स्त्री संसार ::
उद्धरण : सिमोन द बोउवा
अनुवाद, चयन एवं प्रस्तुति : स्मृति चौधरी
सिमोन द बोउवा फ्रेंच अस्तित्ववादी दार्शनिक, लेखक, सामाजिक सिद्धान्तकार, और स्त्रीवादी थीं जिन्होंने बीसवीं सदी में स्त्रीवादी आंदोलन को एक नया रूप दिया। उन्होंने आधुनिक स्त्रीवादी आंदोलन की नींव रखी। उनकी किताब ‘द सेकंड सेक्स‘ औरतों को इतिहास में मिले निम्न दर्जे और पितृसत्ता की आलोचना करती है। सिमोन मर्दों द्वारा बनाये गए इस संसार में उन संरचनात्मक समस्याओं के बारे में लिखती हैं जो स्त्री को आगे बढ़ने से रोकती हैं।
— स्मृति चौधरी
पुरुष खुद को स्त्री से इसलिए नहीं जोड़ते ताकि उसके संगति का रस ले सके, वे इसलिए जुड़ते हैं ताकि वे अपने अस्तित्व का रस ले सकें।
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यह बात ही नहीं कि स्त्रियाँ पुरुषों के हाथों से सत्ता छीन लें। यह करने से सामाजिक संरचना में कोई बदलाव नहीं आएगा। सवाल है इस सत्ता की धारणा को पूरी तरह से खत्म करने का।
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स्त्री जन्म नहीं लेती, स्त्री बना जाता है।
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जो पुरुष अपनी मर्दानगी को लेकर असुरक्षित हैं, वही सबसे ज़्यादा स्त्री को अहंकार और तिरस्कार की नज़र से देखते हैं।
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पुरुष की परिभाषा मनुष्य है, और स्त्री की परिभाषा— केवल स्त्री। वह जब भी मनुष्य की तरह व्यवहार करती है तो उसे पुरुषों की नकल करने को कहा जाता है।
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संसार का निर्माण, और संसार का निरूपण पुरुषों का काम है। वे उसे दृष्टिकोण बताते हैं, और उन्हें लगता है केवल यही परम सत्य है।
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स्त्री का पूरा इतिहास भी पुरुषों द्वारा लिखा गया है। जैसे अमरीका में नीग्रो समस्या नहीं है, यह श्वेत समस्या है। जैसे यहूदी विरोधी भावना यहूदियों की नहीं, हमारी समस्या है। वैसे ही स्त्री समस्या हमेशा से पुरूष समस्या है।
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पुरुषों को लड़के-नुमा, लिखने पढ़ने वाली, सोचने वाली स्त्रियां नहीं पसंद है। साहसी, साहित्यिक, और सांस्कृतिक स्त्रियों से पुरुष डरते हैं।
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जिस दिन स्त्री अपनी दुर्बलता में नहीं, अपनी ताकत में प्रेम करेगी, खुद से भागने के लिए नहीं, पर खुद को पाने के लिए; अपने अपमान के लिए नहीं, अपने अभिपुष्टि के लिए— उस दिन प्रेम उसके लिए घातक नहीं रहेगा, और जैसा पुरुषों कि लिए होता है, जीवन का स्त्रोत बन जायेगा। पर वह दिन आने तक, प्रेम अपने सबसे मार्मिक रूप में भी स्त्री के लिए एक श्राप की तरह है जो उसे अपने स्त्रैण संसार में कैद करता है— उसे विकृत करता है और स्वयं के लिए ही अपर्याप्त बनाता है।
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देह कोई वस्तु नहीं है, यह एक परिस्थिति है। यह संसार को समझने का एक तरीका है और हमारी युक्ति की रूप-रेखा।
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औरतों के घरेलू काम सिसिफ़स की यातना के जैसे हैं— अनंत दोहराव— साफ़ किया हुआ गंदा होता है, उसे फिर साफ़ किया जाता है— बार-बार हर दिन। गृहणी समय देखती देखती ख़ुद को थकाती है, सृजन नहीं करती, सिर्फ़ वर्तमान को बनाये रखने की कोशिश करती है— खाना, सोना, साफ-सफ़ाई। उसके लिए समय ऊपर आसमान की तरफ नहीं बढ़ता है, सालों को उसके सामने फैला दिया जाता है, धूमिल, समरूप। धूल मिट्टी के ख़िलाफ़ जंग कभी जीती नहीं जाती।
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हर प्रकार के उत्पीड़न से युद्ध की स्थिति उपजती है— यौन उत्पीड़न कोई अपवाद नहीं है।
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स्मृति चौधरी कवि और अनुवादक हैं। फ़िलहाल वे जेएनयु में भाषा विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही हैं। उनसे choudharysmriti9@gmail.com पर बात हो सकती है। स्त्री संसार के अंतर्गत प्रकाशित अन्य प्रविष्टियों के लिए यहाँ देखें : स्त्री-संसार