भगवतीचरण वर्मा के कुछ उद्धरण ::

भगवतीचरण वर्मा (३० अगस्त १९०३ – ५ अक्टूबर १९८८) हिंदी के ख्यात लेखकों में से हैं. हिंदी कविता में छायावाद के बाद रचनाकर्म में अभूतपूर्व बदलाव लाने में और इसे नई दृष्टि देने में इन्होनें बड़ी भूमिका निभाई है. कहानी और उपन्यास लेखन में इस रचनाकार ने इतिहास और समकालीन समाज के प्रमुख बिन्दुओं को अपनी तरह से रेखांकित और प्रसारित करने में भी उल्लेखनीय भूमिका अदा की है. 

प्रस्तुत उद्धरण भगवतीचरण वर्मा के बहुचर्चित उपन्यास ‘चित्रलेखा’ से उद्धृत और प्रस्तुत किया जा रहा है. 

निर्बल व्यक्तियों की आहें संगठित होकर समुदाय द्वारा जनित क्रांति का रूप धारण कर सकती हैं.

 

इच्छाओं को दबाना उचित नहीं, इच्छाओं को तुम उत्पन्न ही न होने दो. यदि एक बार इच्छा उत्पन्न हो गई, तो फिर वह प्रबल रूप धारण कर लेगी.

 

सुख तृप्ति और शांति अकर्मण्यता, पर जीवन अविकल कर्म है, न बुझनेवाली पिपासा है. जीवन हलचल है, परिवर्तन है, और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शांति का कोई स्थान नहीं.

 

अंतरात्मा ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं, वरन समाज द्वारा निर्मित है, यदि वास्तव में वह ईश्वर प्रदत होती तो भिन्न-भिन्न समाज के व्यक्तियों को अंतरात्मा भिन्न-भिन्न न होतीं.

 

मनुष्य अनुभव प्राप्त नहीं करता, परिस्थितियाँ मनुष्य को अनुभव प्राप्त कराती हैं.

 

पुरुष पर आधिपत्य जमाने की इच्छा स्त्री के पुरुष से प्रेम करने का घोतक नहीं है.

 

संसार में पाप की परिभाषा नहीं हो सकी है और न हो सकती है. हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है.

 

मनुष्य स्वतंत्र विचारवाला प्राणी होते हुए भी परिस्थितियों का दास है.

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प्रस्तुत उद्धरणों का चयन सुधाकर रवि ने किया है. सुधाकर  हिन्दी साहित्य के छात्र हैं. इनसे sudhakrravi@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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