Tagkahani

स्केच

कहानी :: सौरभ पाण्डेय 1 मैं पेंसिल की लकीरों में छुपा हुआ पापा का पुराना चेहरा देख रहा था. अब पापा का चेहरा बहुत बदल गया है. मेरी उनसे कभी कोई खास घनिष्ठता नहीं रही, वजह कुछ खास नहीं, शायद ईडिपस कॉम्प्लेक्स भी हो सकता है. असल में उन्हें बिल्कुल सादा जीवन पसंद है. बिल्कुल सादा जीवन जीना मुझे चौबीसों घंटे कैमरे की नजर में रहने जैसा लगता है. मैं जब से पापा को देख रहा हूँ, वो उसी कैमरे की नजर में हैं...

घृणा

कहानी :: परवीन फैज़ जादा मलाल अनुवाद और प्रस्तुति : श्रीविलास सिंह “यह पूरे चार किलो है।” जब उसने ये शब्द सुने, उसके होंठो पर एक मुस्कराहट फैल गयी और उसने अपने छोटे से बेटे की ओर देखा….. दुकानदार ने बात जारी रखी : “बहन ये रुपये लो….पूरे आठ रुपये हैं।” उसने अपनी चादर से अपना हाथ बाहर निकाला और दुकानदार से रुपये ले लिए। अपराह्न की धूप में वह तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ी। वह...

रिश्ते

कहानी  :: श्रीविलास सिंह सड़क दूर-दूर तक सुनसान थी। किसी आदमी का कहीं कोई नामो-निशान नहीं। सन्नाटा बिलकुल तने हुए तार की भांति, हल्की-सी चोट पड़ते ही चीख पड़ने को आतुर था। कहीं कोई चिड़िया, कोई जीव भी नहीं, कोई आवाज़ नहीं। जैसे सब कुछ स्तब्ध हो अभी कल परसों ही गुज़रे हादसे से। कभी-कभार कोई कुत्ता ज़रूर दिख जाता था। पर वह भी सारे वातावरण की तरह सहमा हुआ-सा ही लगता। आतंक और भय हवा में घुला हुआ था। शाम...

पचखा

कहानी :: निशांत पचखा जेठ की सुबह कुछ ऐसी होती थी कि पूरा गाँव एकसाथ जागकर अपनी-अपनी ड्योढ़ी पर आ खड़ा होता था। पूरब दिशा में सूर्य जब तक अपनी पूरी लालिमा बिखेरता उसके पहले ही गाँव के सभी लोग जाग जाते थे। औरतें सबसे पहले जागती थीं। औरतों का जागना समूचे गाँव को संगीत की ध्वनि से भर देता था। कितने ही सुर एक-दूसरे से टकराकर रोज ही अनंत में खो जाते थे। हर घर से अलग-अलग आवाज़ें आती थीं। हर घर की औरतें...

चक्र

कहानी :: चक्र : जोर्ग लूई बोर्हेस अनुवाद और प्रस्तुति : श्रीविलास सिंह जोर्ग फ़्रांसिस्को इसिडोरो लुइस बोर्हेस एकेवेडो का जन्म २४ अगस्त, १८९९ को और मृत्यु १४ जून, १९८६ को हुई। वे अर्जेंटीना के प्रसिद्ध कहानीकार, निबंधकार, कवि और अनुवादक थे। वे स्पेनिश भाषा और विश्व साहित्य के महत्वपूर्ण नाम हैं। उनकी रचनाओं में दर्शनिकता पायी जाती है और कई समीक्षकों के अनुसार बीसवीं सदी के लातिन अमेरिकी साहित्य...

पहलवान की ढोलक

कोरोना साहित्य :: कहानी : फणीश्वर नाथ रेणु महामारी में साहित्य को देखने-समझने-पढ़ने के कॉंटेक्स्ट काफ़ी बदले हैं. पुराने साहित्य को भी नयी दृष्टि से देखा जा सकता है. रेणु की यह कहानी उसी का एक उदाहरण है. उनकी तीक्ष्ण दृष्टि, जिजीविषा, उम्मीद, महामारी की भयावहता के साथ-साथ तंत्र की अनुपस्थिति और असफलताओं पर भी अभिन्न चोट करती है. ग्राम पूरी तरह से छोड़ दिया गया है, यातना के गवाह सिर्फ़ कुत्ते और...

मकान

कहानी :: मकान : डॉ. लवलेश दत्त “ठाकुरदास…ओ ठाकुरदास…” अन्दर आते हुए डाकिये की आवाज़ ने अमरावती को असहज कर दिया। उसने पास बैठी अपनी दस वर्षीया बेटी कीर्ति को संबोधित करते हुए उत्तर दिया, “जा…डाकिया ताऊ के लै कुस्सी डार दे” फिर थोड़ी ऊँची आवाज में डाकिए से कहा, “वे घरै नाय हैं दद्दा…आप भीतर आवौ…” अमरावती ने अपने सिर पर पड़ा पल्ला आवक्ष खींच लिया और छप्पर से बाहर...

जस्ट डांस

कहानी :: जस्ट डांस : कैलाश वानखेड़े मुख्यतः स्वानुभूत और सहानुभूत के अंतर अथवा विपर्यय एवं अम्बेडकरवादी विचारधारा का आधार लेकर दलित साहित्य की तमाम धाराओं, विधाओं और लेखनी को सामान्य या कि कथित मुख्यधारा के साहित्य से अलगाया जाता है. पारम्परिक पाठकों को अस्मितावाद अथवा अम्बेडकरवाद अथवा दलितवाद की ख़ुराक उतनी ही पसंद है जिसमें उनकी अपनी चुटिया न खुलती हो, उनका खुद का गुप्त-प्रकट तिलक-छापा...

धर्म

सुशील कुमार भारद्वाज की कहानी ‘धर्म’ “आप क्यों नहीं खाना चाहते हैं?  मैं अच्छा खाना नहीं बनाती , इसलिए?” सोफिया की ये बात मुझे निरुत्तर कर गई .  मैं सोच में पड़ गया कि आखिर क्या कहूँ उससे?  नहीं खाऊंगा तो पता नहीं क्या -क्या सोचेगी?  और खाऊँ तो कैसे?  उसका दोष ही क्या है?  गलत समय पर तो मैं आया.  आया भी तो हाल- समाचार जानने के बाद उसके दफ्तर में रूकने की जरुरत ही क्या थी ? उस समय दफ्तर...

डायन

डायन : तुषार कान्त उपाध्याय उस दिन घर में कोहराम मचा था . धीरे – धीरे  , सुगबुगाहट  के लहजे में  . जैसे सुनामी के पहले की हवाएँ . मईया चिंतित खटिया पर बैठी माई को समझा रही थीं . कुछ नजर- गुज़र से बचाने का तरीका . बीच –बीच में काली माई की  दुहाई भी देती जातीं . वही रक्षा करेंगी .  तो माई कुलदेवी –कुलदेवता को भाख रही थी . जैसे हर मुसीबत में , वैसे आगे भी कुलदेवी अपने आंचल  की छांह  रखेंगी .  पन्द्रह...