जाज्वल्यमान बलिदान से मूर्ति नहीं बन सकती

शेखर एक जीवनी से कुछ उद्धरण ::

चयन और प्रस्तुति : सुधाकर रवि

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

‘शेखर एक जीवनी’ को पढ़ने से पहले अज्ञेय की कविताएं और उनके यात्रा संस्मरण से गुजर चुका हूँ। शेखर एक जीवनी बहुत पहले पढ़ लेनी चाहिए थी। जिन कारणों से यह किताब अब तक नही पढ़ सका था उनमें सबसे बड़ा कारण है इस किताब की भाषा का समझ में न आने का डर। बारहवीं पास होने के बाद किताब को पहली दफ़ा पढ़ना शुरू किया और कुछ पन्ने पढ़ने के बाद यह सोच कर किताब रख दी कि यह मेरे समझ में नहीं आने वाली। हालांकि अब लगता है कि कुछ पन्ने और संयम दिखा कर पढ़ लिया होता तो ऐसे कौतुक और विद्रोही स्वभाव वाले शेखर से पहले ही मिलना हो गया होता।
प्रस्तुत उद्धरण अज्ञेय के मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास शेखर एक जीवनी के पहले भाग से है— 

मूर्ति का निर्माण हो सकता है, मृत्तिका का नहीं। उसी मिट्टी से अच्छी प्रतिमा भी स्थापित की जा सकती है, बुरी भी, पर जहाँ मिट्टी ही न हो, वहाँ कितने ही प्रचार से, कितनी भी शिक्षा से, कितने भी जाज्वल्यमान बलिदान से मूर्ति नहीं बन सकती।

कलाकार के लिए कला की अन्तःशक्ति के उद्बोध के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण विभूति है कला के प्रति एक पवित्र आदरभाव; उसी प्रकार क्रान्तिकारी के लिए क्रान्ति की अन्तःशक्ति के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है क्रांतिकारिता के, विद्रोह-भावना के प्रति एक पूजाभाव।

जहाँ प्रेम जितना उग्र होता है, वहाँ वैसी ही तीखी घृणा भी होती है; क्रूरता में केवल यातना दी ही नहीं जाती, स्वयं पायी भी जाती है और स्नेह में स्नेही अपने को ही नहीं भूलता, स्नेह के पात्र को भी भूल जाता है।

मानव के लिए झूठ, छल और मक्कारी अत्यंत सहज है, क्योंकि ईश्वर ने मानव को अपना प्रतिरूप बनाया और ईश्वर हमारे ज्ञान में सबसे बड़ा झूठा और छलिया और मक्कार है।

जीवन की गहनतम घटनाएँ किसी अनजान क्षण में ही हो जाती हैं।

घोर पीड़ा का उद्भव सदा ही रहस्य-पूर्ण होता है; उसकी अनुभूति स्पष्ट होती है किन्तु उसका अंकुर कब, कहाँ, कैसे फूटा, यह पता नहीं चलता, क्योंकि इसके लिए हम उस समय चौकन्ने नहीं होते।

मृत्यु का डर वास्तव में बड़ों की चीज है।

यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवनी लिखने लगे, तो संसार में सुंदर पुस्तकों की कमी न रहे।

तुममें से प्रत्येक के जीवन में कम से कम एक महत्वपूर्ण घटना हुई होगी जो औरों से अलग, विशिष्ट खड़ी रहती है। और इसलिए तुममें से प्रत्येक कम से कम एक अच्छा गल्प लिख सकता है।

मां की ओर आकर्षित पुत्र और पिता की ओर आकर्षित कन्या साधारणता की ओर, सामान्यता की ओर जाते हैं, और पिता की ओर आकृष्ट पुत्र, माता की ओर आकृष्ट कन्या असाधारण होते हैं।

जीवन सबसे अधिक प्यारा उसको होता है, जो मरना जानता है।

कार्यशीलता की सौ गलतियां निकम्मेपन की एक अच्छाई से बढ़कर है; क्योंकि कार्यशीलता में अपनी गलती को दूर करने का भी सामर्थ्य है, और निकम्मापन अपनी अच्छाई को कायम भी नही रख सकता।

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सुधाकर रवि हिंदी की नई पीढ़ी से सम्बद्ध कवि-लेखक और छात्र हैं। उनसे sudhakrravi@hotmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।

About the author

इन्द्रधनुष

जब समय और समाज इस तरह होते जाएँ, जैसे अभी हैं तो साहित्य ज़रूरी दवा है. इंद्रधनुष इस विस्तृत मरुस्थल में थोड़ी जगह हरी कर पाए, बचा पाए, नई बना पाए, इतनी ही आकांक्षा है.

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