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कितनी बार स्वयं चलकर आएगा प्रेम

नए पत्ते कविताएँ :: अपूर्वा श्रीवास्तव कई सदियों की उदासी पीढ़ी दर पीढ़ी उतरती है उदासी स्त्रियों के भीतर जिम्मेदारियाँ सौंपते हुए पुरखिनें सौंप देती हैं अपने हिस्से की उदासी भी जैसे उन्हें सौंपा गया होगा कभी जिसे ढोते वे बनती गईं वह जो होना उनके होने में कभी नहीं था शामिल मेरे भीतर भी बैठी है कई सदियों की उदासी जिसे साझा करती हूँ मैं कविताओं संग कागज़ सोख लेता है उसे और शब्द लगा लेते हैं गले...

इस क्रूर, पूँजीवादी समाज के सवाल तक

नए पत्ते :: कविताएँ : सार्थक दीक्षित राष्ट्रीय प्रवक्ता  वो सबसे अधिक जानकारी रखने वाले लोग थे उन्हें मालूम थीं सबसे बेहतर और अधिक तकनीकें जिनसे वो कर सकते थे प्रधानसेवक के सेवा-भाव का बचाव उनके शब्दकोश में थे सबसे अधिक नफरती शब्द वो संविधान के अनुच्छेद ’19’ के असली झंडाबरदार थे जो जहाँ जी आता वो बोल देते ‘मार डालना’, ‘काट डालना’ थे उनके लिए आम शब्द जो समाचार...

प्रेम स्मृतियों का बैकअप है

नए पत्ते :: कविताएँ : केतन यादव बैकअप स्मृतियाँ तुम्हारे प्रेम की क्षतिपूर्ति स्वरूप मिलीं जो तुम्हारे होने का भ्रम बनाए रखती हैं सदा। बाँट लेता हूँ  तुम्हारी अनुपस्थिति फेसबुक, इंस्टाग्राम से हर स्क्रोल में दिख जाता है हमारा साथ बिखरा पड़ा रील्स दर रील्स मोबाइल के की-पैड पहचानते हैं तुम्हारा नाम एक अक्षर टाइप होते ही पहुँचा देते हैं संवाद के आख़िरी शब्द तक, जिसे यह सदी कहती है ऑटोसजेशन वह...

समय कविताओं को जीवित रखता है

नए पत्ते :: कविताएँ : नीरज वसंत अभागों को प्रेम होता है— पतझड़ में उनकी ओर ईश्वर लौटते हैं‌ हाथ में फूल लिए तो वसंत आता है। निवेदन जिनके हिस्से में मॉं नहीं हैं हे ईश्वर! तुम उनको मुझसे ज्यादा ही देना ज्यादा भी सम्भवतः भर पाए उनका खालीपन। सोचना जरूर दो फूलों को कुचलते हुए अगर मैं तुम तक पहुँचता हूँ तो तुम मुझे तुरन्त अस्वीकार कर देना दो फूलों के साथ अगर मैं तुम तक पहुँचता हूँ तो तुम मुझे स्वीकार...

तुम्हारे साथ के कारण शब्द आ गए हैं मेरे पास

नए पत्ते :: कविताएँ : अनिकेत कुमार मौन और तुम्हारे शब्द का साथ रात हो चुकी है, मन शांत हैं मेरा, आवाज नहीं आ रही आस पास, शायद मन तुम्हारी आवाज का इंतजार कर रहा। शायद मन तुम्हारी खुसफुसाहट का इंतजार कर रहा। सर्दी की रात है, शायद मन तुम्हारी स्पर्श की गर्माहट का इंतजार कर रहा। होठों के स्पर्श में ठंडक होती है, पर मन सर्दी भूल कर उस ठंडक को पा लेना चाहता है। तुम हो शायद आस पास, पर बिलकुल मौन है मेरा...

एक कविता और, और फिर, एक जीवन और

नए पत्ते :: कविताएँ : अविनाश भाषा की पेंचकसी बसी-बसाई क्रूरतम भाषा को मथ कर उस संगीतात्मकता का निर्माण जिसे साहित्यिक कहते फिरें— होगी यह किसी कुंजी की खुराफ़ात। उस संगीत को इस तरह बजाया गया जैसे धुन ने ही पीछे आकर बनाया हो स्वयं के लिये वह वाद्य। संगीत को हमनें खोजा है और वाद्य यंत्रों का किया है अविष्कार। भाषा को बनाते हैं कबीले और उसे कसने का जिम्मा उठाते हैं यह साहित्यिक। तुम्हें जब भी लिखनी...

 क्या प्रेम भी पतझड़ जैसा ही होता है

 

नए पत्ते :: कविताएँ : विभा परमार उदासी चूंकि सर्दियों का उदास मौसम अब जा चुका है और अपने पीछे छोड़ गया है पतझड़, जो झड़ रहा है क्षण-क्षण शायद इस क्षण-क्षण में मैं भी झड़ी जा रही हूँ उन सूखी पत्तियों की तरह जो चुपचाप झड़कर पड़ी रहती हैं पेड़ों के नीचे जिनको छूने भर से ही त्याग देती हैं वे अपना शरीर! सोचती हूँ कि क्या प्रेम भी पतझड़ जैसा ही होता है- जो धीरे धीरे झड़ने लगता है! फ़िर ख़्याल कौंधता है कि मैं भी...

राहों की लम्बाई का गणित

कविताएँ :: रूपेश चौरसिया १. प्रिय, मैं तुमसे तब बात करना चाहूंगा जब धरती स्थिर हो जाएगी, रात गहरी नींद में सोई रहेगी, हवाएँ खामोश रहेंगी, चाँद हमारी पहरेदारी करेगा कि कोई आवाज हमसे न टकरा जाए. २. पते पर पहुंचे सारे प्रेमपत्र ‘माँ देख लेगी’ कहकर जला दिए गए जैसे चोरी के सबूत जलाए जाते हैं पुलिस के डर से कि सजा होगी प्रेम चोरी से भी जघन्य अपराध है. ३. राहों की लम्बाई का गणित लिखते जाएंगे...

ऊँचाई पर अकेले रहना सबसे खतरनाक है!

कविताएँ :: पवन कुमार वैष्णव कविता माँ है कठोर से कठोर प्रहार भी सह लेता हूँ, कविताओं को लिखता नहीं जी लेता हूँ. मुझसे अधिक सहती हैं मेरी कविताएँ. मैं वह बच्चा हूँ जिसे हर सिसकी में, कविता ने माँ की तरह अपने सीने से लगाया है. यदि इंसान मुझे अपने हिस्से से निकाल दे तो..! मैं वह रंग हूँ जिसे तितलियाँ नहीं लगाना चाहती, आसमान मुुुुझे स्वीकार करे. मैं वह सुगन्ध हूँ जिसे फूल अपनाना नहीं चाहते, धरती मुझे...

कविताएँ जो मैंने तुम्हें समर्पित कीं

कविताएँ :: अभिषेक आखिरी किताब तुम्हारे ताखे पर रखी सभी किताबों के नीचे जो सबसे आखिरी किताब है न- मैं वही किताब हूँ। मुझे आज भी याद है जिस दिन तुम मुझे पूरे बाजार से ढूंढ कर लाई थी फिर उस रात तुम मुझे तीन बजे तक पढ़ती रही कुछ पन्ने भी तुमने मोड़े थे, जो तुम्हेँ बहुत पसंद आए काफी दिनों तक तो तुम मुझे कहीं छोड़कर जाती ही नहीं थी, चाहे पार्क हो, कॉलेज हो, कैफे हो या सफर हो। फिर तुम्हें एक दूसरी किताब...