कविताएँ ::
सारुल
बागला

शहर और तुम

1.
हसरतों के शहर देखेंगे हमारी ओर अपनी प्यासी आँखों से एक प्यास
हमारे जिस्म की बेचैनी नहीं देख सकती।

2.
तुम आ सको तो शहर के इस कोने तक आना
इस शहर के इस तरफ मैं रहता हूँ
गहरी गली में
तुम आओगी तो थोड़ा बाहर निकल कर आऊँगा।

3.
हमारी आदत छूट गयी जादू देखने की
मदारी और बंदर दोनों बैठते हैं साथ साथ
मुझे तुम्हारी आँखों में अब कुछ नहीं दिखाई देता।

4.
शहर भीगा है तो तुम्हारी आँखों में
भीगेपन की परछाई देखनी है
बिलकुल वैसा है शहर
दिखता है जैसा तुम्हारी आँखों में।

5.
अब एक नींद पूरी करने के बाद
चाँद धुंधला और तुम ज्यादा हसीन दिख रही हो
चाँद का रंग ठंडा है
और तुम्हारी ज़िन्दगी में एक धुन है।

6.
मुझे अमलतास के पीले फूल दिखते हैं
तुम्हारे चेहरे के पीछे
तुम भी अमलतास का फूल हो जैसे
अमलतास के मौसम में।

7.
तुम मुझे इस तरह छूना
जैसे तुमने पहली बार छुआ ही नहीं था
तुम खुद को वैसे ही रोकना
जैसे पहले रोका ही नहीं था
तुम जाना
जैसे गयी ही नहीं थी तुम
फिर खुश होना है मुझे
जैसे कभी हुआ ही नहीं था खुश।

8.
रात का जिक्र आता है बार-बार
सबसे अपने होते हैं शहर रातों में
जिस शहर से भी प्यार हो
रात में चुपके से जाओ
उसकी दीवारें सो रही हों जब
उनींदे हों जब शहर के चौकीदार
जब झप रहीं हों शहर की पलकें
शहर में जाओ हल्की ठंडी रातों में।

9.
तुम कल सुबह मेरी नींद में बची रह जाओगी
अधूरे सपने अगली रातों को आने की कोशिश तो करते हैं
तुम कभी नहीं करती कोशिश
मुझे नफरत ही नहीं है इतने लंबे वादों से
और तरस भी नहीं आता किसी पर।

10.
तुम्हें बाहों में भरने से
बायीं तरफ का खालीपन भर जाता है
तुम्हें देखने से खूबसूरत होता है
दिसम्बर का सूनापन
बर्फ गिरती है और पिघलती है
तुम छू देती हो जब मेरा हाथ
मुझे चैन से बैठना नसीब नहीं होता तुम्हारे साथ।

11.
जब बात करने का मन न हो
तो उलझे सवालों में शाम बर्बाद कर देना तुमसे सीखा है
और अब सब सारे शहर
ऐसा ही समझने लगे हैं मुझे
जैसे मुझे किसी से कोई सवाल नहीं।

12.
शहर के एक कोने में
चौराहे पर दिन भर के लिए मजदूर मिलते हैं
जिनका चेहरा किसी को याद नहीं रहता
और दूसरे कोने पर तुम नहीं मिलती
बहुत दिन से जिसका चेहरा
शहर के ज़हन से नहीं उतरता।

13.
जब तुम्हारे लिए प्रेम गीत लिखे गए
तो दिन भर की मेहनत से टूट रहा था बदन
अब मन में कुछ टूटता है
बदन नहीं टूटता
प्रेम गीत भी नहीं लिखे जाते
शहर भर में अकेला मैं ही बचा हूँ।

14.
तुम्हारा किशोर चेहरा
जिसे हाथों मे भरकर
चाँद देखता था शहर
चाँद मेरे चेहरे पर उम्र की परछाईं पढ़ता है।

15.
गुलाब की पंखुड़ी पर पड़ी ओस की बूंद से
प्रवेश परीक्षाओं वाले पसीने में डूबे मेरे बच्चों वाला शहर
रोमांटिक उपमाओं वाली किशोरियों से
किचेन में पसीने वाली सद्य-युवा युवक युवतियों वाला शहर
सारे रास्ते क्या चल कर ही आए जाते हैं?
जिनकी जुबान सूखी और गला भीगा है
उनके गीत नदी की सतह पर तैरते हैं
तो शहर सुनता है कि नहीं?

सुबह कोई जादू नहीं करती

सुबह कोई जादू नहीं करती
जब रात का दरवाजा बंद रहता है
बे-इंतहा मोहब्बत करने वाले लोग
कभी भी मोहब्बत का मतलब नहीं जानते।

दीवार की सीलन धूप के साथ भाप
होती है और अच्छे इंसान धीरे धीरे
सिर्फ इंसान रह जाते हैं
दीवार सीली हुई दीवार से सिर्फ
दीवार होती जाती है।

अजनबीयत अकेली चीज थी
जो मुझे तुम्हारे पास लेकर आती थी
नदी को पता थे सारे रहस्य
समंदर मे मिलती हुई नदी ने भी सोचा
सारा जल खारा हो जाएगा।

लंबे लगते हैं सीधे रास्ते
और कोई अजनबी नहीं मिलता
कोई डर भी नहीं कि दिखता रहे
अगला मुसाफिर
सीधा रास्ता रास्ता ही नहीं होता।

उधार

हमारी आत्माओं का उधार है
ऐसे समय में जब हमारी हैवानियत और बढ़ती जा रही है
इंसानियत की बहस करते करते
देखो कैसे ये सच के पुजारी
अभी अपनी आस्तीन से तलवार निकाल कर
हमें दौड़ा लेंगे
जरा सी भूख मांगी तो गुनाह
प्यास मांगी तो गुनाह
शाम मांगी तो गुनाह
सुबह मांगी तो गुनाह
गुनाह है कुछ भी मांगना
और हम न चाहते हुये भी
खुद को हर चीज के खिलाफ पाते हैं
हवा हमारे खिलाफ है
हमारी आग का ताप बाहर की आग के खिलाफ है
हमारी प्यास खिलाफ है सारी कायनात के खिलाफ
भूली चंपाओं को प्यार करते हुये
मुझे महसूस होता है
हम अभी प्यार के भी खिलाफ खड़े हैं
हमारी बुझी हुई आत्माएँ जागती हैं तो
अपना उधार मांगती हैं।

मैं अब किसी गाँव का नहीं बचा

मैं अब किसी गाँव का नहीं बचा
गाँव ऐसी जगह जैसा है
जहाँ से हर कोई आया है कभी न कभी
और फिर कभी वापस नहीं गया
शीशमहल गाँव मे कभी नहीं थे
जहाँ सपने थे
उनके ठिकाने उससे दूर रहे हमेशा।

•••

सारुल बागला कवि हैं और हिंदी की सबसे नयी पीढ़ी से आते हैं उनकी कविताओं ने अपने नएपन से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
उनसे  sarulbagla.bhu@gmail.com पर बात हो सकती है

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