शेखर एक जीवनी से कुछ उद्धरण ::
चयन एवं प्रस्तुति : सुधाकर रवि
शेखर एक जीवनी का पहला भाग एक ऐसे मोड़ पर खत्म होता है कि पाठकों में शेखर की कहानी को जानने की उत्सुकता और तीव्र हो जाती है. हालांकि दूसरा भाग पहले भाग के प्रकाशित हो जाने के चार साल बाद आया. किन्तु इन चार वर्षों के अंतराल में अज्ञेय का शेखर समाज के प्रति पहले से अधिक गंभीर और आक्रामक हो जाता है. विद्रोही प्रवृति तो शेखर में पहले से थी, दूसरे भाग में शेखर का यह विद्रोह लेखन के माध्यम से जाहिर होता है. ‘शेखर एक जीवनी’ के दूसरे भाग से प्रस्तुत हैं कुछ उद्धरण—
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“अहंकार स्वाभाविक होता है, विनय सीखनी ही पड़ती है”.
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“दुःख उसी की आत्मा को शुद्ध करता है, जो उसे दूर करने की कोशिश करता है और किसी का नहीं”.
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“भागने वाले प्राणी में और रचना करनेवाले कलाकार में सदा एक अलगाव बना रहता जितना ही बड़ा वह अलगाव है, उतना ही बड़ा कलाकार होगा”.
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“कहते हैं कि वासना नश्वर है, प्रेम अमर। दोनों में कोई मौलिक विपर्यय है या नहीं, नहीं मालूम; किन्तु यदि ये दो हैं तो यह बात कितनी झूठी है ! प्रेम का एक ही जीवन है; वह एक बार होता है और जब मरता है तो मर जाता है, उसे दूसरा जीवन नहीं मिलता। अमर तो वासना है, जो चाहे खण्डित होकर गिरे, चाहे तृप्त होकर, गिरते-न-गिरते रक्तबीज की तरह नया जीवन पाकर फिर उठ खड़ी होती है”.
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“त्याग मापने के लिए हर एक का अपना-अपना गज़ होता है और वह गज़ होता है उस व्यक्ति का अपने त्याग करने की क्षमता, जो खुद कभी त्याग नहीं करता, वही हर जगह, हर समय त्याग की प्रशंसा करता है-‘अमुक ने इतना बड़ा त्याग किया’, ‘अमुक ने उतना भारी आत्म-बलिदान कर दिया उसका गज़ इतना छोटा होता है कि सैकड़े से कम की कोई वस्तु ही उसे नहीं दीखती और जो स्वयं त्याग करता है, उसे जान ही नहीं पड़ता कि त्याग है क्या चीज़ ? अपने को दे देना उसके लिए साधारण दैनिक चर्या का एक अंग होता है, जो होता ही है, जिसे देखकर विस्मय, कौतूहल, श्लाघा, किसी से भी रोमांस नहीं होता, मुखर भावुकता नहीं फूटती”.
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“कोई बड़ा सुख नहीं है, पर दुःख भोगने की शक्ति शरीर में चाहिए”.
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“अभिमान से भी बड़ा एक दर्द होता है, लेकिन दर्द से बड़ा एक विश्वास होता है”.
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सुधाकर रवि हिंदी की नई पीढ़ी से सम्बद्ध कवि-लेखक और छात्र हैं। उनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं। वे जहानाबाद में रहते हैं। उनसे sudhakrravi@hotmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है। सुधाकर द्वारा चयनित ‘शेखर एक जीवनी’ के पहले भाग से कुछ उद्धरण यहाँ से पढ़ें : जाज्वल्यमान बलिदान से मूर्ति नहीं बन सकती