कविता ::
वायलिनें : महमूद दरवेश
अनुवाद : अंचित
महमूद दरवेश किसी परिचय के मोहताज नहीं है. हिंदी में उनकी कई कविताएँ पहले ही अनूदित हैं. एड्वर्ड सईद पर लिखी उनकी लम्बी कविता जलसा में छपी थी. समय समय पर अन्य अनुवादक भी उनकी कविताओं का अनुवाद करते रहे हैं. फ़िलिस्तीनी कविताओं पर काम करते हुए, रामकृष्ण पांडेय ने भी उनकी कई कविताओं का अनुवाद किया था. इस कविता का अनुवाद आगा शाहिद अली के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है.
वायलिनें
वायलिनें
अंदलूसिया जाते हुए जिप्सियों के साथ रोती हैं
वायलिनें
अंदलूसिया छोड़ते हुए अरबी लोगों के लिए रोती हैं
वायलिनें
उस खो गए दौर के लिए रोती हैं जो वापस नहीं आएगा
वायलिनें
उस खो गए वतन के लिए रोतीं हैं जिसे वापस पाया जा सकता था
वायलिनें
सुदूर अंधेरों के जंगल जला देतीं हैं.
वे उफ़क को घायल कर देती हैं,
और मेरी नसों में दौड़ते खून को सूंघती हैं.
वायलिनें
हैं प्रेतों के तारों पर घोड़ों की तरह, कराहता है पानी.
वायलिनें
आगे और पीछे झूलते लिली के फूलों का मैदान हैं,
वायलिनें उन पशुओं की तरह हैं
जिन्हें एक स्त्री अपने नाखूनों से यातना देती है –
उनको छूती है
फिर दूर चली जाती है.
वायलिनें फ़ौज की तरह हैं,
बना रही हैं संगमरमर और धुनों की क़ब्रें.
वायलिनें दिलों में बसी हुई अराजकता है जिसको
हवा उठा कर एक नर्तकी के पैरों पर छोड़ देती है.
वायलिनें चिड़ियों के झुंड की तरह है
जो अधूरे बने एक झंडे के नीचे पनाह माँगती हैं.
वायलिनें
एक जुनुनी रात को रेशमी सिलवटों की शिकायतें हैं
वायलिनें
पुरानी प्यास को मना कर दिया गया शराब का नशा हैं.
वायलिनें
यहाँ वहाँ मेरा पीछा करती हैं, मुझसे बदला लेना चाहती हैं,
वायलिनें
मैं जहाँ भी मिलूँ ,मुझे मारने के लिए मुझे खोज रही हैं
मेरी वायलिनें
अंदलूसिया छोड़ते हुए अरबी लोगों के लिए रोती हैं
मेरी वायलिनें
अंदलूसिया जाते हुए जिप्सियों के साथ रोती हैं.
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अंचित कवि हैं. उनसे anchitthepoet@gmail.com पर बात हो सकती है.