मंगलेश डबराल के प्रति

कविता ::
प्रशांत विप्लवी

मंगलेश डबराल, तस्वीर : इंडियन एक्सप्रेस से साभार।

मंगलेश डबराल के प्रति

उस रोज़ कृष्णा सोबती की अंत्येष्टि थी
वे शायद वहीं से लौटकर आए थे
एन एस डी के अहाते पर
एम के रैना के साथ सिगरेट लिए
वे हमारी तरफ बढ़ रहे थे
जब हम सुरेन्द्र वर्मा की वक्तृता सुनने
एक सभागार में जा रहे थे
मुझे महसूस हुआ कि वे पहली पंक्ति में बैठे हैं
और एम के रैना हमसे भी पीछे बैठे हैं
वे कुछ देर बाद वहां से उठकर चले गए
लेकिन उनसे पुनः मुलाक़ात की एक अजीब उम्मीद बनी रहती थी

पटना के आर ब्लॉक चौराहे पर
गाड़ियों का बेहद शोर था
सड़क किनारे जहां एक टुकड़ा अंधेरा बचा था
एक पान के ठिये पर कुछ ढूंढ़ते हुए
वे फिर दिख गए

दिल्ली और पटना पुस्तक मेलों में
वे अपने पाठकों से हमेशा घिरे दिखे
और मैं हर बार एक संकोच लिए
एक जिज्ञासा के उद्भेदन से चूकता गया

अब जब उनसे मिलने की कोई उम्मीद नहीं बची है
मेरी जिज्ञासा और भी तीव्र हो गई है
कि इस अमानवीय होते समय में
जब कोई फूहड़ बनकर कवियों पर हावी है
एक कवि अपनी कविता में किस कदर बचा रहता है
और उसकी लज्जा कैसे बची रहती है

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समय और सत्ता की फूहड़ता-कुंठाओं से लड़ते हुए मंगलेश ने एक पूरा नया ब्रह्मांड रचा. उनके निधन के बाद जिस तरह से हिंदी साहित्यिक समाज ने उन्हें याद किया है उससे उसने अपना ही मान बढ़ाया है. प्रशांत विप्लवी की यह सुंदर कविता कई सुंदर संस्मरणों और कविताओं की कड़ी से जोड़ कर पढ़ते हुए इंद्रधनुष, हमारी भाषा के सबसे बड़े कवियों में से एक, मंगलेश डबराल को नमन करता है. जिस मनुष्यता को मंगलेश बार बार बचाने की बात करते हैं, जाते जाते भी उसमें निहित करुणा और आत्मीयता का एक पाठ वे हमें दे गए हैं. इसको सहेजना और संजोना हमारी ज़िम्मेदारी बनती है.

About the author

इन्द्रधनुष

जब समय और समाज इस तरह होते जाएँ, जैसे अभी हैं तो साहित्य ज़रूरी दवा है. इंद्रधनुष इस विस्तृत मरुस्थल में थोड़ी जगह हरी कर पाए, बचा पाए, नई बना पाए, इतनी ही आकांक्षा है.

2 comments

  • बहुत तरल भाव वाली कविता के लिए प्रशांत जी को सलाम
    — यादवेन्द्र

  • बहुत अच्छी कविता प्रशांत विप्लवी जी। अच्छा कवि देहातीत होकर भी अपने पाठकों के मन में कैसे थोड़ा छूट जाता है! मंगलेश जी के स्वभाव की अंतरंगता उनके लेखन और आचरण के बीच न्यूनतम फांक के कारण थी। कविता इस आत्मिक तरलता को उजागर करती है।