न से नारी ::
उद्धरण : चिमामंडा गोज़ी अडिची
अनुवाद और प्रस्तुति : सृष्टि

चिमामंडा गोज़ी अडिची सुप्रसिद्ध अफ्रीकी लेखिका हैं। उन्होंने अपनी किताबों में बहुत सी अहम बातों का ज़िक्र किया है। उन्होंने लोगों के भाषा को प्रयोग करने के तरीके से जो विचारों पर असर पड़ता है उसका कई बार ज़िक्र किया है। उनके हिसाब से यही अक्सर आइडेंटिटी क्राइसिस की एक अहम वजह होती है। मैंने कभी उनका एक टेड टॉक देखा था, जिसमें उन्होंने कहानियों की बात की थी। किस तरह कहानियाँ झूठी हो सकती हैं। हम सब की कहानी अपने-अपने हिसाब से होती है। वो कहानी जो हमारे बारे में दूसरे सुनते हैं वो भी कितनी अधूरी होतीं हैं। यही वजह है कि हम अपने विचार अक्सर ग़लत बनाते हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने कहानी की ताक़त भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि अगर कहानियाँ हमारी छवि बिगाड़ सकती हैं तो वही कहानियां हमारी बिगड़ी छवि को बना भी सकती हैं। इसलिए ये बहुत जरूरी है कि हम कहानियाँ सही तरीके से सुनाएँ, सही शब्द और भाषा का उपयोग करते हुए। उन्होंने कई बेहतरीन किताबे लिखी हैं जैसे We Should all be Feminists, Half of a Yellow Sun और Americanah.

— सृष्टि

चिमामंडा गोज़ी अडिची | तस्वीर साभार : CCCB

अगर आप किसी ग़ैर काले व्यक्ति को अपने ऊपर हुए नस्लवाद के बारे में बता रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखे कि कड़वाहट ना दिखाए। शिकायत ना करे। माफ़ कर दें। और अगर सम्भव हो तो उसको मज़ेदार बना दे। सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप क्रोध ना करें। काले लोगों से  नस्लवाद के ऊपर गुस्सा जताने की अपेक्षा नहीं होती। वर्ना आप सहानुभूति के पात्र नहीं बन पाते। वैसे, ये सिर्फ श्वेत लिबरल के ऊपर लागू होता है। किसी श्वेत रूढ़ीवादी को आपके साथ हुए नस्लभेद के बारे में बताने का कष्ट मत कीजिएगा क्योंकि वो रूढ़ीवादी आपको बतायेगा की असल में नस्लवाद आप में है और फिर आप का मुँह उलझन में खुला का खुला रह जाएगा।

वो अपने दिमाग में एक ऐसी औरत बन गई जो बिना किसी बंधन और चिंता के हो, एक ऐसी औरत जो अपने मुँह में, धूप में गर्म हुए स्ट्रॉबेरी का स्वाद लिए हुए, बारिश में दौड़ रही है।

ऐसी चीज को याद करना कैसे सम्भव है जो अब आपको नहीं चाहिए? ब्लेन को वो चाहिए था जो वो उसे नहीं दे सकती थी और उसे वो चाहिए था जो ब्लेन नहीं दे सकता था, उसे इसी का अफ़सोस था, उस बात का खो जाना जो हो सकती थी।

वो उन लोगों में से था जिसे उसके गाँव के लोग खोया हुआ कहते होंगे। उसके अपने लोग कहते होंगे कि वो अमेरिका गया और खो गया। वो अमेरिका गया और उसने वापस आने से इंकार कर दिया।

वह उस ख़ामोशी के अंदर थी और वह सुरक्षित थी।

उसने जितना ज्यादा लिखा, उसका यक़ीन उतना ही कम होता गया। हर पोस्ट के साथ उसका अपना आप उसे छीलता रहा तब तक, जब तक उसे नंगा और नकली महसूस नहीं हुआ।

एक ही सिद्धांत है जिसपर ये देश बसा हुआ है। सबसे अहम सिद्धांत। किसी को नहीं पता कि कल क्या होगा। याद है अबाचा सरकार के समय के वो बैंकर्स? उन्होंने सोचा कि वो इस देश के मालिक हैं और अगले ही पल,  वे जेल में थे।

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सृष्टि कवि हैं, उनसे shristithakur7@gmail.com पर बात हो सकती है। इन्द्रधनुष के साप्ताहिक स्तम्भ ‘न से नारी’ के अंतर्गत स्त्री-विमर्श के प्रमुख हस्ताक्षरों के रचना-संसार से हम आपको निरन्तर साक्षात्कार करवा रहे रहे हैं। हमारी विशेष टीम ‘द फेनोमेनल वीमेन’ द्वारा प्रस्तुत इस स्तम्भ की अन्य प्रस्तुतियों के लिए यहाँ देखें : न से नारी

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