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Whenever he wanted, he could return

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Readings:: Sally Rooney’s Normal People : Shristi Reading makes you understand the world in a better way and gives you insight into others’ emotions and feelings. It’s one of the best ways to get in touch with people who can understand you. Recently I read Normal People by Sally Rooney. Marianne was like any other girl having her insecurities inside her heart. She had her share of...

मैं एक स्त्री हूं जो खुद को जन्म दे रही है

न से नारी :: उद्धरण : एड्रिएन रिच अनुवाद और प्रस्तुति : प्रिया प्रियादर्शिनी एड्रिएन रिच अमेरिकी कवियत्री, निबन्धकार और नारीवादी थीं। उनकी कविताओं और लेखों में महिलाओं और समलैंगिकों के उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज किया है. उनका सबसे प्रसिद्ध कविता-संग्रह “स्नैपशॉट ऑफ अ डॉटर-इन-लॉ” एक मां और बहू के रूप में जेंडर के प्रभाव का एक गहन विष्लेषण प्रस्तुत करता है. नारीवाद पर रिच के विचार उनके कार्यों...

सत्याग्रह सर्वोपरि बल है

उद्धरण :: महात्मा गांधी शरीर का सुख कैसे मिले, यही आज की सभ्यता ढूँढती है, और वो यही देने की कोशिश करती है। यह भी नहीं मिल पाता। • सत्याग्रह सर्वोपरि बल है। • मुझे प्रधानमंत्रियों से द्वेष नहीं है, लेकिन तजुर्बे से मैंने देखा है कि वे सच्चे देशाभिमानी नहीं कहे जा सकते। जिसे हम घूस कहते हैं, वह घूस वे खुल्लमखुल्ला नहीं लेते-देते, इसीलिए भले ही वे ईमानदार कहे जाएँ, लेकिन उनके पास वसीला काम कर सकता...

पूरा देश वध-स्थल की ओर जा रहा है

पाठ :: प्रभात प्रणीत पहले से विकसित होती सभ्यताओं ने हमें कितने घाव दिये हैं, हमें किन-किन जगहों पर बेधा है और कितनी तरह से अक्षम, पराजित साबित किया है, क्या इसका कोई प्रामाणिक हिसाब है हमारे पास? क्या इसकी विवेचना हेतु कोई प्रयास भी कहीं हो रहा है? ऐसा नहीं हो रहा है क्योंकि जिस दिन ऐसा कोई प्रयास प्रारंभ होगा उसी दिन यह रोज सृजित होती सभ्यताओं का अश्लील नृत्य भी रुक जायेगा और स्वाभाविक है इसलिए...

संवाद आत्मा की ज़रूरत है

उद्धरण :: निर्मल वर्मा चयन और प्रस्तुति : उत्कर्ष निर्मल वर्मा ( जन्म 3 अप्रैल 1929, शिमला, हि. प्र. – निधन 25 अक्तूबर 2005, दिल्ली ), यह नाम हिंदी साहित्य-जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपनी तरह का एक अनूठा एहसास। उनका लेखन सघन अनुभूतियों से उपजता है और पाठकों पर अपना सुदीर्घ ‘मौन’ छोड़ जाता है, जैसे उस ‘लाल टीन की छत’ की स्मृति साथ रह जाए। उनके रचना-समय का एक...

अधूरे आदमी को औरत पूरा करती है

उद्धरण :: कमलेश्वर चयन और प्रस्तुति : बालमुकुन्द आदमी को सिर्फ़ औरत की जरूरत होती है… पर औरत को हर आदमी की नहीं, उस आदमी की ज़रूरत होती है, जिसे वह मन से समझ सके। • औरत और आदमी में सही प्यार हो तो आदमी घर का रास्ता कभी नहीं भूलता…। • ज़िंदगी का मैथेमेटिक्स बिल्कुल अलग होता है। इसमें एक और एक मिलकर एक होना चाहते हैं, पर ज़्यादातर एक और एक मिलकर दो हो जाते हैं, या ग्यारह बनकर रह जाते...

Kiss me, and you will see how important I am : Sylvia Plath

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Book Review :: Smriti Choudhary The Unabridged Journals of Sylvia Plath I was first introduced to Sylvia Plath through her poem ‘Mirror’, where Plath speaks of the realities of aging and losing beauty from an autobiographical perspective. For the fourteen-year-old me, the fact that this poem was written in the years leading to her suicide, like most of her other works, made me uncomfortable...

सच्चा आदमी ही धन है

जॉन रस्किन के कुछ विचार :: चयन एवं प्रस्तुति : उत्कर्ष जॉन रस्किन ( जन्म: 8 फ़रवरी 1819-मृत्यु: 20 जनवरी 1900 ) इंग्लैंड के जाने-माने विचारक, लेखक और दार्शनिक थें, जिन्होंने भूविज्ञान, वास्तुकला, मिथक, पक्षीविज्ञान, साहित्य, शिक्षा, वनस्पति विज्ञान और राजनीतिक अर्थव्यवस्था जैसे कितने ही विषयों पर लिखा. प्रस्तुत गद्यांश रस्किन की असाधारण कृति ‘अनटू दिस लास्ट’ से प्रेरित होकर गांधीजी...

विनय सीखनी ही पड़ती है

शेखर एक जीवनी से कुछ उद्धरण :: चयन एवं प्रस्तुति : सुधाकर रवि शेखर एक जीवनी का पहला भाग एक ऐसे मोड़ पर खत्म होता है कि पाठकों में शेखर की कहानी को जानने की उत्सुकता और तीव्र हो जाती है. हालांकि दूसरा भाग पहले भाग के प्रकाशित हो जाने के चार साल बाद आया. किन्तु इन चार वर्षों के अंतराल में अज्ञेय का शेखर समाज के प्रति पहले से अधिक गंभीर और आक्रामक हो जाता है. विद्रोही प्रवृति तो शेखर में पहले से थी...

हर भाषा की अपनी एक गंध होती है

उद्धरण :: अज्ञेय चयन और प्रस्तुति : उत्कर्ष अज्ञेय हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक हैं जिन्होंने प्रयोगवाद और नई कविता को साहित्य जगत से जोड़ने का प्रभावी कार्य किया। वह कवि, कथाकार और निबंधकार होने के साथ ही पर्यटन में भी खास रूचि लेते थे। उन्हें कविता-संग्रह ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए 1978 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1964 में ‘आँगन के पार द्वार’ के...