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अभिषेक

अभिषेक

आखिरी किताब

तुम्हारे ताखे पर रखी सभी किताबों के नीचे जो सबसे आखिरी किताब है न-
मैं वही किताब हूँ।

मुझे आज भी याद है जिस दिन तुम मुझे पूरे बाजार से ढूंढ कर लाई थी
फिर उस रात तुम मुझे तीन बजे तक पढ़ती रही
कुछ पन्ने भी तुमने मोड़े थे, जो तुम्हेँ बहुत पसंद आए
काफी दिनों तक तो तुम मुझे कहीं छोड़कर जाती ही नहीं थी,
चाहे पार्क हो, कॉलेज हो, कैफे हो या सफर हो।

फिर तुम्हें एक दूसरी किताब मिल गई
मुझसे भी बेहतर।

तब से
मैं यही हूँ
तुम्हारे ताखे पर रखा हुआ
मुझे नहीं मालूम कि अब तुम मुझे दोबारा पढ़ोगी या नहीं
लेकिन अगर कभी पढ़ोगी तो
मैं तुम्हें उसी पहली रात की तरह महसूस होऊंगा।

रात

रात को लौटता हूँ डेरा
रात को लगती है भूख ज्यादा
रात को याद आता है माँ का मुस्कुराता चेहरा
रात को बैठता हूँ दोस्तों के साथ
रात को करता हूँ प्रेमिका से लंबी बातें
रात को सुनता हूँ अपने प्रिय गीत
रात को  पढ़ता हूँ अपने पसंदीदा शायर
मैं दिनभर का झूठा आदमी।

समय

समय निगल जाएगा सब कुछ
मुझको भी, तुमको भी और इस कहानी को भी।
समय के साथ बदल जाएगा मेरा प्रेम तुम्हारे लिए
और मैं भी तुम्हें कम याद आने लगूँगा।
सूख जाएगा तुम्हारे होंठ का पानी एक दिन
और उसे चूमने की मेरी ख्वाहिश भी मर जाएगी।
तुम्हारी आंखों के काजल का कालापन कम होने लगेगा
उनमें डूब कर मरना भी जरूरी नहीं होगा मेरे लिए।
तुम्हारे चांद जैसे चेहरे पर झुर्रियाँ आ जाएँगी।
और मेरा प्रेम भी बूढा हो जाएगा तब तक।
दीमक खा जाएगा मेरी सारी कविताएँ जो मैंने तुम्हें समर्पित कीं।
इससे पहले की समय निगल जाए सब कुछ
आओ हम थोड़ा सा समय खुद के लिए निकाल लें।

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अभिषेक के लिए यह प्रकाशन का प्रथम अवसर है। वे कविताओं के गम्भीर पाठक हैं और अभी बस लिखना शुरू किया है। कविता उन्हें कितनी हासिल होगी यह भी समय बताएगा और पढ़े का प्रभाव, लिखे पर ज़ाहिर है। इंद्रधनुष शुभकामनाओं के साथ उनकी कविताओं को प्रकाशित कर रहा है। उनसे abhi18797shek@gmail.com पर बात हो सकती है।

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