
नए पत्ते :: कविताएँ : अविनाश भाषा की पेंचकसी बसी-बसाई क्रूरतम भाषा को मथ कर उस संगीतात्मकता का निर्माण जिसे साहित्यिक कहते फिरें— होगी यह किसी कुंजी की खुराफ़ात। उस संगीत को इस तरह बजाया गया जैसे धुन ने ही पीछे आकर बनाया हो स्वयं के लिये वह वाद्य। संगीत को हमनें खोजा है और वाद्य यंत्रों का किया है अविष्कार। भाषा को बनाते हैं कबीले और उसे कसने का जिम्मा उठाते हैं यह साहित्यिक। तुम्हें जब भी लिखनी...