डग्लस डन की कविता ::

अनुवाद : अंचित

ग्लस डन स्कॉटलैंड के प्रसिद्ध और बड़े कवियों में से हैं. उनके दस कविता संग्रह और रेसीन के अनुवाद ‘ऐंड्रामकी’ की ख़ूब चर्चा होती है. 1984 में उनकी पत्नी की कैन्सर से मृत्यु के बाद, 1985 में आए उनके कविता संग्रह “एलेजीज़” ने अपनी उदास और सुंदर प्रेम कविताओं से दुनिया भर में उन्हें चर्चा दिलाई. प्रस्तुत कविता भी उसी संग्रह से ली गयी है.

दिसम्बर 

“नहीं, अपनी उदास कविता लिखना बंद मत करो.
यह तुम्हें फ़ायदा पहुँचाएगा,ये तुम्हारी उदासी का काम.
तब तक लिखो जब तक सब ख़त्म ना हो जाए.
यह समय लेगा, और साल बीतते जाएँगे.

हमारी, एक शांत पीढ़ी थी, प्रशांत,
रेस्तराँओं, कला, और संगीत से प्रेममग्न,
और वह,उसके साथ, टहलता हुआ,तस्वीरों के आसपास,
और वह लड़की भी उसके साथ, कान्सर्ट्स में, अपनी गोदों में कोट रखे हुए.

हम सब शर्मीले थे, अपने जवानी के दिनों में.
हमारा कोई दोस्त कभी किसी युद्ध में नहीं गया था.
कितने सारे फ़ोन नम्बर, कितने रटे हुए पते;
कितना कुछ याद करने को.

लाल सूरज एक काले पेड़ से टँगा है,एक गीला फूटा हुआ शून्य,
चूता हुआ पेड़ों में,
धरती की तरफ़ से ऊपर की ओर एक प्रार्थना, लकड़ी और रौशनी में,
आसमान में, और धरती और पानी के रूप में.

ये चिड़ियों के गीत की ध्वनियाँ किसी और दुनिया से आती हैं; गूँजती हवा में
छोटी घंटियों के जैसे.
बीत जाते हैं जल्दी, हमारे चमकते हुए रूप –
उतने सुंदर जैसे गर्मियाँ-  और होने से प्रेम करने वाले.

वास्तविकता,तुम मुझे याद हो उसी तरह,जैसे उसके सुबह के कोमल चुम्बन.
तुम मेरे पास उसकी उपस्थिति थी.

लाल सूरज अपनी पिघली हुई गोधुलि टपकाता है.गीली आग ख़ाली बाग़ों को समेट लेती है,
ये बाग़ ठंडी नींदों वाले शहर के,
मैं इनमें उलझा हुआ हूँ.

यह दिसम्बर है. शहर भी मेरे शोक का हिस्सा है और
मैं भी, उसका हिस्सा, जिसके लिए यह शोक करता है.

ये किसके आँसू हैं, जो जमा हो रहे हैं पारदर्शी प्लास्टिक पर.

[अनुवाद : अंचित,
अंचित कवि हैं और इंद्रधनुष के प्रधान सम्पादक.
उनसे  anchitthepoet@gmail.com पर बात हो सकती है.]

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