कहानी ::
चक्र : जोर्ग लूई बोर्हेस
अनुवाद और प्रस्तुति : श्रीविलास सिंह
जोर्ग फ़्रांसिस्को इसिडोरो लुइस बोर्हेस एकेवेडो का जन्म २४ अगस्त, १८९९ को और मृत्यु १४ जून, १९८६ को हुई। वे अर्जेंटीना के प्रसिद्ध कहानीकार, निबंधकार, कवि और अनुवादक थे। वे स्पेनिश भाषा और विश्व साहित्य के महत्वपूर्ण नाम हैं। उनकी रचनाओं में दर्शनिकता पायी जाती है और कई समीक्षकों के अनुसार बीसवीं सदी के लातिन अमेरिकी साहित्य में ‘जादुई यथार्थवाद’ की शुरुआत उन्हीं की रचनाओं से हुई। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं A Universal History of Infamy (1935), Ficciones (1944), El Aleph (1949), Labyrinths (1962) और The Book of Sand (1975). प्रस्तुत कहानी का अनुवाद स्पैनिश से अंग्रेज़ी में एंड्रु हर्ले ने किया है।
— श्रीविलास सिंह
चक्र
मैं एक लकड़हारा हूँ। मेरा नाम महत्वपूर्ण नहीं है। वह झोपड़ी, जिसमें मैं पैदा हुआ और जल्दी ही जहाँ मैं मरने वाला हूँ, जंगल के किनारे पर स्थित है। लोग कहते हैं कि इन जंगलों का कोई ओर छोर नहीं और ये समुद्र के किनारे तक फैले हुए हैं, समुद्र जो पूरे संसार को घेरे हुए है। लोग कहते हैं कि मेरे मकान जैसे लकड़ी के घर समुद्र में यात्रा करते रहते हैं। मुझे पता नहीं, मैंने उन्हें कभी देखा नहीं है।
मैंने जंगल के दूसरी तरफ की दुनिया भी नहीं देखी थी। मेरे बड़े भाई ने, जब हम बच्चे थे, तभी, कसम दिलाई थी कि हम दोनों इस जंगल के पेड़ तब तक काटते रहेंगे जब एक भी खड़ा पेड़ बचा रहेगा। मेरा भाई अब मर चुका है और अब मैं किसी और चीज़ के पीछे पड़ा हुआ हूँ और हमेशा ही पड़ा रहूँगा। उस दिशा में जिधर सूर्य अस्त होता है, एक छोटी नदी है, जिसमें मैं हाथ से मछलियां पकड़ा करता हूँ। जंगल में भेड़िए हैं लेकिन भेड़ियों ने मुझे कभी नहीं डराया और मेरी कुल्हाड़ी ने भी मुझे कभी निराश नहीं किया। मैंने हिसाब नहीं रखा है कि मेरी उम्र क्या है लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ- मेरी आँखों से अब ठीक से दिखाई नहीं पड़ता। नीचे गाँव में, जहाँ अब मैं नहीं जाता क्योंकि मैं रास्ता भूल जाऊँगा, सब कहते हैं कि मैं कंजूस हूँ, लेकिन एक लकड़हारा आख़िर बचा ही कितना सकता है।
मैं अपने घर का दरवाजा एक चट्टान की सहायता से बंद किए रहता था ताकि बाहर की बर्फ़ भीतर न आए। एक साँझ मैंने पहले भारी और घिसटते हुए कदमों की और फिर दरवाजा खटखटाने की आवाज़ सुनी। मैंने दरवाजा खोला और एक अजनबी भीतर आया। वह एक लम्बा और उम्रदराज व्यक्ति था। वह एक चिथड़ा हो चुका कम्बल लपेटे हुए था। उसके चेहरे के आर-पार कटे का गहरा निशान था। लगता था समय ने उसे शारीरिक निर्बलता के मुकाबले अधिकार की शक्ति अधिक दी थी। किंतु ऐसा होते हुए भी मैंने देखा कि बिना लाठी टेके उसके लिए चल पाना बहुत कठिन था। हमने बस थोड़ी सी बात की जो अब मुझे स्मरण नहीं। फिर आखिर में आगंतुक ने कहा,
“मैं बिना घर का हूँ और जहाँ भी संभव होगा मैं सो जाऊँगा। मैं दूर सैक्सनी से राह भटकता चला आ रहा हूँ।”
उसके शब्द उसकी उम्र पर जंच रहे थे। मेरे पिता हमेशा ही सैक्सनी के बारे में बात करते थे, अब लोग उसे इंग्लैंड कहने लगे थे।घर में मछली और कुछ रोटियाँ पड़ी थी। जब हम खा रहे थे, हमने कोई बात नहीं की। फिर बारिश शुरू हो गयी। मैंने कुछ खालें ली और उसके लिए मिट्टी के फर्श पर, जहाँ मेरे भाई की मृत्यु हुई थी, बिस्तर सा बना दिया। जब रात आयी हम सो गए।
तब भोर हो चुकी थी जब हमने घर छोड़ा। वर्षा बंद हो चुकी थी और जमीन नयी बर्फ से ढक गयी थी। अजनबी की छड़ी गिर गयी और उसने उसे उठा लाने का मुझे आदेश दिया,
“मैं वह सब क्यों करूँ जो करने के लिए तुम मुझे कह रहे हो?” मैंने उससे कहा।
“क्योंकि मैं एक राजा हूँ,” उसने उत्तर दिया ।मैंने सोचा वह पागल था। मैंने छड़ी उठाई और उसे दे दी। उसके अगले शब्दों के साथ ही उसकी आवाज़ परिवर्तित हो गयी। “मैं सेक्जेंस का राजा हूँ। अनेक बार मैंने कठिन लड़ाईयों में उनका नेतृत्व किया था लेकिन वही होता है जो भाग्य का आदेश होता है। एक दिन मैंने अपना राज्य खो दिया। मेरा नाम इसर्न है और मैं ओडिन1 का वंशज हूँ।”
“मैं ओडिन की पूजा नहीं करता,” मैंने उत्तर दिया। “मैं जीसस की पूजा करता हूँ।”
वह चलता रहा मानो मेरी बात उसने सुनी ही न हो।
“यद्यपि मैं देश से निष्कासित भटक रहा हूँ, लेकिन फिर भी मैं राजा हूँ क्योंकि मेरे पास चक्र है। क्या तुम उसे देखना चाहते हो?” उसने अपना हाथ खोला और अपनी सूखी हथेली दिखाई। उसमें कुछ नहीं था। उसका हाथ ख़ाली था। उसी समय मुझे ध्यान आया कि वह अपनी मुट्ठी हमेशा कस कर बंद किए हुए रहता था। उसने मेरी आँखों में देखा।
“तुम इसे छू सकते हो।”
मेरे अपने संदेह थे लेकिन मैंने हाथ बढ़ाया और अपनी उँगलियों से उसकी हथेली को छुआ। वहाँ मैंने कोई ठंडी चीज महसूस की और एक तीव्र चमक देखी। उसका हाथ झटके से बंद हो गया। मैंने कुछ नहीं कहा।
“यह ओडिन का चक्र है,” बूढ़े व्यक्ति ने धैर्यपूर्ण आवाज़ में कहा, मानों वह किसी बच्चे से बातें कर रहा हो।” इसका बस एक ही पार्श्व है। दुनिया में और कोई चीज़ नहीं जिसका केवल एक ही पार्श्व हो। जब तक इसे मैं अपने हाथ में धारण किये हूँ, मैं राजा रहूँगा।”
“क्या यह सोना है?” मैंने पूछा।
“मुझे नहीं मालूम। यह ओडिन का चक्र है और इसका बस एक ही पार्श्व है।”
तब मुझे एकदम से चक्र के स्वामित्व की कष्टदायक इच्छा का अनुभव हुआ। यदि यह मेरा हो तो मैं इसे सोने के टुकड़े के बदले बेच सकता था और तब मैं राजा हो जाता।
“अपनी झोपड़ी में मैंने रुपयों से भरी एक तिजोरी छिपा रखी है। स्वर्ण मुद्राएं, और वे मेरी कुल्हाड़ी की भाँति चमकती हैं,” मैंने यायावर से कहा, जिसे मैं आज के दिन तक घृणा करता हूँ। “यदि तुम मुझे ओडिन(1) का चक्र दे दो तो मैं तुम्हें वह तिजोरी दे दूंगा।”
“मैं नहीं दूँगा,” उसने दो टूक जवाब दिया ।
“फिर तुम अपने रास्ते जा सकते हो,” मैंने कहा। वह दूसरी ओर मुड़ गया। उसके सिर के पिछले हिस्से पर कुल्हाड़ी के एक ही वार से उसका काम तमाम हो गया। वह लड़खड़ाया और गिर गया। लेकिन जैसे ही वह गिरा, उसने अपना हाथ खोल दिया और मैंने हवा में चक्र की चमक देखी। मैंने उस जगह अपनी कुल्हाड़ी से निशान लगाया और फिर उसकी देह को खींच कर छोटी नदी के तल तक ले गया। मैं जानता था नदी कहाँ छिछली है। मैंने उसका शव वहाँ फेंक दिया।जब मैं अपने घर वापस आया, मैंने चक्र को बहुत ढूँढा। लेकिन मैं उसे पा न सका। मैं वर्षों से उसे तलाशता आ रहा हूँ।
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- : ओडिन नॉर्स (वाइकिंग्स) लोगों का देवता जो असगॉर्ड का राजा था। एक मिथकीय चरित्र।
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श्रीविलास सिंह कवि, कथाकार और अनुवादक हैं। उनसे sbsinghirs@gmail.com पर बात हो सकती है। श्रीविलास सिंह से और परिचय और इन्द्रधनुष पर उनके पूर्व प्रकाशित कार्यों के लिए यहाँ देखें : चैत का पुराना उदास गीत | मेरे लिए एक खिड़की पर्याप्त है | क्रांति उपजती है शोक के घावों से