कहानी::
जुलिओ कोर्टाज़ार
अंग्रेजी से अनुवाद: श्रीविलास सिंह

हमें मकान पसंद था, पुराना और काफी खुला होने के अतिरिक्त (ऐसे समय में जब पुराने मकान उन की विनिर्माण सामग्रियों की लाभदायक नीलामी की वजह से गिराए जा रहे थे), इसमें हमारे परदादाओं, दादा-दादी, माता पिता और स्वयं हमारे समूचे बचपन की स्मृतियाँ सुरक्षित थीं।

इरेन और मुझे वहाँ अकेले रहने की आदत पड़ गयी थी, जो कि बड़ा अजीब था। आठ आदमी उस मकान में बिना एक दूसरे के लिए बाधा बने आराम से रह सकते थे। हम रोज सुबह सात बजे उठते तथा सफाई का काम कर डालते, और ग्यारह बजे मैं इरेन को कमरों को व्यवस्थित करते छोड़ किचन में चला जाता।  हम ठीक दोपहर में लंच करते और उसके पश्चात कुछ करने को शेष न रहता सिवाय कुछ जूठी प्लेटों की सफाई के। लंच कर खाली और शांत मकान में टहलना शानदार था। हमारे लिए केवल उसकी सफाई कर देना ही पर्याप्त था। कभी कभी हम सोचते क्या यही कारण था जो हमें विवाह करने से रोके हुए था।  इरेन ने दो संभावित दूल्हों को बिना किसी खास कारण के अस्वीकार कर दिया था और मारिया ईस्थर मेरे ऊपर मरती ही मर गयी इसके पूर्व कि हमारी सगाई हो पाती। हम इस अनकहे विचार के साथ अपने चालीस के दशक के अंत में पहुंचने वाले थे कि बहन और भाई का शांत, साधारण विवाह ही हमारे परदादाओं द्वारा स्थापित वंश परंपरा का अपरिहार्य अंत होगा। हम किसी दिन यहीं मर जायेंगे, दूर के अपरिचित सम्बन्धी इस जगह को उत्तराधिकार में पाएंगे, वे इसे गिरवा देंगे, निर्माण सामग्री को बेच डालेंगे और प्लाट को बेच कर समृद्ध हो जाएंगे; अथवा अधिक न्यायपूर्ण और बेहतर यह होगा कि अत्यधिक देर होने से पूर्व हम ही इसे गिरवा दें।

इरेन कभी किसी की परवाह नहीं करती थी।  एक बार जब सुबह का काम समाप्त हो जाता, वह दिन का शेष समय अपने शयनकक्ष में सोफे पर बुनाई करते हुए गुजार देती। मैं बता नहीं सकता कि वह इतनी अधिक बुनाई क्यों करती थी; मैं सोचता हूँ कि महिलाएं तब बुनाई करती हैं जब उन्हें पता चलता हैं कि कुछ भी न करने का यह एक मजबूत बहाना है।  लेकिन इरेन ऐसी नहीं थी। वह हमेशा जरुरी चीजें बुनती, जाड़ों के लिए स्वेटर्स, मेरे लिए मोज़े, सुबह की पोशाकें, अपने लिए गाउन। कभी कभार वह एक जैकेट बुनती और अगले ही पल उसे उधेड़ देती क्योंकि कुछ होता था जिससे उसे ख़ुशी नहीं होती थी। उसकी बुनाई की टोकरी में पड़े उलझे हुए ऊन के ढेर को देखना जो अपना मूल आकार पुनः पाने के लिए कुछ घंटों का असफल संघर्ष कर रहे होते, बहुत सुखद होता था। शनिवार को मैं पास के बाजार तक ऊन खरीदने जाता था। इरेन को मेरी अच्छी पसंद पर भरोसा था, वह रंगों को देख कर खुश हो जाती थी और मुझे कभी भी ऊन का एक भी बण्डल वापस नहीं करना पड़ा था। मैं इस यात्रा का लाभ किताबों की दुकानों तक चक्कर लगाने के लिए उठाता, निरुद्देश्य पूछता हुआ कि क्या उनके पास फ्रेंच साहित्य में कुछ नया आया है।  1939 के पश्चात् अर्जेन्टीना में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं आया था।

लेकिन मैं मकान के बारे में बात करना चाहता हूँ, मकान और इरेन के बारे में।  मैं बहुत महत्वपूर्ण नहीं हूँ। मुझे आश्चर्य होता है कि बुनाई के बिना इरेन ने क्या किया होता। कोई किसी पुस्तक को दोबारा पढ़ सकता है लेकिन एक पुलओवर के पूरा हो जाने पर आप उसे दोबारा कुछ नहीं कर सकते, यह एक तरह का असम्मान है। एक दिन मैंने देखा कि अलमारी की सबसे नीचे की दराज़, कार्बोलिक की गोलियों से संतृप्त, तरह तरह की शॉलों से भरी हुई थी, सफ़ेद, हरी, नीली। कपूर की महक के मध्य संरक्षित । यह किसी दुकान की तरह था। मुझे उससे यह पूछने की हिम्मत नहीं थी कि उसकी इनके साथ क्या करने की योजना है। हमें अपने जीवन यापन के लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं थी, हमारी कृषि भूमि से हर महीने पर्याप्त आमदनी हो जाती थी, खर्च के बाद काफी कुछ इकठ्ठा भी होता रहता था।  लेकिन इरेन की रूचि केवल बुनाई में थी और इसमें उसे आश्चर्यजनक महारत हासिल थी।  मेरा समय केवल उसे देखते हुए गुजर जाता, उसके समुद्री साही जैसे चांदी के रंग के हाथ, जिनमें बुनाई की सलाईयां चमकती रहती।  और फर्श पर रखी एक या दो बुनाई की टोकरियां, धागों के उछलते हुए खूबसूरत गोले। यह सब बहुत सुन्दर था।

मकान के लेआउट की चर्चा आखिर क्यों न की जाये। एक भोजन कक्ष, एक बैठक सोफे से सजी हुई, पुस्तकालय, दूर के हिस्सों में तीन शयन कक्ष, वह हिस्सा जो रोड्रिग्ज़ पेना के सामने की ओर था। शाह बलूत की लकड़ी से बने विशाल दरवाजे वाला एक मात्र बरामदा उसे आगे के हिस्से से अलग करता था जहाँ एक स्नानागार, किचन, हमारे शयन कक्ष और हाल था। मकान में प्रवेश गलियारे से हो कर होता था और लोहे का दरवाजा बैठक में खुलता था।  हमारे शयन कक्ष के दरवाजे बैठक के दोनों ओर थे और इसके दूसरी ओर पिछले हिस्से वाले बरामदे का रास्ता था।  इस रास्ते पर चलते हुए शाह बलूत की लकड़ी का दरवाजा पड़ता जिसके आगे मकान का दूसरा हिस्सा था। इस दरवाजे के ठीक पहले बाईं ओर गलियारे में बाएं मुड़ा जा सकता था जो किचन और स्नानागार को जाता था। जब दरवाजा खुला होता तभी आपको मकान के सही आकार का अंदाजा होता। इसके बंद रहने पर यह आपको किसी अपार्टमेंट सा लगता, उस तरह का जैसा वे आजकल बनाते हैं, मुश्किल से इधर उधर चलने भर की जगह के साथ। इरेन और मैं हमेशा मकान के इसी हिस्से में रहते थे और बड़े दरवाजे के दूसरी तरफ कभी कभार ही जाते थे, सफाई को छोड़ कर। फर्नीचर पर कितनी धूल बैठती थी यह अनुमान लगाना अविश्वसनीय था। हो सकता है कि ब्यूनस आयर्स एक साफ सुथरा शहर हो लेकिन ऐसा इसके निवासियों के कारण था अन्य किसी वजह से नहीं।  हवा में बहुत अधिक धूल थी और जरा सी हवा चलते ही यह संगमरमर के ढाँचे और चमड़े से मढ़ी बहुकोणीय हीरक डिजाइन वाली मेजों पर जम जाती। इसे किसी पंख वाले झाड़ू से हराने में बहुत प्रयत्न करना पड़ता, यह हवा में उड़ जाती और फिर कुछ ही क्षणों पश्चात पियानो पर और फर्नीचर पर जम जाती।

मुझे हमेशा इस की स्मृति स्पष्ट रहेगी क्योंकि यह अत्यंत सरलता से और बिना किसी शोर शराबे के घटित हुआ। इरेन अपने शयन कक्ष में बुनाई कर रही थी। रात के आठ बजे थे, जब मैंने एकाएक चाय के लिए पानी गरम करने का निर्णय किया। मैं बरामदे की ओर बड़े दरवाजे तक गया जो कि खुला हुआ था, फिर हाल में किचन की ओर मुड़ गया। तभी मैंने पुस्तकालय या फिर भोजन कक्ष में कोई आवाज़ सुनी। आवाज़ काफी धीमी और अस्पष्ट थी। कोई कुर्सी कालीन पर गिरी थी अथवा आपस में बात करने की मद्धिम आवाजें। उसी समय अथवा एक क्षण पश्चात् मैंने यह आवाज़ दरवाजे की ओर के दो कमरों की ओर जाने वाले रास्ते के अंत में सुनी। मैंने देर हो जाने से पूर्व ही दौड़ कर  दरवाजे को बंद कर दिया। मैं अपने शरीर का सारा बोझ उस पर डाले खड़ा रहा, सौभाग्य से चाभी वाला हिस्सा हमारी ओर था। मैंने विशालकाय कुण्डी लगा दी, केवल सुरक्षा के लिए। मैं किचन में गया, केतली में पानी गर्म किया और जब मैं चाय की ट्रे के साथ वापस आया, मैंने इरेन से कहा “मुझे बरामदे का दरवाजा बंद करना पड़ा।  उन्होंने पिछले हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया है।”

उसने अपना बुनाई का सामान गिर जाने दिया और मेरी ओर थकी, गंभीर आँखों से देखा।  “क्या तुम्हें पक्का विश्वास है?”  मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया।
“उस दशा में,” उसने अपना बुनाई का सामान उठाते हुए कहा, “हमें इस तरफ ही रहना होगा।”
मैंने सावधानी से चाय की चुस्की ली लेकिन उसने अपना काम फिर से शुरू करने में समय लगाया। मुझे स्मरण है वह भूरे रंग की बनियान बुन रही थी।  मुझे वह पसंद थी।

पहले कुछ दिन कष्टकारी थे क्योंकि हमारा बहुत सा सामान उस हिस्से में पड़ा हुआ था जिस पर कब्ज़ा हो गया था।  उदाहरण के लिए, मेरा फ्रेंच साहित्य का संग्रह अब भी पुस्तकालय में था। इरेन की बहुत सी स्टेशनरी और चप्पलों का वह जोड़ा जिसे वह जाड़ों में काफी अधिक पहनती थी उधर ही छूट गया था।  मुझे ब्रियर पाइप की कमी महसूस होती थी और मेरे विचार से इरेन को हैस्पेरीडीन की पुरानी बोतल के लिए अफसोस होता था।  यह अक्सर कई बार हुआ ( लेकिन शुरुआत के कुछ दिनों में ही ) कि हम कोई कैबिनेट या दराज़ बंद करते और एक दूसरे की ओर दुःख से देखते।

“यह यहाँ नहीं है।”

एक और चीज जो मकान के दूसरे हिस्से में खो गयी। लेकिन कुछ फायदे भी थे। सफाई इतनी आसान हो गयी थी कि यदि हम देर से, नौ बजे के आसपास भी उठते, ग्यारह बजे तक आराम से हाथ बांधे बैठे होते। इरेन को मेरे साथ किचन में आ कर लंच बनाने में मेरी मदद करने की आदत पड़ गयी। इरेन कुछ ऐसा बना लेती जिसे शाम को ठंडा ही खाया जा सकता था। हम इस व्यवस्था से खुश थे क्योंकि शयनकक्ष से उठ कर शाम को खाना पकाना निश्चय ही एक झंझट था। अब हम रात का भोजन इरेन के ही कमरे में ठन्डे खाने के साथ कर लेते।

चूँकि इससे उसे बुनाई के लिए अधिक समय बच जाता था, इरेन संतुष्ट थी। मैं अपनी किताबों के बिना कुछ खोया हुआ सा रहता था। लेकिन इतना नहीं की अपनी बहन को कष्ट दूँ। मैं अपने पिता के संगृहीत टिकटों को फिर से व्यवस्थित किया करता जिससे कुछ समय कट जाता। हम अपने को पर्याप्त आनंदित करते, दोनों अपनी अपनी चीजों से। हम लगभग हमेशा ही एक साथ इरेन के कमरे में हुआ करते जो अधिक आरामदायक था। इरेन अक्सर पूछती “ इस पैटर्न को देखो जो मैंने अभी बनाया है, क्या यह तिपतिया जैसी नहीं दिख रहा?”

कुछ समय बाद मैं उसके सामने कागज का चौकोर टुकड़ा रखता ताकि वह ‘उपेन एट मालमेडी’ के किसी टिकट की खूबसूरती देख सके। हम ठीक थे और धीरे धीरे हमने सोचना छोड़ दिया था। आप बिना सोचे भी जी सकते हैं। (जब भी इरेन नींद में बात करती मैं तुरंत जाग जाता और दूर चला जाता। मैं उस आवाज़ का अभ्यस्त नहीं हो पाया जो किसी मूर्ति अथवा तोते की आवाज़ सी लगती, आवाज़ जो स्वप्न में से आती थी, गले में से नहीं। इरेन ने बताया कि मैं अपनी नींद में बहुत हाथ पैर पटकता था और कम्बल को नीचे गिरा देता था। हमारे मध्य बैठक का कमरा था लेकिन रात में आप मकान में हर चीज सुन सकते थे। हम एक दूसरे का साँस लेना, खाँसना तक सुन लेते थे। यहाँ तक कि दूसरे का उठ कर लाइट के स्विच तक जाना भी महसूस कर लेते थे जो कि अक्सर होता था। हम दोनों में से कोई सो नहीं पाता था।

हमारी रात्रिकालीन खटर पटर के अतिरिक्त मकान में सब कुछ शांत था। दिन में गृहकार्यों से आती आवाज़ें, बुनने की सलाइयों की आवाज़, स्टैम्प एलबम के पन्ने  पलटने की आवाज़ आती रहती थी। संभवतः मैंने बताया था कि शाह बलूत की लकड़ी का बना दरवाजा विशाल था। किचन अथवा स्नानागार में, वह जो कब्ज़ा कर लिए गए हिस्से से लगा हुआ था, हम जोर से बात कर सकते थे अथवा इरेन लोरी गा सकती थी। किचन में हमेशा बहुत आवाज़ होती थी, प्लेट्स की, ग्लासों की जब कि अन्य आवाज़ों से व्यवधान होता था। हम वहां कभी खामोश नहीं रहते थे लेकिन जब हम अपने कमरों में या बैठक में जाते तो मकान अधिक शांत हो जाता। अर्द्ध प्रकाशित। हम इधर उधर बहुत संभाल कर चलते ताकि एक दूसरे को डिस्टर्ब न करें। मेरे विचार से, इसीलिए जब इरेन ने नींद में बात करना शुरू किया तो मैं तुरंत ही जाग गया।)

परिणाम को छोड़ कर यह केवल पहले की बातों को एक बार फिर दोहराने जैसा ही था। उस रात मुझे प्यास लगी थी, और सोने जाने से पूर्व, मैंने इरेन को बताया था कि मैं एक ग्लास पानी लेने के लिए किचन तक जा रहा था। शयन कक्ष के दरवाजे से मैंने (वह बुनाई कर रही थी) किचन में शोर की आवाज़ सुनी। यदि किचन में नहीं तो स्नानागार। वह रास्ता आवाज़ को मद्धिम कर दे रहा था। इरेन ने नोटिस किया कि मैं कितनी तेजी से रूक गया था, और बिना एक शब्द कहे वह मेरी बगल में आ गयी। हम खड़े खड़े शोर सुनते रहे जो बढ़ता ही जा रहा था और निश्चित था कि वे शाह बलूत के दरवाजे के हमारी वाली साइड में थे। यदि किचन में नहीं तो स्नानागार में या फिर मोड़ पर हाल में, बिलकुल हमारे बराबर ही। हमने एक दूसरे की ओर देखने की प्रतीक्षा नहीं की। मैंने इरेन की बांह पकड़ी और उसे अपने साथ लोहे के दरवाजे की ओर भागने को मजबूर कर दिया, बिना पीछे की ओर देखे। आप शोर सुन सकते थे, यद्यपि धीमा ही था लेकिन पहले की तुलना में तेज, ठीक हमारे पीछे। हमने लोहे का बाहरी दरवाजा बंद किया और गलियारे में रुक गए। अब सुनने को कुछ नहीं बचा था।

“उन्होंने हमारे हिस्से पर कब्जा कर लिया,” इरेन ने कहा।  बुनाई का धागा खुल गया था और उसके हाथों से होता हुआ दरवाजे की ओर जाता उसके नीचे गुम हो गया था। जब उसने देखा कि ऊन के गोले दरवाजे के दूसरी तरफ ही रह गए हैं, उसने बुनाई का सामान, बिना उनकी ओर देखे, नीचे गिरा दिया।

“क्या तुम्हें कोई चीज साथ लाने का अवसर मिला?” मैंने निराशा से पूछा।

“नहीं, कुछ नहीं,” हमारे पास अब वही था जो हम पहने हुए थे।  मुझे अपने शयन कक्ष के बार्डरोब में रखे पंद्रह हजार पीसो की भी याद आयी। किंतु अब बहुत देर हो चुकी थी।  मैं अभी भी अपनी कलाई घड़ी पहने हुए था और मैंने देखा कि उसमें उस समय 11 बजे हुए थे। मैंने इरेन को कमर से पकड़ कर सहारा दिया (मेरे विचार से वह रो रही थी) और इस तरह हम गली में चले आये। जाने से पूर्व हमें बहुत ख़राब लगा।  मैंने मुख्य द्वार का ताला ठीक से बंद किया और चाभी सीवर में फेक दी। इसका किसी गए गुजरे बदमाश के अंदर जाकर मकान को रात के समय  लूट लेने  और कब्ज़ा कर लिए गए मकान के अंतर से कुछ लेना देना नहीं था।

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जुलिओ कोर्टाज़ार (26 अगस्त 1914 – 12 फरवरी 1984) अर्जेंटाइना के ख्यातिलब्ध कहानीकार हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कहानी पॉल ब्लैकबर्न के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है। श्रीविलास सिंह चर्चित कवि, लेखक एवं अनुवादक हैं। उनसे sbsinghirs@gmail.com पर बात हो सकती है।

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