समुद्र अपनी नाभी में एक घंटी बांधे हुए है

स्त्री संसार ::
कविताएँ : ऐन सेक्सटन
अनुवाद, चयन एवं प्रस्तुति : प्रकृति पार्थ

अमेरिकी कवयित्री ऐन सेक्सटन का जन्म 9 नवंबर, 1928 में हुआ। वे अमेरिका की प्रसिद्ध कन्फेशनल कवियों में से एक हैं। पूरी उम्र अवसाद से जूझती रही ऐन की कविताओं में उनके निजी जीवन में संघर्ष के वर्णन के साथ साथ एक औरत की बेधड़क पुकार और बिना तोड़े-मोड़े स्वीकारे जाने की इच्छा दिखाई पड़ती है। उनकी कविताएँ स्त्री के विभिन्न अनुभवों और जटिल प्राकृतिक रूप का संकलन हैं।

उसकी तरह की स्त्रियाँ

मैं बाहर घूमने गई हूँ कई बार, एक पागल चुड़ैल की तरह,
काली हवा को सताते हुए, रात में और ज़्यादा साहस से भरी हुई।
बुराई का सपना देखते हुए, मैंने अपनी छाया डाली है
उन सामान्य घरों के ऊपर, एक के बाद एक:
अकेली, बारह उंगलियों वाली, सिरफिरी।
ऐसी स्त्री, स्त्री नहीं होती, पूर्ण।
मैं उसी की तरह रही हूँ।

मैंने जंगल में गर्म गुफाएँ ढूंढी हैं,
उन्हें कढ़ाइयों, नक़्क़ाशिययों, ताखों से भर दिया—
अलमारियाँ, रेशम, अनगिनत सामान;
कीड़ों और बौनों के लिए रात का खाना बनाया:
रोते हुए, अव्यवस्थित को दोबारा व्यवस्थित किया।
ऐसी स्त्रियों को गलत समझा जाता है।
मैं उसी की तरह रही हूँ।

मैंने तुम्हारी गाड़ी में सफर किया है, चालक,
गुजरते हुए गाँवों को अपनी नग्न बाहें लहराई है,
आखिरी उजास रास्ते याद किए हैं, उत्तरजीवी रही,
जहाँ तुम्हारी लपटें अभी भी मेरी जांघ को काटती हैं
और जहाँ तुम्हारे पहियों की हवा से मेरी पसलियाँ टूटती हैं।
ऐसी स्त्री को मरने में शर्म नहीं आती।
मैं उसी की तरह रही हूँ।

नंगे पैर

मेरे जूतों के बिना मुझसे प्रेम करना
मतलब मेरे लंबे भूरे पैरों को प्रेम करना,
मेरे प्यारे, बिल्कुल चम्मच के जैसे पैर;
और मेरे पैर के पंजे, जैसे दो बच्चे—
जिन्हें नग्न हो कर खेलने के लिए बाहर जाने दिए हो। पेचीदा नसें,
मेरे पैर की उँगलियाँ। अब बंधीं नहीं हैं।

और तो और, पैर के नाखूनों को देखो और
सभी दस उँगलियाँ, एक की तरह दूसरी।
सभी उत्साही और जंगली, यह छोटा
घेंटला बाज़ार गया और वो छोटा घेंटला
रुका। लंबे भूरे पैर और लंबी भूरी, पैर की उँगलियाँ।
और ऊपर, मेरी प्रिय, वह औरत—
अपने रहस्यों को आवाज़ दे रही है, छोटे घर,
और बात करने वाली छोटी जीभ।

हमारे सिवा और कोई नहीं है
डूबे ज़मीन पर बने इस घर में।
समुद्र अपनी नाभी में एक घंटी बांधे हुए है।

और मैं पूरे एक हफ्ते के लिए तुम्हारी नंगे पैरों वाली
वेश्या हूँ। क्या आप मछली खाना पसंद करेंगे?
नहीं, क्या आप स्कॉच लेना नहीं चाहेंगे?
नहीं, आप पीते नहीं हैं। मगर आप
मुझे तो पीते हैं।

समुद्री चिड़ियाँ मछलियों को मारती हैं,
तीन साल के बच्चे की तरह चिल्लाते हुए।
समुद्री लहर मादक है, पुकारती हुई
मैं हूँ, मैं हूँ, मैं हूँ
पूरी रात।

नंगे पैर
मैं तुम्हारी पीठ पर ऊपर नीचे चहलकदमी करती हूँ।
सवेरे मैं कोठरी के एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे
पकड़म-पकड़ाई खेलते हुए दौड़ती हूँ।

अब
तुम मुझे
एड़ियों से पकड़ते हो

अब
तुम ऊपर की तरफ
बढ़ते हो

आते हो
मेरे क्षुधा-चिन्ह के पास
उसे भेदने।

•••

 इंद्रधनुष का स्तम्भ ‘न से नारी’ अब ‘स्त्री-संसार’ शीर्षक से जाना-पहचाना जाएगा। स्त्री-विमर्श केन्द्रित इस स्तम्भ के अंतर्गत अभी तक कई स्त्री-चिंतकों, लेखकों, कवियों की रचनाएँ, विचार और उक्तियाँ शाया होती रही हैं। ‘स्त्री-संसार’ की बातें, स्त्रियों के माध्यम एवं उनके ही चयन से दृश्य में लाने की यह क़वायद इंद्रधनुष की विशिष्ट टीम ‘द फेनोमेनल वीमेंन’ की सदस्य देख रहीं हैं। इस स्तम्भ के अंतर्गत प्रकाशित अन्य प्रविष्टियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं : स्त्री-संसार

प्रकृति पार्थ कवि और अनुवादक हैं। उनसे prakritiparth04@gmail.com  पर बात हो सकती है।

 

About the author

इन्द्रधनुष

जब समय और समाज इस तरह होते जाएँ, जैसे अभी हैं तो साहित्य ज़रूरी दवा है. इंद्रधनुष इस विस्तृत मरुस्थल में थोड़ी जगह हरी कर पाए, बचा पाए, नई बना पाए, इतनी ही आकांक्षा है.

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