कविताएँ ::
निज़ार क़ब्बानी
अनुवाद एवं प्रस्तुति : श्रीविलास सिंह
निज़ार तौफीक कब्बानी का जन्म 21 मार्च 1923 को दमिश्क, सीरिया में हुआ था। वे सीरिया के नागरिक थे। वे अरब दुनिया के बीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित कवियों में से एक हैं। उनकी कविताएं स्त्री केंद्रित हैं और उनमें प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ ही स्त्रियों की स्वतंत्रता का भाव प्रमुख होता है। उन्हें मूलतः प्रेम और अरब राष्ट्रवाद का कवि माना जाता है। उनकी कविताओं को सीरिया और लेबनान के लोकगायकों ने भी खूब गया है। निज़ार कब्बानी की मृत्यु 30 अप्रैल 1998 को लंदन में हुई। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं : Arabian Love Poems, Book of Love, The Lover’s Dictionary, I Write the History of Woman Like So, Love Does Not Stop at Red Lights, Republic of Love.
—श्रीविलास सिंह
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निज़ार क़ब्बानी
एक संक्षिप्त प्रेम पत्र
मेरे प्रिय, मुझे कहना है बहुत कुछ
मेरे अनमोल, मैं कहाँ से करूँ आरम्भ
जो कुछ भी है तुम में, है वैभवशाली
तुम मेरे शब्दों के अर्थ से रचते हो जो
रेशम के कोष
वे हैं मेरे गीत और वही मैं हूँ
इस छोटी सी किताब में हैं हम
कल जब मैं वापस पलटूँगा इसके पृष्ठ
एक दीपक करेगा विलाप
एक शैय्या गायेगी
इसकी लालसा के अक्षर हो जायेंगे हरे
इसके विराम चिन्ह होंगे उड़ने की कगार पर
कहो मत : क्यों यह यौवन
कहता है मुझसे हवादार सड़कों और धाराओं के बारे में
बादाम के वृक्ष और ट्यूलिप के बारे में
इसलिए कि यह संसार चलता है मेरे साथ साथ जहाँ जाता हूँ मैं ?
क्यों गाता था वह ये सारे गीत ?
नहीं है अब कहीं कोई सितारा
जो न हो सुगन्धित मेरी महक से
कल को लोग मुझे देखेंगे उसकी कविता की पँक्तियों में
होंठ जिनमें है मदिरा का स्वाद, काले घने केश
भूल जाओ कि कहेंगे क्या लोग
तुम होगे महान केवल मेरे महान प्रेम से ही
क्या रही होती दुनिया यदि होते न हम
यदि होती न तुम्हारी ये आँखें, क्या रहा होता यह संसार?
बिलकीस
बिलकीस…ओह राजकुमारी
तुम जल रही, कबीलाई युद्धों के बीच
क्या लिखूंगा मैं, अपनी रानी के प्रस्थान के बारे में?
निश्चय ही मेरे शब्द हैं शिगूफे…
यहाँ हम तलाशते हैं युद्ध के शिकारों के ढेर में से
एक टूटे हुए तारे को, दर्पण की भाँति चूर चूर हो गयी एक देह को,
ओह मेरी प्रिये, यहाँ हम पूछते हैं
क्या यह तुम्हारी कब्र थी
अथवा कब्र अरब राष्ट्रवाद की?
मैं नहीं पढ़ूँगा इतिहास आज के बाद,
जल गईं हैं मेरी उंगलियाँ, मेरे वस्त्र सजे हैं रक्त से
यहाँ हम प्रवेश कर रहे हैं पाषाणयुग में…
क्या कहती है कविता इस युग में, बिलकीस?
क्या कहती है कविता कायरता के युग में…?
कुचल दिया गया है अरब संसार, दमित, काट दी गयी है इसकी जुबान…
हम हैं साक्षात मूर्तिमान अपराध…
बिलकीस…
मैं तुमसे क्षमा की भीख माँगता हूँ।
संभवतः तुम्हारा जीवन था फिरौती मेरे स्वयं के जीवन हेतु,
निश्चय ही मैं जानता हूँ अच्छी तरह
कि जो लोग लिप्त थे हत्या में उनका उद्देश्य था मेरे शब्दों को मारना!
ईश्वर की शरण में रहो, सौंदर्यशालिनी,
असंभव है कविता, अब तुम्हारे बाद…
बेरूत, दुनिया भर की रखैल
बेरूत, दुनिया भर की रखैल,
हम स्वीकार करते हैं महान ईश्वर के समक्ष
कि हमें ईर्ष्या है तुमसे
चोट पहुँचाती है हमें तुम्हारी सुंदरता
हम स्वीकारते हैं अब
कि हमने किया बुरा व्यवहार और गलत समझा तुम्हें
और नहीं थी हम में दया और हमने नहीं बख्शा तुम्हें
और हमने दी तुम्हें कटार फूलों की जगह
हम स्वीकार करते हैं न्यायी ईश्वर के समक्ष
हम ने तुम्हें चोट पहुँचायी, तुम्हें कष्ट दिया,
हम ने तुम्हें बदनाम किया और रुलाया तुम्हें
और हमने तुम पर लाद दिए अपने विद्रोह
ओ बेरूत
तुम्हारे बिना संसार नहीं होगा पर्याप्त हमारे लिए
अब हम जान गए हैं कि तुम्हारी जड़ें हैं गहरी हमारे भीतर
अब हम जान गए हैं कि क्या अपराध किये हैं हम ने
उठो, पत्थरों के ढेर के नीचे से
अप्रैल में बादाम के फूल की भाँति
ऊपर उठो अपने दुखों से
क्योंकि क्रांति उपजती है शोक के घावों से
उठो, सम्मान में वनों के,
उठो, सम्मान में नदियों के,
उठो, सम्मान में मानवता के
उठो, ओ बेरूत!
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श्रीविलास सिंह सुपरिचित कवि, कथाकार और अनुवादक हैं। उनसे sbsinghirs@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। उनसे और अधिक परिचय और इंद्रधनुष पर पूर्व प्रकाशित कार्य के लिए यहाँ देखें : चैत का पुराना उदास गीत | मेरे लिए एक खिड़की पर्याप्त है