न से नारी ::
उद्धरण : एड्रिएन रिच
अनुवाद और प्रस्तुति : प्रिया प्रियादर्शिनी

एड्रिएन रिच अमेरिकी कवियत्री, निबन्धकार और नारीवादी थीं। उनकी कविताओं और लेखों में महिलाओं और समलैंगिकों के उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज किया है. उनका सबसे प्रसिद्ध कविता-संग्रह “स्नैपशॉट ऑफ अ डॉटर-इन-लॉ” एक मां और बहू के रूप में जेंडर के प्रभाव का एक गहन विष्लेषण प्रस्तुत करता है. नारीवाद पर रिच के विचार उनके कार्यों में देखें जा सकते हैं. वह “ऑफ़ वूमन बॉर्न” में कहती हैं कि – “ हमें पितृसत्तात्मक संस्कृति में मातृत्व में अवतीर्ण शक्ति और शक्तिहीनता को समझने की जरूरत है”. कविताओं और उपन्यासो के अलावा, रिच ने कई अन्य किताबें भी लिखी हैं जो अन्य नारीवादी मुद्दों पर रोशनी डालतीं हैं. “ऑफ़ वूमन बॉर्न”, मदरहुड एज़ एक्सपीरियंस एंड इंस्टीट्यूशन”, “ब्लड”, “ब्रेड एंड पोएट्री”, उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं.

—प्रिया प्रियादर्शिनी

ऐड्रियन रिच

 

पुरूषों द्वारा स्त्रियों के शरीर पर नियंत्रण के बारे में कुछ भी क्रांतिकारी नहीं है. स्त्री का शरीर वह आधार है जिस पर पितृसत्ता खड़ी होती है.

हमारे पास कोई परिचित, तैयार नाम नहीं है एक स्त्री के लिए जो न तो बच्चों के संबंध में हो और न ही पुरूषों के संबंध में, जिसकी खुद की पहचान है, जिसने खुद को चुना है.

इस धरती पर समस्त मानव जीवन स्त्री से पैदा हुआ है… हम में से अधिकांश लोग पहली बार प्यार और निराशा, शक्ति और कोमलता स्त्री से ही जानते हैं.

जब हम मातृत्व की संस्था के बारे में सोचते हैं, तो कोई प्रतीकात्मक ढांचा दिमाग में नहीं आती है, न ही सत्ता, शक्ति,या संभावित और वास्तविक हिंसा का कोई दिखाई देता दृश्य. मातृत्व से हमारे दिमाग में घर आता है, और हम यह मानना पसंद करते हैं कि घर एक निजी स्थान है.

हम मातृत्व की संस्था के नाम पर हमसे छीनी गई सत्ता और हमारी शक्ति पर लगे रोक के बारे में नहीं सोचते.

स्त्रियों के शरीर को उनके लिए इतना समस्यात्मक बना दिया गया है कि अक्सर इसे दूर रख कर और बिना शरीर के आत्मा के रूप में यात्रा करना आसान लगने लगा है.

यह ज़ाहिर है कि पूरे इतिहास में, स्त्रियों के लिए खुले कुछ व्यवसायों में से एक के रूप में,  दाई के काम ने उन स्त्रियों को आकर्षित किया होगा जिनके पास असामान्य बुद्धि, क्षमता और आत्म सम्मान हो.

अगर मैं अपने बेटों के लिए एक इच्छा रख सकूं, तो वह यह है कि उनमें स्त्रियों जितना साहस हो.

हर स्त्री जो अपने जीवन की डोर को अपने हाथों में लेती है, वह यह जानती है कि उसे भीतर और बाहर दोनों से भारी दर्द और संघर्ष का सामना करना पड़ेगा.

जन्म लेने वाला प्रत्येक शिशु मानवता में निहित संभावनाओं की गहनता और व्यापकता का प्रमाण है. फिर भी अधिकांश घरों और सामाजिक समूहों में जन्म से ही हम बच्चों को सिखाते हैं कि उनके अंदर सिर्फ कुछ संभावनाएं ही रहने योग्य हैं. हम उन्हें अपने अंदर सिर्फ कुछ आवाजों को ही सुनना सिखाते हैं; सिर्फ वही महसूस करना जो हम मानते हैं कि उन्हें महसूस करना चाहिए; सिर्फ कुछ अन्य लोगों को इंसान के रूप में देखना.

मैं एक स्त्री हूं जो खुद को जन्म दे रही है.

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प्रिया प्रियादर्शनी कवि हैं और पटना विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की छात्र हैं। उनसे priyapriyadarshni99@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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