सम्पादकीय : अंचित
समय के गुज़रने, कुछ बीत जाने और कुछ नया आने, इतिहास की गति और यह कि कोई यात्रा चल रही है, कि हम कहीं जा रहे हैं— मानव विकास की यात्रा में यह भी कोई स्टेज है, इस क्षण की ओर उम्मीद से देखते हुए, इसको बीत गए और आने वाले से अलग रखते हुए भी व्यापक निराशा से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता— ठीक वैसे ही जैसे उम्मीद और उदासीनता में अंतर किए बिना लक्ष्य, असल बदलाव का होना चाहिए. दृश्य का बदलना— दुनिया में भी, साहित्य में भी— इसके अलावा जो है वह त्याज्य होना चाहिए. जिसको नहीं बदला जा सकता, उसकी स्मृति को ज़िंदा रखा जा सकता है. समय के स्थगन की स्थिति में भी बार-बार कोर्स करेक्शन के बारे में सोचना सम्भव है. यहाँ से सोचना मुश्किल काम है. फिर भी.
निकट बीते हुए समय में बिसरना मिलने से बहुत अधिक भरा हुआ है, हारना, जीतने से बहुत अधिक, मरना जीने से बहुत अधिक और अकेलापन, साथ होने से बहुत अधिक. जो बोझ दबाए जाता था, उसके भार में बढ़त अप्रत्याशित नहीं है, फिर भी यह लगता है कि ऐसी बढ़त भी नहीं कि जिसको वापस धकेला ना जा सके. अकेले नहीं. साथ–साथ. कोई बादशाह ऐसा नहीं होता जिसकी ओर आँखें ना तरेरीं जा सकें, कोई कोतवाल ऐसा नहीं जिससे उसकी लाठी नहीं छीन सकते. स्थगन के इस काल में हम एक-दूसरे से कितना दूर छिटके जाते हैं, यह अहसास अब धीरे–धीरे आत्मा में पैवस्त होने लगा है. लेकिन यह नयी कोई बात है, ऐसा भी नहीं है. बिना पानी में उतरे तैरना नहीं सीखा जा सकता, बिना पगडंडी से उतरे अपना रास्ता बनाना भी. जितनी तेज़ी से शत्रु अपनी चालें चलता है, यह स्वीकार करना होगा कि उस तेज़ी से हमें पलटवार करना अभी तक नहीं आया. यह भी कि सिर्फ़ शत्रु तेज हो ऐसा नहीं— उसको हराना चाहना सबसे ज़रूरी बात नहीं यह भी सही है; उसकी महिमा का आकर्षण देर तक रहता है. जो राजनीति में सच है वही साहित्य में भी.
बीत गए से इतर जो भी है, वहाँ नक़्शे में लिखे से अलग सम्भावना का वर्तमान सम्प्रेषित करने की गुंजाइश बनाए रखना इन्द्रधनुष की सारी चाहों का उद्गम रहा है और बने रहने की कोशिश करेगा. संस्कृति की लोकप्रिय धाराओं से रिसता हुआ जल हर जगह सीलन पैदा करता है और विखंडन के उत्सव के बीच अभी वही स्थापित है— यह सिर्फ़ एक सैद्धांतिक समस्या नहीं है; स्थगित यात्रा के केंद्र में पैदा हुआ सबसे बड़ा सवाल है. इन्द्रधनुष अपने सामने सबसे बड़ी चुनौती यही देखता है और इस प्रश्न का विकेंद्रीकरण चाहता है— इस विरोधाभास का स्वागत करते हुए. उत्सवधर्मिता और उससे जुड़ी लालसाओं–स्खलनों के दौर में सीलन से बचना असम्भव है लेकिन उससे लड़ना शायद उसके होने के स्वीकार से ही शुरू होता है. बीत गए से अलग तो कुछ नहीं लेकिन कुछ हो इसकी आकांक्षा के साथ आप सभी को शुभकामनाएँ.
बहुत प्यार.
[फीचर्ड तस्वीर : साल्वाडोर डाली की चर्चित पेंटिंग ‘द पेरसिस्टेंस ऑफ मेमरी’]