदिखन अहीँक मोहिनी मूर्ति आँखि मे नचैत रहैत अछि. राधा रानी मन होइत अछि जे अहाँक ग्राम वृन्दावन बनि जाइत, जाहि मे केवल अहाँ आ हम राधा-कृष्ण जकाँ अनन्त काल धरि विहार करैत रहितहुँ. परन्तु हमरा ओ अहाँक बीच...

अच्छा दिन केने बा ?

कुछ भोजपुरी कविता :: संतोष पटेल अच्छा दिन केने बा ? अच्छा दिन केने बा ? केहू देस में खोज के निकालत बा केहू विदेस में खोजत बा इहे का कम बा ? जे सभे अच्छा दिने के सपना में भुलाइल बा बउराइल बा बाकिर ‘उ’ पेट्रोल पम्प में लुकाइल बा कि तरकारी के टोकरी में मुरकीआइल बा कि दाल के बोरा से दबाइल बा त मिलो कहाँ से आम लोगन के अंगना में हिलो कहाँ से ? अच्छा दिन ! इ त आइले बा नेता जी के परिधान में...

उदासी जन्म दैत अछि सब सँ आत्मीय कविता

किछु मैथिली कविता :: शारदा झा यात्रा हम की द’ सकैत छियह तोरा रोटी, कपड़ा, मकान, आस, विश्वास? भ’ सकैत अछि ई सबटा मात्र बोल होअह तोरा लेल ढनढनाइत खाली फोकला शब्दक अमार मुदा जखन हम दैत छियह तोरा अपन संवेदनाक स्पर्श आत्मा सँ झहरैत प्रेम हम नहि दैत छियह किछुओ तोरा हम ताकि रहल होइत छी तखन अपन असोथकित विश्वास आ अस्तित्व केँ ओकर ध्येय, उद्देश्य, उपयोगिता आ मर्म केँ हम निर्वाह करैत छी मनुख...