मात्सुओ बाशो के कुछ हाइकु ::
अनुवाद एवं प्रस्तुति : अमित तिवारी

मात्सुओ बाशो (1644-94) एक महान जापानी कवि थे जो हाइकु काव्य विधा के जनक माने जाते हैं। ये एडो युग के सबसे प्रख्यात कवि रहे हैं। इनका जन्म एक समुराई परिवार में हुआ था। बचपन का नाम मात्सुओ किनसाकू था जो बड़े होने पर मात्सुओ चुएमॉन मुनेफुसा हुआ। 1680 में उनके एक शिष्य ने उन्हें बाशो यानी केले का पेड़ उपहार में दिया जिसके बाद वे बाशो नाम से कविताएँ  लिखने लगे। युवावस्था में ही तोदो योशितादा, जिनके लिए वे काम करते थे, ने उनका कविताओं से परिचय कराया। दोनों की ‘रेंगा’ कविताओं में बहुत रूचि थी। ‘रेंगा’ एक तरह की छंदबद्ध कविता होती है जिसकी पहली पंक्ति को होक्कु कहते हैं। हाइकु का जन्म इसी से हुआ था। बाशो ने ज़ेन बुद्धिज़्म और चीनी कविताओं का बहुत गहराई से अध्ययन किया था। उन्होंने कई छद्म नामों से कविताऍं  लिखीं और हाइकु के अलावा हाइबुन (haibun) नामक गद्य विधा की भी शुरुआत की।

बसंत

1.
बसंत जल्द ही आ रहा है!
सारी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं:
एक पका-लदा खुबानी का पेड़, एक चाँद।

2.
सुबह की चाय पीता हुआ वह सन्यासी;
हर चीज़ के साथ शांति स्थापित कर चुका है।
गुलदाउदी फूल रही है।

3.
मैंने चिड़िया का अनुगमन किया
जब तक कि वह समुद्र में नहीं खो गयी:
उम्मीद है उसे कोई छोटा सा द्वीप मिल जायेगा।

4.
कितनी इच्छा होती है
भोर में खिले फूलों को देखने की
जैसे ईश्वर का चेहरा।

5.
मंदिर की घण्टियाँ शान्त हो जाती हैं।
पर आवाज़ आती रहती है
फूलों से।

6.
बसंत की तेज़ बारिश
पेड़ों के बीच से फिसलते हुए गुज़रती है
और बात करती है छोटी बूंदों की भाषा में।

ग्रीष्म

1.
हवा बिल्कुल स्थिर है।
पत्तों ने भी हिलने से इनकार कर दिया है।
रमणीय ग्रीष्म ऋतु!

2.
मंदिर की घण्टियाँ शांत हो गयी हैं।
फूलों की सुगन्ध बनी हुई है।
एक मुकम्मल शाम!

3.
कोई संकेत नहीं होता
झींगुर के कोलाहल में
कि कितनी जल्दी यह समाप्त हो जायेगा।

4.
ऑर्किड अपनी सुगन्धित साँसे
भर रहा है
एक तितली के पंखों में।

5.
एक पुराना चेरी का पेड़
नयी कलियाँ और फूल दिखा रहा है,
जवानी के असर से सावधान।

6.
गरीबी की औलाद वह
धीरे-धीरे चावल चबा रहा है,
चाँद को देखता हुआ।

7.
चांदनी तिरछे आ रही है
बांस के विशाल झुरमुट से;
एक कोयल सुनाई देती है।

8.
ग्रीष्म ऋतु आती है दुनिया में
झिलमिलाती झील की
छोटी-छोटी लहरों पर तैरते हुए

9.
जो यह सोचता है कि जीवन क्षणभंगुर नहीं है,
उसे भय से उछलते देखोगे,
जब वह बिजली गिरते देखता है।

10.
ग्रीष्म के चमकदार चाँद की उपस्थिति में,
हल्के हाथों से ताली बजाते हुए,
मैं संदेशा देता हूँ भोर होने की।

11.
आह, ग्रीष्म ऋतु की घास!
वो अकेली चीज़
जो योद्धाओं की हसरतों से बच गयी है।

12.
भण्डारगृह की ओरी में कुछ खोजते हुए,
खुबानी के फूलों की खुशबू आती है,
एक मच्छर गुनगुनाता है।

13.
ड्रैगनफ्लाई कोशिश करती है,
जितना कर सकती है, कोशिश करती है
लेकिन घास के तिनके पर बैठ नहीं पाती।

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अमित तिवारी हिंदी के सुपरिचित कवि-अनुवादक हैं। उनसे और परिचय, संपर्क तथा इंद्रधनुष पर उनके पूर्व प्रकाशित कार्य के लिए यहाँ देखें : मुझमें अभी दुःख की बहुत संभावनाएं हैं