कविता-भित्ति ::
श्रीधर पाठक की कविता सुंदर भारत

श्रीधर पाठक

सुंदर भारत

1.

भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल
उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल
मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट अचंचल
सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

2.

उपवन-सघन-वनालि, सुखमा-सदन, सुखाली
प्रावृट के सांद्र धन की शोभा निपट निराली
कमनीय-दर्शनीया कृषि-कर्म की प्रणाली
सुर-लोक की छटा को पृथिवी पे ला रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

3.

सुर-लोक यहीं पर, सुख-ओक है यहीं पर
स्वाभाविकी सुजनता गत-शोक है यहीं पर
शुचिता, स्वधर्म-जीवन, बेरोक है यहीं पर
भव-मोक्ष का यहीं पर अनुभव भी आ रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

4.

हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत
हे न्याय-बंधु, निर्भय, निर्बंधनीय भारत
मम प्रेम-पाणि-पल्लव-अवलंबनीय भारत
मेरा ममत्व सारा तुझमें समा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

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श्रीधर पाठक ( 11 जनवरी 1860 – 13 सितम्बर 1928) हिंदी के समादृत कवि हैं। वनाश्टक, काश्मीर सुषमा, देहरादून, भारत गीत, गोपिका गीत, मनोविनोद आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उन्होंने कई प्रसिद्ध रचनाओं के काव्यानुवाद किये और बच्चों के लिए बाल-साहित्य भी रचा।