कहानी::

अप्रेम : अनिल यादव

अनिल यादव, क्लिक : सुघोष मिश्र

अपने भीतर नक्षत्रों को छिपाए होने का भ्रम पैदा करते कंप्यूटरों से झरते हल्के नीले प्रकाश और बीसियों जोड़ी आंखों में अनगिनत भावनाओं के रूप में परावर्तित उनकी आभा के बीच एक संक्षिप्त प्रेम कहानी के सुविचारित अंत की निर्णायक कार्रवाई उस शाम शुरू होने वाली थी।आफिस में लंच के बाद से ही छाया कम्पयूटर स्क्रीन पर ताश के पत्तों को क्रम से लगाते-बिगाड़ते समय काट रही थी। कंधों पर फैले चमकीले, घुंघराले बालों को थपकी देते हुए आखिरी दस मिनट खिड़की से बाहर देखते रहने के बाद अचानक कहा, ‘मैं तितली नहीं हूं।‘ वह हैन्डबैग से चेखव की कहानियों की किताब निकालकर मेज पर धप से रखने के बाद तेजी से बाहर निकल गई।

कैडी के भीतर खिंचे खालीपन में किताब की आवाज ठहरी रही फिर आदतन उसका ईगो फन उठाने लगा, आखिर यह मुझे क्या समझ रही है। एक और लेकिन लचीला संवेग सक्रिय हुआ, मुझे तुरंत बात करनी चाहिए। मैने उसे कब तितली कहा। यही तो कहा था कि जो सुंदर औरतें न चाहते हुए भी किसी संबंध को ढोती हैं एक दिन कई मर्दों को एक साथ साधना सीख जाती हैं। कंप्यूटर को ऑफ करने, कागजों को दराज में रखने और कार्ड पंच करने में जितना समय लगा उतने में वह बस स्टाप पर पहुंच चुकी थी। कैडी जब बस स्टाप पर पहुंचा तो वह जा चुकी थी।

अभी कल ही तो उसने साड़ी पहनी थी। खूब सोच कर आखिरी बार कहा था कि उससे शादी कभी नहीं करेगी और पार्क में उसकी गोद में निढाल लेटी थी। देर तक खुद से जूझने के बाद कैडी ने उसकी गरदन पर चूम लिया था। पसीने की हल्की गंध, होंठों पर मुलायम रोयों की गुदगुदी के नीचे, निस्पंद क्या वही थी जो उसे कहीं दूर से देखती लग रही थी। उसने लौटते समय टैक्सी में उसके लिए गाना भी गाया था।

कैडी उन लोगों में से है जो भीतर के किसी अवरोध के कारण गा नहीं पाते लेकिन बेहद भावुक क्षणों या नशे में गाने को कह कर अपने जैसा बना डालते हैं। वह ऐसा ही एक क्षण था। धागे में बंधे गुब्बारे की तरह हल्का, रह-रह कर उठता लेकिन कहीं न जा पाता हुआ। जैसे वह वरदान देने वाली कोई देवी हो, जब कैडी की आंखों में लालसा थकती दिखने लगी थी तब चेहरा बिल्कुल करीब लाकर उसने कहा था,

“क्या चाहते हो?”

“तुम्हें एक बार चूमना चाहता हूं।” कैडी ने भरसक मुलायमियत से कहा लेकिन उसी आवाज के भीतर कोई और भी था जो शिकायत कर रहा था।

जरा देर के असमंजस के बाद उसने अपना गाल कैडी के कंधे पर रख कर आंखे बंद कर लीं थीं। दोनों हाथों से गर्दन पकड़कर वह सीट पर उचक गया था तभी अचानक उसने बड़ी, भूरी आंखें पूरी खोल दीं, “नहीं।” टैक्सी के शीशे में ड्राइवर की आंखें चमकीं थीं। बाहर आसमान में पूरा चांद था जिसकी सतह पर ट्रैफिक का मटमैला धुंआ रेंग रहा था। एक मिस कॉल नहीं, मैसेज की बीप तक नहीं, दोनों में से किसी के मोबाइल फोन पर एक कॉल का भी न आना बहुत खल रहा था। पूरे रास्ते चुप्पी के बाद उतरते समय निराशा के धीमे, उभरते बुलबुलों के स्वर में कैडी ने कहा था, “मुंह से बदबू आ रही होगी शायद या तंबाकू की गंध लगी हो। पान मसाला खाता हूं न।“
छाया ने अफसोस के भाव से कंधे उचकाए थे, तुम ऐसे व्याकुल क्यों थे। इतनी जोर से गरदन दबाई कि मैं डर गई थी। फिर जीन्स की जेबों में हाथ डालकर अपने सुडौल पैरों को देखते हुए शिकायती लहजे में कहा, “पुरूष ऐसे ही होते हैं, वे किसी भी चीज को कोमलता से नहीं छू सकते।“

अपने अपार्टमेंट की ओर पैदल जाते हुए कैडी ने पाया कि तीन घंटे खुद से लगातार जूझने के कारण वह बहुत थक गया था और उसके पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था। उन्मत्त भालू की तरह दौड़ते हुए अपनी देह झिंझोड़ कर इस यातना से मुक्त हो जाने की लालसा उसके भीतर एक टूटे तारे की तरह गुजर गई। वह जल्दी से शराब पीकर पेट के बल लेट कर आंखे बंद कर लेना चाहता था। अभी यह कल ही की तो बात है और आज उसे खुद पर शर्म आ रही है।…तो अब। वह बस स्टाप की रेलिंग पर झुका हुआ सोच रहा था।

क्या करना है, इसका खाका कैडी के अवचेतन मन में जैसे पहले से मौजूद था। क्या पता यह पूरी शाम उसके भीतर पहले कभी बीत चुकी हो और आज वह नए अनिश्चयों के साथ उसे दोबारा जीने वाला हो। उसने कोल्ड ड्रिंक की बोतल में आधी दूरी तक रम भरी, ढक्कन बंद कर, देर तक झकझोरने के बाद उसने चार बड़े घूंट भरे फिर बोतल गोद में लेकर फुटपाथ पर लंबे कदमों से चलने लगा। टैक्सी रोक कर बैठने के दौरान उत्तेजना में उसने फिर सोचा, आज चल कर उससे और उसके मंगेतर से पूछ ही लेता हूं कि वे चाहते क्या हैं और उन दोनों की प्रेम लीला में उसका क्या होगा।
टैक्सी से उतर कर वह मुस्तैदी से छाया के अपार्टमेन्ट के गेट के बाहर बैठ गया। उसे पता नहीं था कि अब उसकी आंखें बाहर निकल पड़ने को थीं। शाम के धुंधलके में घूंट लेते हुए अचानक उसने बोतल की उस तरफ से उन दोनों को आते देखा। वे दोनों काम से लौटते हुए थके दंपति लग रहे थे, वह उन्हें ठीक सामने से जाते देखता रहा। उसके भीतर बोतल को कहीं छिपा देने की इच्छा उठी लेकिन छाते उन्माद से टकरा कर हतप्रभ रह गई। गहराई से सतह तक आने में उसके विचारों को बहुत समय लगता था। अक्सर तब तक देर हो चुकी होती थी।

अंधेरे-उजाले के बीच उनके पीछे छूट गए खालीपन का दायरा धीरे-धीरे फैलता हुआ उस तक आ गया था और अब वह उसके भीतर आने वाला था। वह तेजी से सीढियां चढ़कर उस फ्लैट के दरवाजे तक गया जहां छाया अपनी बहन के घर में पेईंग गेस्ट थी। अंदर बातचीत की आवाजें सुनाई दे रही थीं। घंटी बजाने के लिए उसने हाथ उठाया, ठिठक गया और बोतल को पहली बार ध्यान से देखा। अगर वह रम के बजाय दूध या फ्रूट जूस पी रहा होता तो इतनी दुविधा नहीं होती। अब वह जो भी कहेगा वह एक धोखा खाए प्रेमी का नहीं एक ईर्ष्याग्रस्त पियक्कड़ का प्रलाप समझा जाएगा।

वह दरवाजे से कान सटाकर खड़ा हो गया। संवाद के उछलते धुंधले टुकड़ों, हंसी, बर्तनों की आवाज और एक बच्चे की उछल कूद के बीच वह तन्मय होकर कुछ खोज रहा था। शराबी, गधा, चेखव या बेचारा जैसा कोई शब्द या शायद अपना पूरा नाम कामदेव सिंह कुश्वाहा जो ऐसा एक शब्द था जिसे सुनने की उसका व्यक्तित्व आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा था। तभी उसके व्यक्तित्व के एक हिस्से ने टूटकर अलग होते हुए उससे पूछा था कि वह अंधेरे में किसी चोर की तरह वहां क्या कर रहा है।

न कोई ऐसा शब्द नहीं कहा गया और जो सुनाई पड़ रहे थे उनका कोई अर्थ नहीं था। फिर देर तक शांति रही। उसे महसूस हुआ कि शब्दों से अगर किसी के अस्तित्व का बोध न हो तो वे कैसे डरावने लगने लगते हैं। किसी और दुनिया से आती अनजानी असंबद्ध ध्वनियां जो हमारी आशंकाओं को चुंबक की तरह खींचती हैं। नहीं…नहीं लोग मर जाते हैं फिर भी उनके नाम में उनका जीवित हिस्सा बचा रहता है और अभी तो वह मरा नहीं है। अगर कोई बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोल दे तो…इस विचार के आते ही व्यक्तित्व का टूटा हिस्सा फिर झपट कर सामने आ खड़ा हुआ। वह बोतल झुलाते हुए सीढियां उतरने लगा।

दरअसल वह खुद को सीढियां उतरते देखते हुए सलाह दे रहा था, तुम्हें किसी से माचिस मांग कर पहले एक सिगरेट पीनी चाहिए और इस पूरे मामले पर ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए। सीढ़ियों पर पान की कत्थई पीक और कोनों में रखे डस्टबिन देखते हुए उसे ख्याल आया कि क्या इनसे पुराने प्रेमी को पकड़े रखने के लिए दस्ताने की तरह इस्तेमाल कर फेंक दिए गए किसी नए प्रेमी की दुर्गंध नहीं आ सकती। उसकी स्मृति में इस विचार की सख्त खुरदुरी परत पर गैब्रियल गार्सिया मार्क्वेज के उपन्यास लव इन द टाइम्स ऑफ कालेरा की शुरूआती पंक्तियां सजीव की तरह रेंग रही थीं…” यह तो होना ही था। कड़वे बादामों की महक से हमेशा उन्हें ठुकरा दिए गए प्रेम की नियति याद हो आती थी। डा. जुवेनाल अरबीनो ने उस कमरे में जहां अब भी अंधेरा था, घुसते ही इस पर गौर किया। वह अर्जेंट कॉल पर यहां एक केस देखने आए थे जिसकी अर्जेन्सी उनके लिए बहुत पहले समाप्त हो चुकी थी। विकलांग, युद्धभागी, बच्चों का फोटोग्राफर और उनसे सबसे अधिक सहानुभूति रखने वाला शतरंज का प्रतिद्वंदी एन्टीलन शरणार्थी जेरेमिया डी सेन्ट-एमोर गोल्ड साइनाइड सूंघ कर स्मृति की यातना से सदा के लिए मुक्त हो चुका था।”

सब कुछ लगभग खत्म हो चुका है। यह जानने के बाद भी क्या वह नशे की झोंक में सामाजिक न्याय मांगने यहां तक चला आया था। छाया के प्यार का सत्ताइस प्रतिशत हिस्सा तो उसे मिलना ही चाहिए। क्या ऐसी कोई जगह आरक्षित थी। प्यार में अन्याय…वह फिस्स से मुस्करा पड़ा। उसे लगा कि नशे से बाहर आ रहा है।

शाम से यहां आने के बाद अब उसने आंखें पूरी खोल कर दीवारों पर विशाल खाकी पपड़ियों वाले अपार्टमेन्ट के जर्जर गेट को देखा। खुली नालियों के ऊपर सूखे पत्ते उड़ रहे थे। गेट तक का रास्ता और सामने की सड़क वीरान थे। स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी हवा में बहती दीख रही थी। मार्च का महीना था नहीं शायद सितंबर था। धूप में गरमी लगती थी, छांव में ठंड लगती थी।

जब वह साथ होती थी तो बस या टैक्सी ट्रैफिक के ऊपर तैरती लगती थी। मल्टीनेशनल कंपनी की मोटी तनख्वाह के बावजूद वह अक्सर स्नैक्स में ईमली खाती थी और वह चूरन। वे दोनों अपनी आशंकाओं को झुठलाने के लिए फुटपाथ पर बैठकर तोते से भाग्य जानने का स्वांग करते थे। एक दूसरे के शरीरों की उष्मा के चढ़ाव-उतार में लिप्त वे कई-कई बार टिकट खरीदते हुए शहर के आखिरी बस स्टाप तक जाते थे। शायद वे किसी बीत चुके समय में न घटित हो पाए को जीने की कोशिश कर रहे थे जो अब संभव नहीं था।

गोद में रखी कोक की भारी बोतल पर टिके अपने नोट पैड पर उसकी नजर गई जिसके कवर पर एक मॉडल थी जिसके तरल, सुर्ख होंठ उसकी बांह पर टपक जाना चाहते थे और उसकी कुहनी पर स्याही के तीन चकत्ते थे।

तीन महीने पहले जब उसने पहली बार छाया को ठीक एक रस्म की तरह गुलाब का फूल भेंट किया था तब उसकी पीठ और कुहनियां छिली हुई थीं। वह अपने मंगेतर की बाइक से गिर पड़ी थी, जिसे उसके पिछली सीट पर न होने का पता तब चल पाया जब वह अपने घर पहुंच गया था। उसे जहां-जहां चोट लगी थी कैडी ने तरल, सुर्ख होंठों वाली मॉडल के शरीर पर भी पेन से पपड़ियां बना दी थीं। वह आफिस में काम के दौरान नोटपैड को उसके कंप्यूटर के की-बोर्ड पर सरकाते हुए सिसकारी लेता था जैसे उन चोटों की टीस उसके भीतर उठ रही हो। उसे खुद पर शर्म आई और उतनी ही जल्दी चली गई। नशे में उसके पैर अनिश्चित ढंग से उठ रहे थे, न जाने कहां जाने के लिए।
कदमों के नीचे चरमराते, टूटते पत्तों की आवाजों के बीच फिर वही हुड़क उसके भीतर उठी जो किशोरावस्था से अक्सर मौसम बदलने के समय उठा करती थी और उससे निजात पाने के लिए वह सुंदर अक्षरों में कागज पर कुछ लिखने लगता था। लालसा के सिमट जाने के बाद वह उस लिखे के असर को किसी अन्य की तरह महसूस करते हुए सोचता था कि इसे किसी लड़की को प्रेम पत्र के रूप में ई-मेल किया जा सकता है। वह ऐसा कई बार कर भी चुका था। उससे सहानुभूति रखने वाला एक दोस्त, जो बाद में शेयर ब्रोकर हो गया, कहा करता था कि उसकी जेब में किसी लड़की का नाम लिखे जाने की औपचारिकता का इंतजार करता एक प्रेम पत्र हमेशा पड़ा रहता है। बस एक वास्तविक नाम मिल जाने के बाद कहानी शुरू हो जाती है। तब उसे यह अपनी पहचान के लिए दिया गया विशिष्ट कॉम्पलीमेन्ट लगता था। ठिठक कर एक घूंट पीने के बाद उसने बेहद उदास भाव से अपने सीने को छूकर हाथ उछालते हुए खुद को आदेश दिया, “तुम्हें अब लेखक बन ही जाना चाहिए। कहां फंसे हो।“

उतरती रात में कौवे की बस एक बार सुनाई दी भटकती हुई उनींदी आवाज ने गेट तक की खाली जगह को स्मृति के लंबे गलियारे में बदल दिया। कैडी ने देखा, वह अपने माउस से उसके हाथ को ठेल कर हंसते हुए फुसफुसा रही थी, “आपका फूल आज आफिस आते हुए झड़ गया फिर बस की खिड़की से उड़ गया।“

“उसके बजाय मुझे एक कार्ड देना चाहिए था जिस पर वह फूल बना होता। जो भी वास्तविक होता है एक न दिन खत्म हो जाता है। नकली चीजों अस्तित्व ज्यादा लंबा होता है।,” धक्के से संभलने के लिए उसने छाया का हाथ थामते हुए उसने खुद को कहते हुए देखा।

इस दृश्य के एक सप्ताह पीछे एक और दृश्य था जिसमें वह हाथ में गुलाब का फूल लिए चल रहा था। साथ चलती हुई छाया घुमा फिरा कर लगातार पूछ रही थी कि वह फूल किस लिए है। अपने चिबिल्लेपन को ढांप कर आधे घंटे तक कैडी हर बार यही कहता रहा कि सब्जी बनाने के लिए है। फूल देते हुए उसने देखा कि उसकी आंखें डबडबा आई हैं। वह एक रूआंसी बच्ची की तरह उंगली उठाए ठुनक रही थी, मुझे ही देना था तो… इतना इतरा किसलिए रहे थे…इतना इतरा किसलिए रहे थे। उस शाम वे दोनों इसी गेट के जरा दूर हटकर सड़क के किनारे अंधेरे में एक बेन्च पर बैठे हुए थे जहां मच्छर काट रहे थे.

बीच रास्ते में उसके मंगेतर की कार खड़ी थी जैसे जमीन के भीतर से अचानक उभर आई हो। बोतल को बगल में दबाकर उसने पैड खोला, घसीट कर लिखा ‘मुझसे मिलो’, और पन्ना फाड़ कर विन्डस्क्रीन पर एक वाइपर के नीचे दबा दिया। कुछ कदम जाकर जैसे कोई बेहद जरूरी दायित्व याद आया हो। वह लपकते हुए लौटा बोतल पर पैड रख कर स्थिर, सुंदर अक्षरों में लिखा ‘हाऊएवर इफ यू थिन्क इट नेसेसरी’ और पन्ना फाड़कर दूसरे वाइपर के नीचे खोंस कर चला गया।

काफी देर बाद रास्ते में वह सकपकाया कि कहीं कोई स्पेलिंग गलत तो नहीं हो गई जैसा कि नशे में अक्सर हो जाया करता था। फिर उसे अपने भीतर राहत उतरती महसूस हुई। अपने स्कूली जीवन के असर से छूट कर जिन्दगी में पहली बार वह सोच रहा था स्पेलिंग सही हो, गलत हो या कुछ लिखा ही न हो इससे फर्क क्या पड़ता है।

बीमारी का बहाना बना कर वह पांच दिनों तक आफिस नहीं गया। लैपटॉप, नोटपैड और कोक की बोतल के साथ भटकते हुए उसने दिल्ली के तमाम खंडहर और साबुत इमारतें देख डालीं जहां वह काम की व्यस्तता के कारण बीते सालों में नहीं जा पाया था। आश्चर्य था कि उन दिनों में छाया न जाने कहां दुबक गई। स्मृति में जितनी जगह थी सारी उसकी मां ने घेर ली। वह नौ साल का था तब वह उसे इक्के पर दूर के एक कस्बे में सेंट्रल स्कूल के बोर्डिंग हाउस में छोड़ने आई थी। वह धूल भरे विशाल मैदान में अपने बक्से पर खुद को भींचे बैठा था जिसमें यूनिफार्म, किताबें, लड्डू, टूथब्रश, स्वेटर, जूते ठुंसे हुए थे। जिस समय वह आखिरी बार उसका माथा सहला रही थी वार्डन उसका हाथ पकड़े मुस्करा रहा था। जैसे ही इक्का स्कूल के गेट से सड़क पर मुड़ा, वह वार्डन का हाथ झटक कर रोते हुए उसके साथ घर जाने के लिए पीछे भागा। एक चपरासी ने दौड़कर लोहे का भारी गेट बंद कर दिया था। आंसुओं से धुंधलाई आंखों से वह दूर जाते इक्के के आकार को घटता हुआ देखता रहा जिस पर उसकी मां नहीं अब कोई और औरत बैठी थी जिसे वह पहले नहीं जानता था। अब बहुत दिनों बाद वह फिर से जान रहा था कि औरतें ऐसी ही होती हैं। वे पहले खुद को समर्पित कर प्यार से फुसलाती हैं फिर दुनिया के क्रूर बीहड़ में हाथ पांव मारने के लिए धकेल देती हैं। पीड़ा को छिपा कर उनके बिना जीना सीखना ही पड़ता है।

इसी दौरान रातों को वह चंडीगढ़ में रहने वाले एक पुराने दोस्त को निरंतर समझाता रहा कि अब उसके लेखक बनने का समय आ गया है। सत्ताइस का हो गया है, शादी करनी नहीं है, संपत्ति जोड़ने में दिलचस्पी नहीं है, पूरी जिन्दगी बेमन से मां-बाप और परिवार के अन्य सदस्यों की इच्छाएं पूरी करने के लिए जीता और काम करता आया है। अब अगर कोशिश नहीं कि तो फिर जिन्दगी में कभी कोशिश करने लायक भी नहीं रह जाएगा। वह उसके साथ रहकर सिर्फ लिखना चाहता है।

इस समझाने में शब्द कम थे, लंबी चुप्पियां थीं, भावनाओं के शक्तिशाली भंवर थे जिसमें कैडी और उसका दोस्त एक दूसरे का हाथ पकड़कर उतरते थे लेकिन बहकर अलग-अलग दिशाओं में चले जाते थे। पहले भी किसी एक बात पर दोनों शायद ही कभी सहमत हुए हों लेकिन दोस्त में पुरातन, धूसर, छिपे हुए अधिकार जैसा कुछ था जो कैडी से असहमत होने के लिए विवश था लेकिन उसने सुधारना और सहेजना भी चाहता था। वह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म के किसी सहृदय, रईस पात्र जैसा था जो ढेरों पैसा कमा कर अपने भीतर अटका कोई पुराना समय जीना चाहता था.

दोस्त क्रॉनिक बैचलर था जो लेखकों, कवियों का अकर्मण्य चिंतक और पाखंडी कह कर मजाक बनाता था। उसकी दिलचस्पी साहित्य से ज्यादा स्टाक एक्सचेन्ज के उतार-चढ़ाव में थी जहां उसने अपनी सारी कमाई लगा रखी थी। वह कभी-कभार कुछ पढ़ता था, विस्मय में पड़ता था फिर सब कुछ भूल कर टेलीविजन स्क्रीन की निचली सतह पर सतत गतिमान पट्टियों के साथ बहने लगता था। बहुत पहले एक बार फणीश्वर नाथ रेणु की एक कहानी तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम पढ़कर उसने कहा था कि इस कहानी में ऐसा क्या है कि हर बार मन उदास हो जाता है।

“नश्वर प्रेम की तीव्रता है दोस्त, जिसकी नियति व्यक्त होने से पहले ही नष्ट हो जाना है।“, कैडी ने डूबे स्वर में जवाब दिया था।

इसी कहानी पर बनी फिल्म देखने के बाद फिर उसने एक गाने की खिल्ली उड़ाते हुए पूछा था, ये कपड़े में कौन सा रस होता है जिसे पिंजरे वाली मुनिया लेकर चली जाती है। साथ चल रहे कैडी ने नाराज होते हुए कहा था, जो देहाती, गरीब गाड़ीवान इस गाने को गाते हैं, उनके चेहरे याद करो, फिर सोचो कि नए कपड़े पहनने में कौन सा सुख होता होगा। उसके दोस्त ने नए बोध के आश्चर्य से कहा था, यार, तुम जिन्दगी को समझते हो। तुम लेखक बन सकते हो।… कैडी के भीतर उठने वाली रचनात्मक हुड़क के पीछे अतीत के अंधेरे में अक्सर कौंध जाने वाले बातचीत के ऐसे टुकड़ों का सर्वाधिक योगदान था।

छाया को उपहार में दी गई चेखव के कहानियों की किताब वापस मिलने के चौथे दिन कैडी ने अपना इस्तीफा ई-मेल कर दिया और प्राविडेन्ट फंड की सारी रकम निकालने के लिए भी अर्जी लगा दी। इस्तीफे में उसने लिखा था कि वह व्यक्तिगत कारणों से नौकरी छोड़ रहा है लेकिन उसका किस्सा यूं सुनाता था जैसे उसने आफिस के रचना विरोधी पर्यावरण से पर्दा उठा दिया हो। उसने इच्छा की मेज पर बैठकर अपने बॉस को लिखा था कि वह लेखक बनने के लिए अनिश्चितकालीन छुट्टी चाहता है। कंपनी में मैटरनिटी लीव, पैरेन्टिन्ग लीव आदि के प्रावधान तो थे लेकिन उसके नियमों में लेखक बनने का कोई क्लॉज नहीं था। लेखक किसी नियम से नहीं बनते। नियमानुसार जब ऐसा हो पाना संभव नहीं पाया गया तब उसने इस्तीफा दे दिया।

कल्पना का बेआवाज रंदा चला कर स्थितियों और लोगों को अपनी तरह प्रस्तुत करना उसका स्वभाव ही रहा होगा। अपने अतीत में उसने इतने गहरे संशोधन कर डाले थे कि अब उन्हें सच मानता था और वास्तविक घटनाएं भूल चुका था। वह वर्तमान को संदर्भों से तराश कर ऐसे सामने रखता कि भविष्यदृष्टा होने का भ्रम देने लगता था। उसने अपने परिवार की कई पीढ़ियों के सदस्यों के चरित्र, आदतें, चेहरे, परिस्थितियां सब मनमाने ढंग से बदल डाले थे। उसके पिता सब्जी उगाने वाले खाते-पीते किसान थे, जिन्हें वह बिहार सरकार के एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट का डाइरेक्टर कहता था। इसका कारण अपना स्टेटस बढ़ाना नहीं बल्कि पिता का खेती के प्रति सरोकार और कृषि विभाग के अफसरों से कहीं बहुत अधिक व्यावहारिक ज्ञान था। उसे पक्का यकीन था कि हममें से हर एक अपना नया और अनुकूल अतीत रचता है, ऐसा किए बिना कोई जी ही नहीं सकता।

एक रात बिस्तर पर लेट कर कमरे की छत देखते हुए उसने गौर किया कि अब भी उसकी कितनी ही छायाएं मौजूद हैं। मोबाइल फोन में मैसेज हैं, फोटो हैं, लैपटाप में एक अलग फोल्डर है। उसे अपनी कमीजों की सलवटों में उसकी पतली उंगलियों की चुटकियां दिखने लगीं। सड़क पार करते हुए वह अक्सर घबरा कर उसकी कमीज पकड़ लिया करती थी। इन कमीजों को जला देना चाहिए, यह सोचने के बीच में उसने सोचा, क्या वाकई वह ये कमीजें पकड़ा करती थी। उन चुटकियों के बंद होने के पहले उंगलियों के बीच की खाली जगह में जो होता था वही तो किसी लेखक का कच्चा माल है। उसे अफसोस होने लगा कि वह खुद फैक्ट्री बनने चला है लेकिन कितना कम कच्चा माल उसके पास है.

लेटे लेटे उसने उंगलियों पर गिना। अब तक वह सिर्फ ग्यारह बार प्रेम में पड़ा था। तीन विवाहित महिलाओं के साथ जिनसे सही समय पर वह खुद बाहर निकल आया था। नए वाले को लेकर तीन प्रेम त्रिकोण थे और पांच बार उसका दिल टूट गया था। उसने कॉलगर्लों, वेश्याओं और हिजड़ों के साथ भी कुछ वक्त बिताया था। उसे ताज्जुब हुआ कि समाज के अभिजात्य तबके, सेना, ज्योतिष, व्यूरोक्रेसी और कारपोरेट कल्चर के बारे में उसकी जानकारी कितनी कम है। पछताते हुए उसने मन में तय किया कि चंडीगढ़ में वह यथासंभव अंग्रेजी से काम चलाएगा और कंपनी के लिए किसी अच्छे रेस्त्रां में ही बैठा करेगा।

यात्रा पर निकलने के एक दिन पहले वह अपने सारे रूपए लेकर दिल्ली के दरियागंज गया जहां फुटपाथ पर पाइरेटेड और सेकेन्ड हैंड किताबों का बाजार लगता था। दिन भर भटक कर उसने वे सारे क्लासिक खरीद डाले जिनकी उसने चर्चा कभी भी किसी से भी सुनी थी और उन्हें न पढ़ पाने के मलाल को महसूस किया था। लेकिन शायद ही कोई जानता होगा कि उसने अब तक ये किताबें नहीं पढ़ीं थीं। अगर यह अभिनय था तो उसके शरीर की कोशिकाओं में रहा होगा कि उनका जिक्र होने पर उसके चेहरे पर बिना किसी कोशिश के यह भाव अपने आप आ जाता था कि जो कुछ इन महान लेखकों ने लिखा है वह सब बहुत पहले उसकी संवेदना का हिस्सा बन चुका है। बीच में वह ऐसा कुछ कह देता कि सब कुछ अचूक ढंग से उलट-पुलट हो जाता था। जैसे ही यही कि अगर दोस्तोएवस्की अपनी जुआ खेलने की लत पर काबू पा लेते तो क्राइम एंड पनिश्मेन्ट जैसे तीन उपन्यास और लिख सकते थे। तालस्ताय अंतरात्मा और पश्चाताप की बात इतनी अधिक इसलिए करते हैं कि उन्होंने एक कामुक व्यभिचारी के रूप में लंबा जीवन बिताया था या मुक्तिबोध ने अपनी ज्यादातर लंबी कविताओं को लिखा नहीं था बल्कि मेडिटेशन के दौरान आधी मुंदी पलकों के ऊपरी हिस्से में फिल्म की तरह देखा था।

ओवरकोट की जेब में अपना सबसे पुराना, प्रिय पेन खोंसे, गोद में लैपटाप रखे, कोक के साथ रम पीता हुआ कैडी एक टैक्सी में चंडीगढ़ पहुंचा जिसकी डिग्गी में दो बोरे क्लासिक्स रखे हुए थे। दिल्ली की सभी पुरानी स्मृतियों से पीछा छुड़ाने के लिए उसने अपना सारा सामान वहीं बेच दिया था। वह जिस समय फ्रेंच आर्किटेक्ट ला कार्बुजिए से बाकायदा डिजाइन करा कर बसाए नए, आधुनिक कहे जाने वाले शहर में दाखिल हुआ भोर हो रही थी। एक गहरा घूंट लेकर शिवालिक पहाड़ियों के ऊपर आसमान की लाली को देखते हुए उसने खुद से कहा, “आज के सूरज की पहली किरण किसी कलम घिस्सू क्लर्क पर नहीं, अपने समय का संवेदनात्मक संत्य लिखने की इच्छा रखने वाले लेखक पर पड़ेगी।“

कैडी का दोस्त उस दिन सब कामों से छुट्टी लेकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने पुराना ठिकाना छोड़ कर तीन कमरों का नया मकान किराए पर लिया था ताकि कैडी को लिखने के लिए अपना कमरा मिल सके। उसने कमरे में कैडी के पसंद के नीले रंग के भारी परदे लगा दिए थे। कैडी कई साल बाद अपने पुराने दोस्त से मिल रहा था। उसे लगा कि उसमें आए परिवर्तन के कारण दोस्त का व्यवहार जरा विनम्र और कुछ ज्यादा ही औपचारिक हुआ जा रहा है। उसने कोक की बोतल उसकी तरफ बढाते हुए कहा, “लो पहले दारू पियो फिर तुमसे बात हो पाएगी। तुम तो ऐसे लग रहे हो साले, जैसे शेक्सपियर के सामने उसके नाटक का दर्शक खड़ा है।“ दोस्त ने बताया कि उसके नया जीवन शुरू करने की खुशी में शाम को पांच-सात जिगरी दोस्तों की एक छोटी सी पार्टी रखी है उसमें पी जाएगी।

उस रात कैडी इतना बोला कि उसकी जीभ दर्द करने लगी। इतनी तन्मयता से कि क्या कह रहा था बार-बार भूल जाता था। वह रचनात्मक लेखन के पवित्र उद्देश्य और उपभोक्ताओं को सामान खरीदने के लिए उकसाने वाले लेखन के फर्क पर धुआंधार बोलता रहा क्योंकि पार्टी में आए लोगों ने उसे विज्ञापन एजेन्सी का राइटर समझ लिया था। उनमें से किसी ने सच्ची चिन्ता से पूछा था, आपकी मेमोरी इत्ती खराब है लिक्खोगे कैसे। एक टल्ली शेयर ब्रोकर ने सलाह दी, “भाईसाहब आप तो हम जैसों के लिए चौंसठ पन्ने वाली आह सी-सी टाइप किताबें लिक्खो, अच्छी आमदनी होगी।”

कैडी ने उसे समझाया कि उसके पास काफी पैसे हैं और अभी उसका इतना बुरा वक्त नहीं आया है कि छिपाकर पढ़ी जाने वाली किताबें लिखे। साथ ही उसे ईर्ष्या हुई कि वह जिन किताबों को भांग की पकौड़ी या अश्लील साहित्य के रूप में जानता था, उनका यहां पाठकों के द्वारा कितना सटीक मेटाफिजिकल और फोनेटिक नामकरण किया जा चुका है।

लेखक के रूप में कैडी के जीवन की शुरूआत शानदार हो, दोस्त ने पूरी तैयारी कर रखी थी। अगले दिन वह कैडी को लेकर बाजार गया जहां सबसे पहले उसने उसकी पसंद की डाइनिंग टेबल की साइज लिखने की एक मेज और एक खूब आरामदेह रिवाल्विंग चेयर खरीदी। किताबें रखने के लिए शीशे के शोकेस वाली दो आलमारियां वह पहले ही बुक कर चुका था। लौटते हुए रास्ते में कैडी को कार में छोड़ कर वह गायब हो गया। जब लौटा तो उसके एक हाथ में कॉफी के दो डिजाइनर मग और दूसरे में एक भारी पैकेट था। घर लौटकर उसने मेज पर पेन स्टैंड में कई तरह के पेन, कई रंगों की स्याहियां और मार्कर सजा दिए। वह एक आई-पॉड भी लाया था जिससे लेखक काम के दौरान या थक जाने के बाद टहलते हुए संगीत सुन सके। सबसे अंत में उसने ए-फोर साइज के जेके बांड कागजों की पूरी रिम धम्म से रखी जिसकी तरंगों से पूरा कमरा कांप गया।

नौकर को उसने यह हिदायत पहले दिन से दे रखी थी कि काम के बीच वह कमरे की सफाई न करे, नाश्ते या खाने के लिए पूछ कर डिस्टर्ब न करे, साहब को जरूरत होगी तो वे खुद ही उसे बुला लेंगे। “ये सब तुम्हारे ही काम की चीजें हैं, मैं इन्हें तुम्हें गिफ्ट कर रहा हूं।,” कमरे की सजावट खत्म करते हुए दोस्त ने कहा था।

पहले दिन कैडी रिवाल्विंग चेयर पर बैठ कर कभी दाएं, कभी बाएं घूमता और कभी पीछे उचकता रहा। विशाल कुर्सी के मच मच करते, गुदगुदे घुमाव में जमींन से ऊपर और आसमान के नीचे के स्पेस में तिरने की उन्मुक्तता थी। मेज के ठीक सामने एक बड़ी सी खिड़की थी जहां इमारतों से दूर क्षितिज पर नीली धुंध में डूबी पहाड़ियां दिखाई देती थीं। वह हर तरह से महसूस करना चाहता था कि उसकी लिखने की मेज से ब्रह्मांड कैसा दिखाई देता है। सबसे पहले उसने एक कोरे कागज पर नई पेन की निब जांचने के लिए हस्ताक्षर किए। फिर पूरी दोपहर वह तरह-तरह के स्टाइल में अपने हस्ताक्षर बनाता रहा और उनके चारों ओर आकृतियां खींचता रहा। चेहरे, लैंडस्केप, एक दूसरे में उलझे अनिश्चित डिजाइन उकेरते हुए उसने राहत की तरह महसूस किया कि इलस्ट्रेशन में उसका हाथ इतना बुरा नहीं है जितना वह सोचता था। तभी उसकी नजर मेज पर पेपर वेट से दबे सौ रूपए के नए नोट पर गई। उसने उसे उठाया, रिजर्व बैंक गवर्नर के हस्ताक्षर के ऊपर अपने हस्ताक्षर किए और वहीं दबा दिया।

अगली सुबह रजाई में दुबके हुए उसने देखा, दोस्त अपने काम पर निकल रहा था। उसने पर्स से सौ का एक नोट निकाल कर मेज पर पेपरवेट से दबा दिया। कैडी ने शरीर को पूरी लंबाई तक तानते हुए पूछा, “यह चढ़ावा किस लिए है भाई।“
कल कम तो नहीं पड़े। दोस्त ने झेंपते हुए कहा, “यूनियन टेरेटरी है न। यहां दिल्ली से दारू सस्ती है। मैं तो देर से लौटता हूं। शाम को किसी पब में चले जाया करो, कंपनी मिल जाएगी। ”

कैडी के इसकी क्या जरूरत के जवाब में उसने चुप रहने का इशारा करते हुए गंभीर ढंग से कहा, “यह मेरी इच्छा है। जब तक तुम्हारी पहली किताब नहीं आ जाती हर रोज मैं यही करता रहूंगा समझे।”

बिस्तर छोड़ने से पहले कैडी ने उस जाड़े की सुबह, खिड़की से आती धूप में तय किया वह अपनी पहली किताब दोस्त को समर्पित करेगा। लेखक बनने की शुरूआत के लिए जैसा उसने सोचा था सबकुछ उससे बहुत उम्दा ढंग से घटित हो चुका था। अब बस उसे खूब जमकर काम करना था। लेकिन शुरूआती दिन ही तो सबसे कठिन दिन थे।
सारा दिन शहर में भटकने के बाद देर रात किसी पब से लौटता और लिखने की मेज पर बैठकर नोटपैड का उंगलियों के निशान से गंदा हो चुका एक पेज खोलता जिस पर सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी,“तुम मुझे सिर्फ चोदना चाहते हो।”

वही तेरह अक्षर जो निरंतर दोहराए जाने के कारण उसकी चेतना की सतह खोद कर गहराई में अंकित हो चुके थे। उसके दिमाग की नसें झनझनाने लगतीं थी। उच्चशिक्षा पाई हुई, चेखव को पढ़ने वाली, अच्छे खानदान की कोई अंग्रेजी बोलने वाली लड़की इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर कैसे सकती है। क्या वह इतनी शातिर रणनीतिकार और बदजात है कि उसने इस एक वाक्य को उस खास अवसर के लिए चुन कर रखा था कि कोई भी सभ्य आदमी हक्का बक्का रह जाए और उसे जाते हुए देखने के सिवा कुछ न कर सके।
यानि छह साल से घिसटते, गंधाते प्रेम से ऊबे जिस मंगेतर की अब शादी में दिलचस्पी खत्म हो गई थी, उसे पहले मुझसे मिलवाया, मुझसे प्यार का नाटक कर ईर्ष्याग्रस्त किया, जब वह फिर से काबू में आ गया तो सिर्फ एक शब्द से मुझे स्तब्ध कर उसके बैंक बैलेन्स और घर की मालकिन बनने चली गई। शब्दों का ऐसा सांघातिक इस्तेमाल शायद ही दुनिया के किसी बड़े से बड़े लेखक ने करने की सोची हो।

कहीं यह अनुवांशिक तौर पर मिले उन्नत ब्राह्मण दिमाग की कुटिल चालों में से एक चाल तो नहीं है जिससे निचली जातियों की स्त्रियों के साथ संभोग तो किया जा सकता था लेकिन बाकी कामों के लिए अछूत और अपवित्र घोषित कर दिया जाता था। बेगारी, मजदूरी से ऊपर उठकर ज्ञान, तकनीक और तर्क पाने की कोशिश करने वाले महत्वाकांक्षी पुरूषों को गोबर खिलाकर या कानों में पिघला शीशा डालकर प्रायश्चित कराया जाता था। जैसे ये पांच शब्द हैं वैसे कुछ हजार शब्द ही तो थे जिन्हें धर्मग्रंथों में ईश्वर के हवाले से अनवरत उच्चारित कर बहुसंख्यक आबादी में नीच, अयोग्य, अपवित्र और अपराधी होने की हीन भावना भर दी गई थी। जैसे मैं नौकरी और शहर छोड़ आया हूं वैसे ही वे भी तो पीढ़ी दर पीढ़ी सारी प्रवासियों की तरह दर ब दर फिरते हुए हर तरह की यातनाएं सहते जाते थे…..नाटक ही सही लेकिन प्रेम का नाटक करती किसी स्त्री का हृदय इस गलीज ढंग से पटाक्षेप करेगा।…कहीं वह घसियारिनों वाले भदेस ढंग से मुझे, मंगेतर को शादी तक पहुंचाने के लिए खेले गए, नाटक में सफल भूमिका निभाने के एवज में अपना मेहनताना ले लेने की छूट तो नहीं दे रही थी…कहीं यह एक मेट्रो के दिखावटी नारीवाद का असर तो नहीं था जिसके खुमार में बोल्ड और बिन्दास होने का तमगा पाने के लिए कुछ भी बोला जा सकता है।

हर रात वह नोटपैड का वही पन्ना अपने आप खुल जाता था। उसका दिमाग अधिकतम सीमा तक तनावग्रस्त होकर तड़कने लगता, अंततः पस्त हो जाता और वह रजाई में घुस कर आंखें बंद कर लेता। वह नकारात्मक भावनाओं के प्रबल, अनियंत्रित भंवर में फंस गया था जिसके चारों ओर चक्कर काटता हुआ अंतहीन, अंधेरा तरल था।

सीधी-सादी सचाई को अति साधारण मानकर उपेक्षा करने, यथार्थ को मनमाने ढंग से महसूस करने और उससे भी अधिक नाटकीय ढंग से व्यक्त करने की लत के कारण कैडी बहते हुए भावनात्मक आवेगों के एक बहुत ऊंचे झरने में गिर पड़ा था। उसका दिल टूटने से निकली चीख में घुली हुई एक और, उतनी ही तीव्र चीख थी जो ऊंचाई से गिरने के थ्रिल से पैदा हुई थी। वह उस ऊंचाई से एक बार धकेला गया था, लेकिन दूसरी बार लेखक बनने के एडवेन्चर से खिंच कर खुद कूदा था।

टैक्सियों में उसके साथ ट्रैफिक के ऊपर तैरने के उन तीन महीनों में छाया ने एक स्त्री की संवेदना से जान लिया था कि कैडी उसे जल्दी से जल्दी बिस्तर तक ले जाना चाहता है लेकिन कोई दायित्व नहीं उठाना चाहता। वह दायित्व उठाने के लिए बना ही नहीं है। वह जिम्मेदारी लेने वाले किसी और को शब्दों का स्नान करा कर दर्शनीय बना सकता है लेकिन खुद नहाने के लिए पानी में नहीं उतरेगा। इसलिए उसने कम आकर्षक व्यक्तित्व व व्यावाहारिक बुद्धि वाले, पुराने मालदार मंगेतर के पास लौट जाना बेहतर समझा। अपने शर्मीले स्वभाव, साहित्य को समझने के लिए डिक्शनरियों और थिसारस की खाक छानने के बावजूद उसने विदाई के लिए परदादी, परनानी के जमाने के भी पहले से आजमाया जा रहा अचूक तरीका चुना था। उसी प्रवृत्ति से जिससे खतरे में छिपकली की पूंछ टूटकर अलग हो जाती है।

जिस शाम कैडी उसके अपार्टमेन्ट के गेट पर बैठा पीता हुआ उन दोनों की प्रतीक्षा कर रहा था, उस पूरी रात वह सो नहीं पाई थी। किसी भी नैतिक पश्चाताप या अपराधबोध से अधिक उसे यह भय सताता रहा कि वह अपनी हरकतों से उसका वैवाहिक जीवन नरक बना डालेगा। उसकी बहन के घर में जहां वह पेईंग गेस्ट थी, जब सारे लोग सो रहे थे, वह भोर के पांच बजे एक टैक्सी लेकर पंद्रह किलोमीटर दूर कैडी के कमरे तक गई थी। सारे रास्ते एक झूठ को असरदार ढंग कहने की हिम्मत जुटाने के बाद उसने दरवाजा खटखटाया था। नींद से तरोताजा होकर उठे, सुबह उसे सामने देखकर खिलते अपने प्रेमी कैडी से उसने कहा था, “तुम मुझे सिर्फ चोदना चाहते हो।”

कैडी के भीतर, अथाह गहराई के अंधेरे तल में जहां कोई रोशनी नहीं जाने देना चाहता, किसी ने बच्चे की सी अबोधता से कहा था, “हां, लेकिन इसमें समस्या क्या है।”

लेकिन खुद वह भी इसे नहीं सुन पाया क्योंकि उस समय वह एक क्षीण सी आशा के फिर भभक उठने के प्रलोभन में बेचैनी से ऊपर मंडरा रहा था। यह सच नहीं है कि वह स्तब्ध हुआ था। उसे प्रतिक्रिया में स्तब्ध दिखना जरूरी लगा था जिसपर उसका कोई वश नहीं था। वह उसे जाते हुए देखता रहा, उसने मैक्सी के ऊपर शाल ओढ़ रखा था, पैरों में स्लीपर थे घिसने से जिनकी एड़ियों पर ढलान बन चुकी थी। वह ऐसे बोली थी जैसे कोई हकलाते हुए काव्यपाठ कर रहा हो और सीढ़ियों पर लड़खड़ा कर गिरते बची थी।

कुछ दिनों बाद वह मेज पर पैर रखकर बैठने लगा था। उसकी गोद में नोटपैड और पैरों के पास रम का गिलास रखा होता। इसी तरह घंटों शून्य में ताकने के बाद वह पैड पर ऊल जुलूल कुछ लिखता, जब पीठ में दर्द होने लगता तो बिस्तर पर गिर कर सो जाता। एक कागज के टुकड़े पर उसने लिखा था, “मैं खुद को अवांछित और अवैध महसूस करता हूं।”

एक रात वह सीधे मुंह के बल एक गड्ढे में गिर पड़ा था। वहीं पड़े-पड़े खून से तर, उसने बेहद नशे की हालत में अपनी चेतना की सतह पर खुदे और नोट पैड पर लिखे उस अकेले वाक्य को चारों तरफ से घेरते हुए चक्रवात जैसे आवेग से उसने लिखा, उसकी सीढ़ियों पर एक शराबी मुर्गे की तरह शर्मनाक ढंग से लड़खड़ाने के बजाय तुम उसे शांति से कभी बता क्यों नहीं पाए कि तुम्हारा प्यार कोमल, अबोध, सपनीला और घनघोर वासनामय सब एक साथ है। अपनी प्रेमिका के साथ सेक्स के लिए अधीर होने में ऐसा क्या अप्राकृतिक और अपमानजनक था जो तुम शर्म से जमींन में गड़ गए। औऱतें लाखों सालों से अपने प्रेमियों पर जो झूठा लांछन लगाती आई हैं कि वे उन्हें सिर्फ शरीर समझते हैं, उसका जवाब कितना सहज है लेकिन तुम सोच भी नहीं पाए। सिर्फ प्यार के ईथर से बनी कोई अशरीरी औरत कैसी होती होगी।

उसने यह इतने तेज बहाव में लिखा था कि अगली सुबह और उसके बाद फिर कभी भी लाख कोशिश करके भी वह एक शब्द तक नहीं पढ़ पाया। वहां कागज पर स्याही और खून की लार फेंकने वाली किसी फूहड़ और जल्दबाज मकड़ी का जाला बुना हुआ था। थोड़े समय बाद वह जब भी खिड़की से बाहर देखता उसे महसूस होता कि सरसराती, ठंडी हवा उसके भीतर भरती जा रही है जिसके कारण वह इतना भारी हो गया है कि अब कभी उठ नहीं सकता।

जल्दी ही जैसे उसे अखंड निद्रा का लंबा दौरा पड़ा। उस पूरे जाड़े वह दस से सोलह घंटों तक सोता रहा। सुबह एक पैग पीकर वह खुद को उठने की हालत में लाता। नाश्ता करके मेज पर बैठते ही वह ऊंघने लगता और बगल में लगे बिस्तर में सरक जाता। दोपहर को खाने से पहले रम पीकर टहलता या चुपचाप बैठा रहता फिर सो जाता। देर रात तक बेमकसद धुत भटकने के बाद वह लौटता और सुबह जगाकर नाश्ता दिए जाने तक सोता रहता।

ढाई महीने बाद कैडी का दोस्त अब घबराने लगा था। वह अनवरत नींद के दौरान उसके बाल, दाढ़ी और नाखून बढ़ते देखता रहता था जिनकी कैडी को अब कोई फिक्र नहीं रह गई थी। न नहाने और पार्कों में सो जाने के कारण उसके उसके शरीर से वैसी गंध उठने लगी थी जो पागलों और भिखारियों की पहचान है। एक दिन उसने मेज पर पड़े कागजों को देखा तो उसे लगा कि कैडी स्टेशनरी की दुकान का कूड़ा उठा कर घर लाने लगा है। बॉलपेन को जांचने और उसकी रिफिल का फ्लो शुरू करने के लिए उसे चलाने से जैसी आकृतियां बनती हैं, उनसे कोई सवा सौ तुड़े-मुड़े पन्ने भरे हुए थे।

दोस्त पूछता, काम कैसा चल रहा है तो कैडी हमेशा कहता कि वह गिटार बजाना सीख रहा है। वह अपने भीतर खूब बजा लेता है लेकिन जब सचमुच बजाना होता है तो समझ में नहीं आता कि कहां से शुरू करे। वह तार पर सही छुअन को घटित करने वाले स्नायु से तालमेल बिठाने की कोशिश में लगा हुआ है। कैडी की चुप्पी को संबोधित कर दोस्त अब लगातार कहने लगा कि लेखक का काम बेहद जटिल होता है। तुम्हें कैसा लग रहा है तुम जानो लेकिन हमें चलकर किसी डाक्टर को दिखा लेना चाहिए।

किसी खास जांच-पड़ताल की जरूरत नहीं थी। डाक्टर ने बताया कि वह गहरे डिप्रेशन का शिकार है, जिसकी एकमात्र असरदार दवा नींद है। दिमाग अपने आप अपना इलाज कर रहा है। क्लिनिक से बाहर निकलते हुए कैडी ने दोस्त से कहा, डाक्टर गधा है। मेरे जीवन के एक बड़े हिस्से में समय ठहर गया है। जब तक वह बहना शुरू नहीं करता कोई लेखक या कुछ भी कैसे बन सकता है। अविश्वास और सदमे से दोस्त का मुंह खुला रह गया।

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अनिल कुमार यादव सुपरिचित लेखक-पत्रकार हैं. इनकी किताब ‘वह भी कोई देस है महाराज’ ख़ूब चर्चा में रही थी. इनसे anilekhak@gmail.com पर बात हो सकती है. 
अनिल की यह कहानी असद ज़ैदी के सम्पादन में निकलने वाली पत्रिका ‘जलसा’ में प्रकाशित हो चुकी है.

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