फ्रेडरिक नीत्शे के कुछ उद्धरण :

जो भी शैतानों से लड़ता है, उसको इसका ख़्याल रखना चाहिए कि लड़ते-लड़ते वह भी एक शैतान न बन जाये। अगर आप देर तक अंधकार की तरफ़ देखेंगे तो वह भी आपकी तरफ़ देखेगा।

एक बौद्धिक आदमी को सिर्फ़ अपने दुश्मनों को प्यार करना आना चाहिए बल्कि अपने दोस्तों से नफ़रत भी।

व्यक्ति को झुंड के परेशान करते रहने से हमेशा संघर्ष करना पड़ा है। अगर तुम यह करने की कोशिश करोगे, तुम अक्सर अकेले रहोगे और कई बार डरे हुए भी। लेकिन ख़ुद का मालिक होने का विशेषाधिकार पाने के लिए जो भी क़ीमत देनी पड़े कम है।

व्यक्तियों में पागलपन कम होता है; लेकिन झुंडों, दलों, राष्ट्रों और युगों में यह नियम है।

आज भी हमेशा की तरह व्यक्ति दो दलों में बाँटे जा सकते हैं: ग़ुलाम और आज़ाद व्यक्ति। जिसके पास भी अपने दिन का दो तिहाई हिस्सा ख़ुद के लिए नहीं है, वह ग़ुलाम है, भले ही वह राजनेता हो, व्यापारी हो, अफ़सर हो या विद्वान।

सबसे बुरे पाठक वे होते हैं जो लूट-मार करने वाले दस्तों की तरह व्यवहार करते हैं। वे हमेशा (पाठ में से) इस्तेमाल लायक़ चीज़ें ले लेते हैं, बचे हुए पर हमला करते हैं और उसे गंदा करते हैं, और साथ ही सब कुछ दूषित कर देते हैं।

नैतिकता व्यक्ति की मूल झुंडप्रवृति है।

कोई चरवाहा नहीं और एक झुंड। सबको एक ही चीज़ चाहिए, सब एक जैसे हैं। जो भी थोड़ा अलग महसूस करता है, ख़ुद ही अपने मन से पागलखाने चला जाता है।

मुझे अपनी क़िस्मत पता है। किसी दिन मेरा नाम किसी विलक्षण चीज़ की याद के साथ जोड़ा जाएगा— एक ऐसा संकट, जिसके जैसा पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं, अंत:विवेक का सबसे गंभीर टकराव, एक ऐसा निर्णय जो हर उस चीज़ के विरुद्ध पैदा हुआ जिसका विश्वास किया जाता था, चाहा जाता था, या पवित्र माना जाता था। मैं मनुष्य नहीं हूँ, मैं डायनामाइट हूँ।

मैं बहुत जिज्ञासु हूँ, बहुत संशयी और बहुत ज़्यादा ही बदतमीज़ कि मैं ख़ुद को किसी सीधे और मूढ़ समाधान से संतुष्ट होने दूँ। ईश्वर ऐसा ही सीधा और मूढ़ समाधान है; एक ऐसा समाधान जो हम विचारकों के लिए एक बेहूदगी की तरह हैअंत में वह कुछ नहीं बल्कि हमारे ख़िलाफ़ एक ख़राब आदेश की तरह है: तुम्हें सोचना मना है।

तो हमेशा जिस अपने सबसे बुरे दुश्मन से तुम मिलोगे, तुम ही होगे; तुम सरायों और जंगलों में बैठे ख़ुद का ही इंतज़ार करोगे। अकेले व्यक्ति, तुम अपनी तरफ़ जाते हुए रास्ते पर हो। और तुम्हारा रास्ता तुमसे और तुम्हारे सात शैतानों से होकर गुज़रता है। तुम ख़ुद के लिए एक विधर्मी साबित होगे और एक शैतान और एक सच बोलने वाले और एक बेवक़ूफ़ और एक संशयात्मा और अधर्मी और शत्रु। तुम्हें ख़ुद को अपनी ही आग में जलने के लिए तैयार रहना चाहिए: तुम नये कैसे बनोगे अगर पहले तुम राख नहीं हुए?


नीत्शे (15 अक्टूबर  1844 – 25 अगस्त 1900) संसारप्रसिद्ध दार्शनिक हैं। यहाँ प्रस्तुत उद्धरणों का अनुवाद अंचित ने किया है, उनसे anchitthepoet@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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