कविताएँ ::
प्रिया प्रियदर्शिनी
1.अनुपस्थिति
अपनी कविताएँ ले जाओ
मैं जीना चाहती हूँ
ये मुझे तूम्हारे नहीं होने का एहसास दिलाती हैं
तुम्हारी अनुपस्थिति में भी तुम ही हो साथ मेरे।
कितना आसान था ये कह देना
कि कुछ नहीं है हमारे बीच
अगर कुछ नहीं है तो
क्यों ये मुझे जीने नहीं देतीं
क्यों रोज़ इंतजार करती हूँ मौत का।
तुम मेरे भीतर उतना ही हो जितना
समंदर में होता है नमक
सिर्फ़ इतना जितनी शांति भरी होती है
सर्दियों की रात में
जितनी राख होती है आग में।
2. अधूरापन
मेरे बदन से सट कर जब सोते थे
क्या सोचते थे?
मेरे शरीर में क्या खोजते थे?
तुम्हारे सारे खोये हुऐ प्यार?
कुछ मिला?
या वहाँ से भी अंधेरा लिए वापस लौटे?
या शायद तुमने देख लिया
कुछ बचा नहीं था भीतर
जो तुम मांग सको
कुछ जो मैं तुम्हें दे सकती
हम सिर्फ़ अपने खालीपन से भरे हुए थे
कविताओं से और उनसे
पैदा होने वाले अधूरेपन से।
3.ख्वाहिश
वादे जो किये थे तुमसे
वो तुम्हारे न होने से भी पूरे हो गए
मोहब्बत की रंजिश ही सही
हम इजाज़त नहीं लेंगे।
कहा था तुमसे मेरी मौत की ख़बर
तुम तक नहीं पहुँचने दूँगी
हमने रूह भी दफना दी
और लिबास पर इक सिलवट भी न आई।
अचानक रुक गए हैं ख़त हमारे
कलम ने सियाही में डूब कर
खो दिये अपने सारे शब्द
कुछ कविताओं की इतनी ही ख्वाहिश होती है।
4. मेरा सफ़र खत्म हुआ
कितने हड़बड़ाए होते हैं हम अपने दुखों
के पास वापस लौटने के लिए
दुनिया भर का दुःख और उन सब में सबसे भारी तुम्हारा दुःख
तुम्हारी दी हुई चीजों में से सबसे कीमती यही है।
तुम्हीं ने कहा था कोई भी करेगा प्यार तुमसे
ये सुन कर न जाने क्यों ख़ून जमने लगा था।
गुस्सा था या उदासी ये याद नहीं
तसल्ली सिर्फ़ इस बात की है
कि इसके सामने बाकी सारे दुःख छोटे पड़ गए
और शायद ऐसा दुःख फ़िर कभी कोई नहीं दे पायेगा
तुम से मिल कर
मेरा सफ़र खत्म हुआ।
5. तुम हो
तुमने कहा प्यार है मैंने मान लिया
कहा गलती है मैंने मान लिया
फ़िर कहा प्यार नहीं है मैंने मान लिया
अब कल कुछ और कहोगे तो मैं वो भी मान लूँगी।
सारे अस्पतालों के बिस्तर पर एक ही बात लिखी थी
तुम्हारे शरीर में घाव जल्दी नहीं भरते
और दर्द कभी साथ नहीं छोड़ता
उन सब को घर दो अपने भीतर।
शाम आएगी अपनी उदासी लिए
और सुबह का इंतजार करेगी
रात एक कोने में अकेली बैठी रहेगी
अंधेरा उसका हाथ कभी नहीं छोड़ेगा।
तुम्हारी खुशबू अपने बालों में लिए फिरती हूँ
और हवा बार बार इनसे कहती है
तुम हो
तुम हो
तुम हो।
6. पत्थर
पानी से टकराते पत्थर मुलायम नहीं होते
पर पानी उन पर अपनी छाप छोड़ जाता है।
किसी को दी गई चीज़ें वापस नहीं ली जा सकती हैं
न प्यार और न ही दुःख।
इन सब के बाद बचता है बस अंधेरा
मुर्दा शांति से भरा हुआ।
फिर इस सन्नाटे का शोर
जो आपको सोने न दे।
नहीं थी कोई आकांक्षा
फिर भी मारे गए हम प्रेम के हाथों।
7. हमें एक साथ समंदर होना था
कहीं दूर आसमान को पानी होना था
और तारों को आसमान
कहीं दूर नदी को समंदर से मिलना था
और समंदर को पहाड़
कहीं दूर मैं तुमसे मिलती
और मुझे वहीं खत्म हो जाना था
मेरे शरीर को तुम्हारे शरीर से अलग नहीं होना था
हमें एक साथ समंदर होना था।
8.मुझे जीने दो
तुम्हें अपने दिल से निकाल कर फेंक देना चाहती हूँ
वैसे ही जैसे तुमने मुझे निकाल कर फेंक दिया अपने जीवन से
दिल को घर बना दिया और बस गए बिना इजाज़त लिए
अब साँस पकड़ बैठे हो, फेफड़ों में तुमने अपनी जड़ें उगा दीं हैं
सारी जंगें जीतने के बाद
हम मोहब्बत से हारे
जब तुम गए तो तुमको चले जाना था
पर तुम अब भी यहीं हों
शायद कभी नहीं जाने के लिए।
मुझे जीने दो।
9. कविता
किसी ने कहा मुझसे
तुम्हारी कविताओं में बातें अक्सर अधूरी लगती हैं
मानो कुछ शब्द छूट जाते हैं
फ़िर भी कविता पूरी हो
अब यह कैसे लिखा जाए कि सब
छूट जाने से ही कविता शुरू होती है
जब शब्द खाली हो जाते हैं
और भाषा अर्थहीन
अधूरी रह गई हर चीज़ कविता है
और लफ़्ज़ों का खोया हर इंसान कवि।
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प्रिया प्रियदर्शिनी की हिंदी कविताओं के प्रकाशन का यह पहला अवसर है। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शोधरत हैं। उनका अंग्रेज़ी में लिखा काम और अनुवाद इंद्रधनुष पर देखे जा सकते हैं : I draw maps hoping to find an escape | लड़कियाँ कोई मशीन नहीं हैं | स्त्रियों को पता होना चाहिए कि वे नियम तोड़ सकती हैं | मैं एक स्त्री हूं जो खुद को जन्म दे रही है | स्त्रीवाद एक संघर्ष है