कविताएँ ::

राजेश कमल

राजेश कमल

प्रेम

कबूतरों वाला ज़माना गया
प्रेम फिर भी बचा रहा
ज़माना तो संदेशियों वाला भी चला गया
प्रेम फिर भी बचा रहा
यहाँ तक कि चिट्ठियों वाला भी ज़माना गया
प्रेम फिर भी बचा है.

साइबर युग का प्रेम अभी जारी है
कभी कभी तो जलन सी होती है
इस युग के मुहब्बतियों से

एक दिन यह युग भी चला जाएगा
प्रेम जारी रहेगा फिर भी.

अफ़ीम

झूठ का स्वर  इतना कर्णप्रिय होगा
कभी सोचा न था

सबसे बड़ा संगीतज्ञ  हारमोनयम से नहीं
तोप से ले रहा है अलाप
श्रोता मंत्रमुग्ध
दिमाग का दही कर दिया  भेंचो
बजा रहा है बैंजो
और श्रोता मंत्रमुग्ध

क्या अफ़ीम  खिलाई है मालूम नहीं
इस चलचलाती धूप में भी
नशा फट नहीं रहा

जब होश आएगा
तब इल्म होगा
क्या लुटा  क्या क्या लुटा

युद्ध में  प्रेमिका की अपील

मुझे वहाँ ले चलो
जहाँ
चुंबनों में
बारूद की बू ना आती हो
मुझे वहाँ  ले चलो
जहाँ
तेरी साँसों की आहट
बा-तरन्नुम सुनाई दे
मुझे वहाँ ले चलो
जहाँ
तेरे बाँहों की मछलियाँ नाच नाच जाती हों

•••

 राजेश कमल कवि हैं. पटना में रहते हैं. इनसे rajeshkamal09@gmail.com पर बात की जा सकती है. 

 

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