कहानी :: निशांत

निशांत

युद्ध का उद्घोष तीन महीने पहले कर दिया जा चुका था. सैनिकों को चिन्हित कर उन्हें किसी गुप्त स्थान पर ले जाकर प्रशिक्षित भी कर दिया जा चुका था. हथियारों की पहली खेप आने ही वाली थी. लेकिन लड़ाई के अंतिम स्तर पर कौन लोग रहेंगे, इसका चुनाव होना बाकी था. अगर सच को सच की तरह सीधे से कहूँ तो चुने गए लोगों को अपने बर्बर होने की  अग्निपरीक्षा देनी अभी बाकी थी. इस अग्निपरीक्षा के लिए लोग व्यक्तिगत स्तर पर भी जितना कुछ किया जा सकता है, कर ही रहे थे. लेकिन जो लोग होशियार थे, जो लोग एक-दो दफा पहले भी ऐसे मिशन का सदस्य रह चुके थे, उन्हें पता था कि इस घटना को अंजाम देने के लिए बर्बरता नहीं, सामूहिक बर्बरता का होना जरूरी था.

एक अनुभवी सदस्य ने सुझाया था कि घटना के ठीक पहले इतना नशा करना कि अपने लोगों के अलावे तुम्हें किसी की  शक़्ल याद नहीं रहे.मरने वालों की तो हरगिज भी नही. और सबसे पहले औरतों को मारना, फिर बच्चों को और आखिर में बूढ़े लोगों को. मरद लोग तो अक्सर मौके से फरार हो जाते हैं. लेकिन जिस घर में मरद लोग मिल जाएंगे, उस घर के लिए दूसरा नियम लागू होता है. एक बात और याद रखना. गर्भवती महिलाओं को सबसे पहले निपटाना. इनको निपटाने से कम से कम इनके गर्भ में पल रहे सँपोलों से तो भविष्य के लिए छुटकारा मिल जाएगा.अगर कोई पानी माँगे तो स्साले के मूँह में मूत देना.

बाकी सदस्यों ने अपने वरिष्ठ सदस्य की बातों को आत्सात करने का भाव अपने चेहरे पर प्रदर्शित किए. वरिष्ठ सदस्य ने आज की सभा को भंग किया और अपने घर की ओर चल दिए. रास्ते चलते भी उनको सिर्फ और सिर्फ बदले का ही ख़याल आ रहा था. स्साला, असलमवा को तो सबक सिखा के ही रहेंगे. उसको उसका औकात भी दिखा ही देंगे. मियां टोला का नेता बन गया है हरामी.सब हेंकड़ी को सोझ कर देंगे. इस बार मौका भी बढ़िया है. लड़का लोग भी इस बार सही मिला है. इस बार ग़लती नहीं होने देंगे. इस बार एकदम पार कर देंगे. यही तो आखिरी मौका भी है.

आठ महीना बाद चुनाव भी तो आ रहा है. प्रखंड कार्यलय में पिछला महीना विधायक जी अपना टार्गेट बता ही दिए थे. अगर टक्कर का भी बात है तो धनंजय प्रसाद से ही न. लेकिन! नहीं…नहीं… उसका भतीजा भी तो हमसे ही ट्रेनिंग लेने आता है. स्साले…. कि कमर तोड़ देंगे अबकी बार. वरिष्ठ सदस्य असलम, धनंजय प्रसाद, चुनावी गणित और विधायक द्वारा दिए गए टार्गेट के बीच पिसते, घूमते और बचते हुए अब अपने घर के दरवाजे पर खड़ा था. उसने दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ क्षणों के बाद एक पचास साल के ऊपर की औरत ने दरवाजे को खोला. वह देखते ही बोली-“आजकल कहाँ रहते हो, तीन दिन पर तो घर आए हो. हम दोनों का कोई चिंता फिक्र है तुमको कि नहीं. रमाकांत का दवा भी कल से ही खतम है.कल से तो खाँसते-खाँसते इसका हालत और भी खराब है. तुमको दुनिया का फिक्र है लेकिन अपनी माँ और भाई का नहीं.”

***

विधायक जी आज फिर प्रखंड कार्यालय आए हुए हैं. विधायक जी ने बोलना शुरू किया- इसबार मुकाबला हर बार की तरह नहीं है. इस चुनाव में हमारे देश का आनेवाला भविष्य तय होगा.समझिए कि चुनाव नहीं दो संस्कृतियों का टक्कर है. हजारों साल से हम लोग दबते आए हैं.भविष्य का बात है.आपलोग समझ रहे हैं न देश के भविष्य से मेरा भविष्य तय होगा और अंततः आप लोगों का जो मेरे लिए कुछ करने को तैयार हैं.

भविष्य के लिए कुछ कुर्बानी भी देना होता है. बोलिए कौन-कौन लोग कुर्बानी देने को तैयार है. विधायक जी का इतना बोलना था कि धनंजय प्रसाद और वरिष्ठ सदस्य ने अपने-अपने हाथ खड़े कर दिए. विधायक जी ने धनंजय प्रसाद से सवाल पहले पूछा. जबाव सुनने के बाद खिन्न होकर बोले- “विकास से आजतक कोई चुनाव जीत सका है क्या, तुमलोग बिना सोचे समझे बेलगाम होकर कुछ भी बोल देते हो.”

अगली बारी वरिष्ठ सदस्य की थी. उनसे भी ठीक वही सवाल पूछा गया. कुछ सोचने-समझने के बाद वरिष्ठ सदस्य ने जबाव दिया- ” यह चुनाव आपको मुसलमान जीतवाएगा. मुसलमान के बिना आप नहीं जीत सकते है. वे लोग आपको वोट नहीं करेंगे. फिर भी आपकी जीत तय है. मैं आज से इसकी जिम्मेदारी लेता हूँ”.
विधायक जी का वरिष्ठ कार्यकर्ता होने के नाते वरिष्ठ सदस्य आजकल दिनभर चुनाव की तैयारी में ही लगे रहते.इतनी व्यस्तता में उन्हें अपनी माँ और भाई के इस दुनिया में होने और न होने के बीच का कोई फर्क नज़र नही आता रहा था.

नवरंगपुर गाँव स्टेट हाईवे -33 से सबसे सटा हुआ गाँव है. जिला मुख्यालय और जिला पार्टी कार्यालय से बहुत दूर भी नहीं. इसीलिए विधायक जी का इस गाँव पर कुछ अधिक ध्यान रहता था. उनका सबसे वरिष्ठ कार्यकर्ता भी इसी गाँव का था. नवरंगपुर में करीब सदियों से हर शुक्रवार पशुओं का एक मेला लगता था. मेला में मुख्यतः गाय और बैल ही आते थे. विधायक जी की नज़र इस मेले पर पिछले दो वर्षों से लगी थी. उनको गाय और बैल का महत्व पता था. दोनों को कब और कहाँ प्रयोग में लाना है, किसको पहले प्रयोग में लाना है, इन बातों का हिसाब वह करीब दो सालों से कर रहे थे. अब जाकर उनको एक ठीक ठाक काम करने वाला आदमी भी मिल गया था.

इधर रमाकांत की तबीयत दिन-ब-दिन और बिगड़ती ही जा रही थी. खाँसते वक़्त खून का थक्का आने लगा था. शरीर पीला पड़ने लगा था. जैसे-जैसे रमाकांत की तबीयत बिगड़ती, उसकी माँ और भी बूढी दिखने लगीं, थोड़ी और असहाय, थोड़ा और अधिक विरक्त. उनका बचा विश्वास भी अब डोलने लगा था. रमाकांत भी तो होनहार लड़का था. उसे युद्ध में गोली नहीं लगती तो आज सूबेदार रहता. बड़की पूतोह भी छोड़कर थोड़े ही जाती. तीन साल तक ही तो रही थी घर में. घर का रहन-सहन ही बदल दिया था उसने. एक रमाकांत का भाई है जिसको यहां तक पता नहीं कि जिसका फ़ौज़दार बनकर आजकल वह चल रहा है, उसका इतिहास कैसा है. रमाकांत की माँ नींद में यही सब सोचा करती थीं. रमाकांत जो ठीक से चल भी नहीं सकता था, पथराई हुई आँखों से अपनी माँ को देखता रहता.
कभी-कभी तो उसे सामने की दीवार और माँ में फर्क ही नहीं लगता था.आज माँ को जो भी दुख है, वह मेरे चलते ही तो है. आत्महत्या करने लायक भी तो नहीं बचा हूँ, मन ही मन रमाकांत अपने से कहता.मैं आत्महत्या भी नहीं कर सकता.माँ को मेरे चलते ही शव साधना करना पड़ रहा है.

रमाकांत को युद्ध के दौरान गोली लगी. जिसके बाद उसे घर भेज दिया गया. सरकार ने एक पेट्रोल पंप देने का भरोसा दिया था. तीन-महीने बाद रमाकांत की पत्नी को रामदयाल (विधायक जी) कलेक्टर के पास भी ले गया था. पता नहीं वहाँ क्या बात हुई कि तीसरे दिन ही रमाकांत की पत्नी ने जहर खाकर आत्महत्या कर लिया.रमाकांत की माँ दिनभर इन्ही बातों में खोयी सी रहती थीं.

चुनाव धीरे-धीरे करीब आ रहा था. विधायक जी को पता था कि विकास, समाजवाद, और तमाम वादों को अलग रखकर कर भी वह चुनाव जीत सकते हैं. वह जानते थे कि नफरत चुनाव का सबसे कारगर औजार है. एक दिन विधायक जी ने वरिष्ठ सदस्य को प्रखंड कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से बुलाया. वरिष्ठ सदस्य का मन टटोलने के बाद उन्होंने ने एक सवाल पूछा- आदमी, गाय और बैल, अगर मौका मिले तो तुम सबसे पहले किसको मारोगे?

वरिष्ठ सदस्य- आजकल आदमी को मारना सबसे आसान है, गाय को मारकर कौन माथे पर पाप लेना चाहेगा विधायक जी.

विधायक जी ने बोलना शुरू किया- तुम अभी नौसिखिए हो. स्साला! कल पैदा ही हुआ है और हमसे राजनीति बतिया रहा है. सुनो जो हम बोल रहे हैं. आग लगे या न लगे धुआं उठना चाहिए. धुआं का दायरा बहुत विस्तृत होता है. आग चुनाव के कुछ दिन पहले लगाओ. पहले धुएं को ठीक से उठने दो.वरिष्ठ सदस्य सबकुछ समझ चुका था. नवरंगपुरा मेला से मिशन का चलान काटो. बहुत गाय-बैल हो गया है हमारे आसपास. इनका प्रयोग उचित कार्यों के लिए करो. स्टेट हाईवे पर एक पनसाला बनवा दिए हैं. वहाँ सब इंतजाम है. रात को लोड करवा के भेज दो. यह काम तुमको अकेले करना है. पुलिस चौकी को समय समय पर दान-दक्षिणा भेजते रहो. आगे का काम तो तुमको पता ही है. सुने हैं कि नसीरवा बड़का फेरहा हो गया है. उसका बढ़िया से ध्यान रखो. बहुत जल्द ही हमारे काम आएगा वह.

वरिष्ठ सदस्य ने लड़को को पूरी तरह प्रशिक्षित कर दिया था. सभी लड़को को एक-एक मोबाइल फोन भी दे दिया गया था और कुछ ट्रेनिंग भी. विधायक जी नफरत और टेक्नोलॉजी के गठजोड़ को अच्छी तरह समझते थे. उन्होंने वरिष्ठ सदस्य को प्रखंड कार्यालय में एक गुप्त सेल के एक विशेषज्ञ से मिलवाया भी था. इसके साथ ही वरिष्ठ सदस्य एक ऐप विशेष का फॉर्वर्ड विशेषज्ञ बन चुका था. उसने सैकड़ो और लोगों को विशेषज्ञ बनाया.
ट्रेनिंग का आखिरी दिन वरिष्ठ सदस्य ने बोलना शुरू किया. सबसे पहले अपने दुश्मनों को आर्थिक रूप से कमजोर करो. यहाँ तो वे लोग सामाजिक रूप से पीछे हैं ही. फिर मानसिक रूप से. फिर उनकी इज्जत-अस्मत से खेलो. फिर ऐसा मारो कि….. याद रहे कि इस युद्ध में हमारा कुछ भी नहीं बिगड़ना चाहिए.दुश्मनों का खाने का स्वाद बिगाड़ कर मारो.

नवरंगपुर में होली बाद हर साल एक कश्मीरी आता था. वह वर्षों से जिले में रहकर कश्मीरी मसाले का व्यापार करता था. वह नवरंगपुर के नव नूतन माहौल को बिना जाने इस वर्ष भी हाजिर हुआ. उत्तर पट्टी में उसको गुप्त मिशन के एक सदस्य ने बुरी तरह पीट दिया.

स्साला!! हरामी का जना दुगना रेट पर बेचता है मसाला. कारू का खजाना है हमारे पास कि जो माँगोगे मिल जाएगा. बीस सालों से हरामी गाँवों को लूट रहा है. पीछे से किसी गुप्त व्यक्ति ने कहा-“मारो, हरामी को, साला पाकिस्तानी दलाल. यही लोग न इन्फार्मर का काम करता है. साला हमारे बाप-दादा को चुतिया बनाकर रखता था. टेक्नोलॉजी का यही तो फायदा हुआ कि इन लोगों की सच्चाई सामने आ रही है. मारो…मारो…हरामी को. हमारे गाँव के मुसलमानों को भड़काने आता है.

टेक्नोलॉजी ने नवरंगपुर को इतना आधुनिक बना दिया था कि अंतरिक्ष में हनुमान और कल्पना चावला को लोग एक साथ देख रहे थे. कुबेर आधुनिक पायलट का रूप धारण किए पुष्पक जहाज उड़ा रहे थे. संजय सीधा प्रसारण करके न्यूज एंकरों को बहस में पस्त कर रहे थे. गुप्त स्थानों पर एकाएक मस्जिद बनाए जा रहे थे. गोमूत्र से युरेनियम निकाला जा रहा था. गोबर में वैज्ञानिकों ने कैंसर का ईलाज ढूंढ लिया था. लोग डार्विन की थ्योरी को अपने हिसाब से काटने में लगे थे. कितना तो….कितना तो….कितना तो… बदल गया था नवरंगपुर.यह सब किसी साजिश के तहत नही हो रहा था. यह आधुनिक पुनर्जागरण था. वानरों द्वारा आधुनिक पूल भी बनवाये जाने की तैयारी हो रही थी.

नवरंगपुर में धुआं अब धीरे-धीरे उठने लगा था. धुआं धीरे-धीरे ही सही जहरीला होता जा रहा था. अचानक ही एक दिन नसीर फेरहा(जानवरों का व्यापार करने वाला व्यक्ति को फेरहा भी कहा जाता है) को मेले में पीट दिया गया. नसीर पीटा जा रहा था और वरिष्ठ सदस्य बोले जा रहे थे- स्साला!! गाय को स्टेट हाईवे पार करवाकर पैगंबरपुर ले जाता है. साला कसाई से गायों को कटवाता है रे हरामी. नहीं सुधरे तो घर-दलान सब जला देगें रे हरामी स्साला. सुधरेगा कि नहीं रे. बोल स्साला…. बोल…स्साला…हरामी कहीं का…स्साला हरामी का जना. आज सब कान खोलकर सुन लीजिए, रहना है तो ढंग से रहिए यहाँ. नहीं तो हमको दूसरा रास्ता भी पता है. एकदम शांति से रहिए आपलोग.

वरिष्ठ सदस्य न जाने कितने दिनों के बाद आज अपना घर आया था. साथ में रमाकांत के लिए दवाइयां भी साथ लाया था. लीजिए भैया, दवा खाकर जल्दी चलने-फिरने लायक हो जाइए. कितना अच्छा लगता था पहले जब आप सुबह-सुबह उठकर कब्रिस्तान तक सैर-सपाटा करने जाते थे. ठीक होइए. फिर से मार्निंग वॉक अस्टार्ट कीजिए. अभी चुनाव होने वाला है. इतना व्यस्तता रहता है आजकल कि किसी का चेहरा भी अच्छा से याद नहीं पड़ता.

कुछ दिनों पहले विधायक जी ने अपने अंदरुनी कार्यकर्ताओं को प्रखंड कार्यालय में बुलाया था.वरिष्ठ सदस्य चूंकि उनका खास आदमी था, इसलिए उन्होंने उससे खास रूप से ही कहा था. एक बात तुमको समझा रहे हैं. तुम कहते तो ठीक हो कि मुसलमान ही हमको चुनाव जीतवाएगा. लेकिन किसी मुसलमान को मारने से पहले किसी एक हिन्दू को मार दोगे तो अपनी जीत पक्की समझो. समझ रहे हो न. मेरी जीत मतलब तुम्हारी जीत. आदमी कैसा भी चलेगा. किसी नरम चारा को पकड़ो. चलता-फिरता खाने-कमाने वाला आदमी को क्यों ही मारना. बहुत पाप लगता है.

चलते-चलते विधायक जी ने पहली बार रमाकांत का हालचाल पूछा था. कैसा है तुम्हारा भाई रमाकांत? चल-फिर लेता है न.

जी…जी…उठ-पड़ लेते हैं..।

फिर तो और भी बढ़िया है..

चलो हम चलते हैं.

काम में कोई मिस्टेक इसबार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा…. शव हत्या का पाप नहीं लगता है किसी को. काम परफेक्ट करना इस बार.

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निशान्त कहानियाँ लिखते हैं. वह एक गम्भीर पाठक हैं और अपने समाज को समझना-पढ़ना और उसकी बात करना अपनी जायज़ चिंताओं में रखते हैं.  उनसे nishants.pat@gmail.com पर बात हो सकती है. 

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