कविताएँ ::
फ़्रेड्रिको गार्सिया लोर्का
अनुवाद एवं प्रस्तुति : तनुज
बीसवीं सदी के महान नाटककार और कवि फ़ेड्रिको गार्सिया लोर्का का जन्म स्पेन के ग्रानादा शहर के पास ५ जून १८९९ को एक छोटे से कस्बे में हुआ था। बेहद कम उम्र में लोर्का साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे। सूत्रों के अनुसार उनका पहला उपन्यास बीस वर्ष में ही छप चुका था, और उसके पश्चात साहित्यिक सेवा में खुद को पूरी तरह से तल्लीन करने के लिए वे उसी वर्ष माद्रीद चले गए थे। लोर्का के मुखर बौद्धिक विकास के पीछे ‘जेनेरेशन ऑफ़ 1927’ क्लब का भी बड़ा योगदान रहा है, जिसकी वजह से उनकी मुलाकात मशहूर कलाकार दाली और फ़िल्मकार लूई बुनेल से भी हुई थी।
स्पेन के सबसे चर्चित कवि लोर्का की आज आधुनिक विश्व साहित्य में प्रतिनिधि भूमिका है। प्रेम के कवि लोर्का की प्रसिद्धि से फ्रांको की फ़ासीवादी व्यवस्था बहुत डरती थी। उन्होंने लोर्का की हत्या भी करा दी। यह खबर पूरे विश्व में एक विस्फोट की तरह फैली। किताब ‘र्रोमान्सेरो गीतानो’ (बंजारों के गीत) ने उन्हें दुनिया भर का सबसे प्रसिद्ध कवि बना दिया था।
तुम्हारे चुम्बन को ढूंढने के लिए
तुम्हारे ‘चुम्बन’ को ढूंढने के लिए
मैं क्या दे सकता हूँ !
वह चुम्बन जो रास्ता भटक गया है,
तुम्हारे होंठो से बाहर निकल
मृत्यु से प्रेम तक का…
मेरे होंठों पर स्वाद है
परछाईयों की धूल का।
तुम्हारी स्याह आँखों की तरफ़ घूरने के लिए
मैं क्या दे सकता हूँ!
रक्तमणि इंद्रधनुषी भोर
अनुराग भाव से जो झुकी हुई है
ईश्वर की तरफ़-
सितारों ने तुम्हारी आँखों को अंधा कर दिया था
मई की एक सुबह।
और चूमने के लिए तुम्हारी पवित्र जांघों को
मैं क्या दे सकता हूँ !
कच्चा गुलाबी स्फटिक
सूर्य का तलछट।
वह तड़के सुबह मरा
चार चंद्रमा वाली रातें
और सिर्फ़ एक दरख़्त
सिर्फ़ एक परछाई
और एक पंछी
अपने बदन से महसूस करता हूँ
तुम्हारे होठों का स्पर्श
झरना हवाओं को चूमता है जैसे
बिना उसे छुए।
मैं सहता हूँ, वह इनकार जो
तुमने मुझे दिए थे
मेरी मुट्ठियों में बंद, सुरक्षित रख,
ठीक जम चुके मोम की तरह
लगभग सफेद।
चार चंद्रमा वाली रातें
और सिर्फ़ एक दरख़्त
मेरा प्रेम चक्कर लगा रहा है
सुई की एक नोंक के ऊपर।
एक छोटा लड़का ढूंढ रहा है
एक छोटा लड़का ढूंढ रहा है
अपनी आवाज
पानी के एक कण में
वह ढूंढ रहा है अपनी आवाज।
(जो झींगुरों के राजा के पास पहले से मौजूद थी !)
मैं आवाज इसलिए नहीं चाहता कि तुम सा बोल सकूं
मैं बस इसकी एक अंगूठी बनाऊंगा
जिससे यह पहन सके मेरी ख़ामोशी
अपनी सबसे छोटी ऊँगली में।
पानी के एक कण में
वह छोटा लड़का ढूंढ रहा है
अपनी आवाज।
(एक बंदी आवाज, बहुत दूर, जो मौजूद थी झींगुरों के आवरण में)
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तनुज वर्तमान में विश्वभारती विश्विद्यालय से हिंदी में स्नातक कर रहे हैं और ख़ूब कविताएँ लिखते और अनुवाद करते हैं। किसी भी तरह के प्रकाशन का यह उनका प्रथम अवसर है। उनसे tanujkumar5399@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।