डायरी ::
तोषी पांडेय
आज से ४ साल पहले मेरे थेरिपिस्ट ने यह घोषित कर दिया था की मुझे पी टी एस डी है. यानि पोस्टट्रामेटिक डिसऑर्डर. आज से चार साल पहले ये जानना और अब उसको पलट के देखना बहुत अलग तरह का एहसास है. मैं पिछले एक साल से ऑलमोस्ट बिस्तर में हूँ, नहीं कुछ जान लेवा नहीं है पर कई बार आपका अपना दिमाग आपको कई मृत्यु दे चुका होता है. शरीर से जीतना शायद थोड़ा आसान है पर दिमाग से लड़ना उस अदृश्य शक्ति से लड़ने जैसा है जिसका आपको कोई अंदाज़ा ही नही है. कई बार आप अपने ही दिमाग के भीतर कैद हो जाते हैं. वह शरीर में होने वाले एक छोटे लक्षण को भी आपके दिमाग के भीतर इतना बड़ा कर देता है कि आप चाहे जितनी कोशिश कर लें उससे निपटना आसान नही है, इस स्थिति को हेल्थ एंग्जायटी कहते हैं.
मैं पिछले एक साल से इस स्थिति से गुजर रही हूँ, जिसे हार्मोन इमबैलेंस कहते है, कभी मूड स्विंग, कभी खुद ही ईश्वर से प्रार्थना करने लगती हूँ कि वह अगला दिन न दिखाए, लोग बाग़… कुछ अच्छा नहीं लगता है. इन सबके बाद भी कुछ लोग हैं जिन्होंने अभी तक गिव अप नही किया है मुझ पर और कुछ एक के लिए मैंने गिव अप नहीं किया है. ये मैं बता क्यों रही हूँ? क्योंकि स्वास्थ्य और समाज पर हम बहुत कम बात करते हैं और हमारी अपनी मेमोरी हमारे शरीर पर कितना असर डालती है इसका विमर्श अंग्रेजी में तो बहुत ज्यादा है, पर हिंदी में ट्रामा का फिजिकल मेनिफेस्ट होना कैसा होता है इसपर बात अमूमन नहीं होती है.
हमारी देह हमारे समाज की प्रतिछाया है, इसको ऐसे समझा जाए, कि हमारी देह एक नए फ़ोन की तरह है जिसमें हमें कुछ सिस्टम इन बिल्ट करके दिए गये हैं और कुछ हम इधर उधर से डाउनलोड करते रहते हैं, समय गुजरते जाने के साथ हम कई बार बहुत सारा जंक भी जमा कर लेते है और इससे फ़ोन स्लो, हैंग और गलिच जैसा होने लगता है. हम हमारे शरीर के साथ भी ऐसा ही करते है. मैं अब 29 साल की हूँ और कुछ दिनों में 30 की हो जाऊँगी. समाज में रह रहे बहुत से लोगों की तरह मेरे भी सपने यही थे कि इस उम्र तक तो सब सेटल हो जायेगा, एक प्रेम करने वाला पार्टनर, एक जॉब, शायद एकाध बच्चे. अब जहाँ हूँ वहाँ से क्या ही कहा जाये वाला हाल है. नहीं ऐसा नहीं कि मैं जहाँ पर हूँ निराश हूँ, बल्कि मैं ज्यादा बेहतर स्थिति में हूँ. पिछले एक साल से लगातार अपनी तबियत में गिरावट के साथ मैंने तय किया कि अब अपनी हेल्थ अपने ही हाथ में लेनी है.
मैंने एच.आई.वी/ एड्स और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति पर शोध किया है और अपने शोध के दौरान मुझे ये तो समझ आने लगा था कि हेल्थ और हीलिंग के लिए एक होलेस्टिक अप्प्रोच ही बेहतर है. जब हम एलोपैथी की बात करते हैं तो वह केवल व्यक्ति के कुछ लक्षणों पर ही ध्यान देता है. हार्मोन इमबैलेंस होने की स्थिति में आपको केवल शारीरिक लक्षण नहीं आते हैं, बल्कि मूड स्विंग, चिडचिडापन, और, और भी बहुत कुछ होता है. ऐसे में मैंने ये तय किया इसका पूरा जवाब खोज कर रहूंगी. मैं स्प्रिचुअल तो हूँ ही पर अब मैंने अपने आप को माइंड, बॉडी, स्पिरिट के तौर पर समझना शुरू कर दिया है. यहाँ से मेरी जर्नी शुरू हुई मेरे भीतर की ओर, उन सभी रास्तों की ओर जिन्हें मैंने दफ़न कर दिया था. कुछ वक़्त पहले मैंने दो किताबें पढ़ी थीं – योर बॉडी कीप स्कोर और इट डज नॉट स्टार्ट विथ यू. इन दोनों किताबों और इससे पहले भी मैंने ऐसे कई सारे साहित्य का अध्ययन किया था जिससे मुझे ये समझ में तो आ गया था कि unresolved trauma आपकी फिजिकल बॉडी पर आने लगता है. नहीं मैं ये नहीं कहना चाहती कि कोई भी अपने शरीर पर रोग को बुला लेता है, पर इस बात की सम्भावना बहुत ज्यादा है कि आपका गिल्ट आपको परेशान करे. लॉक डाउन के दौरान मैंने ई.एफ.टी और टी.एफ.टी* के कोर्स वर्क भी किए थे ताकि मैं अपने साथ-साथ और लोगों की मदद भी कर पाऊं, इसमें भी मैंने सीखा कि शरीर के ऑर्गन के अलावा भी शरीर में बहुत कुछ है जिनका स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है. हम सब इस बात से पीछे नहीं हट सकते हैं कि हमारा शरीर और ये समूचा संसार उर्जा से बना हुआ है और ये उर्जा कई प्रकार से हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करती है और एनर्जी हीलिंग हमें कई बार बहुत मदद करती है. मेरे भीतर अपने अतीत के लिए इतना गुस्सा भरा हुआ था, कि अब बहुत धीरे धीरे उसको हटाना पड़ रहा और ये इतनी मुश्किल प्रक्रिया है जैसे किसी बहुत पुरानी हवेली की सफाई का जिम्मा किसी एक इंसान के सर पर डाल दिया गया हो. मेरे अतीत में चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज, एब्सेंट माता पिता, बेकार टीचर, मूर्ख प्रेमी हैं.मैं बचपन से ही इस बात के लिए कनविंस हूँ कि आई ऍम नॉट गुड एनफ. मैं अच्छी दिखती भी नही हूँ, मुझे कोई प्रेम नही करेगा और यदि कोई करेगा तो वो एहसान ही करेगा. वगैरह वगैरह.
ये सब बातें मुझे कभी मेरे परेंट्स ने बोली हैं और जब मुझे लगा कि वो मुझे प्रेम नही करते हैं तो जिसने मुझसे कहा कि वो प्रेम करते हैं, उन्होंने मेरा ९ साल की उम्र से ११ साल की उम्र तक सेक्सुअल एब्यूज किया और बार बार ये कहा कि देखो तुम पर और तुम्हारी बातों पर कोई भरोसा नही करता है, इसका परिणाम ये हुआ कि मैंने हमेशा इस बात को मान लिया और कभी अपने हिस्से का कोई सच नहीं बोला और मेरी देह ने हजारों तरह के झूठ अपने लिए बना लिए. इसको हम सायकॉलजी में सर्वाइवल मोड भी कहते हैं. हमें अपने बच्चों से बात करते हुए हमेशा सावधान रहना चाहिये कि पता नहीं कब कौन सी बात उनका पूरा जीवन ही तोड़ दे. कई बार लोग ये तर्क देते हैं कि जिनके साथ अब्यूज या हिंसा होती है ज़रूरी नही की वह हिंसक हों. हाँ, यह हो सकता है कि बाहरी तौर पर हिंसक न हों पर खुद अपने लिए इतने अधिक आलोचनात्मक हो जाते हैं कि उन्हें अपने प्रति हो रही खुद की खुद पर हिंसा का पता नही चलता है.
पिछले एक साल में मैंने ऐसे कई सारे मुद्दे अपने भीतर सुलझाने की कोशिशें की हैं. मेरी दादी कहती थी कि चिंता देह को खा जाती है और अब मुझे लगता है वो बिलकुल सही थी. उन्हें यह जानने के लिए किताबों और गूगल की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि शायद वो अपने आप को बेहतर तरीके से समझ सकती थी. अपनी इसी हीलिंग की खोज में मैंने ये भी समझा की कैसे हम अपने शरीर के किस किस हिस्से में अपनी ही गिल्ट को महसूस करते हैं, जैसे सेक्सुअल ट्रामा आपके चेस्ट और लोवर बेलि में महसूस होता है, जोकि कई बार हार्मोन इमबैलेंस और पीसीओडी की तरह आपके शरीर में दिखता है. एंगर इशू सर दर्द और पैनिक अटैक की तरह दिखता है, जब हमें यह महसूस होता है कि हमें जीवन में कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा है तो वो हड्डियों के दर्द और बैक पेन की तरह महसूस होता है, यह सायको सोमेटिक पेन गेट
कहे जाते हैं. आज कल सेल्फ केयर और सेल्फ लव का बाज़ार है, जिसमें हम ये देखना भूल जाते हैं कि कौन-कौन इसको एक्सेस कर सकता है. जाहिर है बहुत कम लोग, कुछ लोग जो मेरे आपके जैसे है और तरह तरह की चीजों को प्रयोग कर सकते हैं. पर सबके लिए न तो ये आसान है और न ही हम इतनी सुन्दर दुनिया में हैं. अपनी जर्नी में मैंने बस एक बड़ा परिवर्तन किया है वह यह है कि खुद वही पुरानी कहानी बार बार सुनानी बंद कर दी है, वो कहते है न कि आप एक ही रास्ते पर बार बार जाकर किसी और जगह नहीं जा सकते हैं. मैंने खुद को विक्टिम से सर्वाइवर बना लिया है. कुछ घावों के भरने के लिए ज़रूरी है उन्हें देखा जाये, उनकी मलहम पट्टी की जाये और फिर बार बार कुरेदा न जाए. उन्हें तिलांजली दे दी जाये. यह सुनने में और करने में बहुत मूर्खतापूर्ण लग सकता है पर रोज सुबह मैं खुद को बस दो बात बोलती हूँ, यू मेक इट तोषी, आई लव यू. और सोने से पहले कहती हूँ कि मैंने उन सब को माफ़ कर दिया है, जिन्होंने आज तक मेरे भीतर अपना क्रोध भरा और मैं खुद को माफ़ करती हूँ की मैंने इतने लम्बे समय तक ये सारा क्रोध और परफेक्ट होना का बोझा ढोया. मैं जानती हूँ कि अगली सुबह मैं थोडा और बेहतर बनकर उठूंगी क्योंकि मैंने चाहे जहां से भी शुरू किया था, मुझे मेरे आज के लिए पहचाना जायेगा और मेरी देह अब बस उन सब अब्यूज और हर्ट की छाया है, जिसे मैंने स्वीकार किया है और मैं जानती हूँ कि मैं इससे बहुत बेहतर जीवन जी रही हूँ, जहां बहुत प्रेम है और बहुत शांति. अपने आप के साथ थोड़ा तो नरमी से पेश आया जा ही सकता है. लेट्स चूज़ लव ओवर फियर.
[ई.एफ.टी और टी.एफ.टी* एक तरह की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें यह सिखाते हैं कि आप अपने बॉडी में कुछ पॉइंट को देख कर अपने दिमाग में अपनी नकारात्मक छवि को सकारात्मक छवि से बदलते हैं. यह ट्रामा हीलिंग में काफ़ी मददगार है.]
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तोषी जिन शब्दों से आयडेंटिफ़ाई करती हैं, वे शब्द हैं- क्वीयर, हीलर, शोधार्थी और अतरंगी. वे एनिमे देखती हैं और वो सारे काम करती हैं जिनसे किसी का कोई लेना देना नहीं होता. उन्हें पढ़ना और शाहरुख़ के सपने देखना पसंद है. उनसे toshi.pandey01@gmail.com पर बात हो सकती है.
Kya sunder likha hai
तोशी पांडे उन चुनिंदा लोगों में से है जिनके काम,शोध, विचार कि आप कितनी भी सराहना कर ले और अपनी बौद्धिक क्षमता अनुसार समझ ले पर अगर आप उसे फिर से अगली बार पढ़ेगे/सुनेंगे या समझने की कोशिश करेंगे तो आपको कुछ नया जरूर मिलेगा। कलम से इंकलाब तक यह खूबी उन्हें बाकियों से अलग करती है और आप उन अल्पसंख्यक लोगों में से हैं जिन्होंने यह जान लिया है की मानव/मनुष्य होना का मतलब सिर्फ किसी स्त्री या पुरुष तक ही सीमित नहीं है, इसमें असीम संभावनाएं हैं। ऐसी संभावनाएं जिसे हमारा समाज पहचानना ही नहीं चाहता और ऐसे ही वक्त में काम आती है तोशी पांडे जैसे चुनिंदा लोगों की सोच, दूसरों तक अपनी बात पहुंचाने की क्षमता अपने विचारों के द्वारा और कलम से क्रांति लाने की ताकत। यह सफर आपके लिए आसान नहीं रहा होगा और ना ही आगे होगा पर यही खूबसूरती है इन रास्तों और आपके विचारों की दोनों ही हार नहीं मानते। मोर पावर टू यू 🌈
अत्यंत विचारपूर्ण और जरूरी आलेख। तोषी पांडे को बहुत बधाई और स्नेह इस साहसिक आलेख के लिए। इसे प्रस्तुत करने हेतु इंद्रधनुष टीम को बधाई।
Jyada kuch nahi kahunga, bas itna hi ki tum kuch bhi shabdo me bandh sakti ho…. you are amazing Toshi…
ढेर सारा कोमल प्यार
Toshi, what else can I say apart from the fact that it’s very very very fem amongst us who muster the courage to face it and then speak about it as well. And my friend, you took that step of recognising it, then speaking about it and also trying to take care of yourself. I have immense respect for you. I love you for who you are, and more importantly it makes me love you more for the fact that you love yourself, which very few people are able to do. Keep rising and shining my friend. ❤️
तुम शब्दो से खेलती हो , तुम शब्दो की मोहताज नहीं हो बल्कि शब्द तुम्हारे मोहताज हैं
बेहतरीन लेख