मार्सेल प्रुस्त के कुछ उद्धरण ::
अनुवाद, चयन और प्रस्तुति : उत्कर्ष
मार्सेल प्रुस्त ( Marcel Proust ), 10 जुलाई, 1871 – 18 नवम्बर 1922, फ्रांस के जाने-माने उपन्यासकार, आलोचक और गद्यकार माने जाते हैं, जिन्हें बीसवीं सदी के अति-प्रभावशाली लेखकों में शुमार किया जाता है. प्रस्तुत उद्धरण लेखक की विस्तृत रचनाओं से चयनित और प्रस्तुत किया गया है. हिंदी में अनूदित यह प्रस्तुति फ्रेंच से अंग्रेजी भाषा के अनुवाद की छायाप्रति भर है, जिसे शब्दानुवाद से अधिक भावानुवाद के माध्यम से पाठकों के सामने लाने की कोशिश की गई है. आशा है कि यह प्रस्तुति इंद्रधनुष वेब पत्रिका के पाठकों को प्रुस्त के लेखन और विचारों की एक झलक दे सकेगी.
“हर एक पाठक, जब वह पढ़ता है, वास्तव में स्वयं का पाठक है. लेखक का काम सिर्फ इतना है कि वह एक प्रकार से उसे देखने का ऐसा यंत्र दे, जिससे वह वो देख सके, जो शायद उस किताब की मदद के बिना स्वयं में कभी देख ही नहीं पाता. पाठक का किताब के कथ्य से स्वयं का यह परिचय प्राप्त कर पाना ही किताब का सत्य है.”
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“आनन्द निश्चित रूप से शरीर के लिए लाभकारी है, लेकिन यह दुःख है जो मन की शक्तियों का निर्माण करता है.”
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“मेरा मुकाम अब बस कोई एक जगह ही नहीं है, बल्कि यह देखने के एक नए तरीके की तलाश है.”
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“सपना देखना अगर खतरनाक है, तो इसका उपाय सपने कम देखना नहीं है, बल्कि और ज्यादा सपने देखना, हर समय सपने देखते रहना. “
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“अभिलाषा सबकुछ का खिलना है, काबू करना सबकुछ को बिखरा और नष्ट कर देता है. “
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“ऐसा कोई नहीं है, भले ही वह कितना भी बुद्धिमान हो, जिसने अपनी युवावस्था में यह नहीं कहा या किया हो, जिसे बाद में याद करने पर उसे बिल्कुल ही सुहावना न लगे, और जिसे वह अगर संभव हो सके, तो शायद पूरी तरह अपनी स्मृतियों से निकाल बाहर करे.”
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“यह हमारी कल्पनाशीलता है, जो प्रेम के लिए जिम्मेदार है, ना कि वह दूसरा आदमी.”
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“एक अकेला स्वर्ग वही है, जिसे हमने खो दिया. “
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“दस में से नौ बुराइयाँ जिससे समझदार लोग कष्ट भुगतते हैं, उसका कारण उनकी ही अक्ल होती है.”
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“कलाकार होना है हारना, क्योंकि हर कोई नहीं जो हारने का साहस रखता है. यही असफलता उसकी दुनिया होती है, और इससे बचना उसकी बर्बादी. “
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“तुम हमेशा अपने ऊपर एक नीला आसमान देखते रहना, मेरे नौजवान दोस्त!… और तब, जबकि ऐसा समय भी आ जाए, जैसा अभी मेरे लिए आया है, तब जब लकड़ियाँ निर्जीव सी होने लगें, और जब रातें तेजी से नीचे की ओर गिर रही हों, तो भी तुम अपने आपको संभालने में कामयाब हो जाओगे, जैसे अभी मैं खुद को आश्वस्त कर पा रहा हूँ , ऊपर उस नीले आसमान को देखते हुए…”
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“बस कला ही वह माध्यम है, जिसकी सहायता से हम खुद से बाहर निकलकर दूसरों की दृष्टि समझ सकते हैं.”
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“हमें बहुत दूर जाने से डरना कभी नहीं चाहिए, क्योंकि सत्य दूर उस पार है.”
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“यह आवश्यक नहीं कि बीत गई चीजों की स्मृतियों को फिर से याद करने पर ठीक उसी तरह याद आएँ, जैसी तब वह वास्तव में थीं.”
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उत्कर्ष से yatharthutkarsh@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।