उद्धरण : डॉरिस लेसिंग
अनुवाद एवं प्रस्तुति : सृष्टि
डॉरिस लेसिंग एक ब्रिटिश उपन्यासकार थीं। उनका जन्म ब्रिटिश माता-पिता के यहाँ ईरान में हुआ था, जहाँ वह 1925 तक रहीं। उसके बाद उनका परिवार दक्षिणी रोडेशिया (अब जिम्बाब्वे) चला गया, जहाँ वह 1949 में लंदन, इंग्लैंड जाने तक रहीं। उनके उपन्यासों में द ग्रास इज़ सिंगिंग (1950), सामूहिक रूप से चिल्ड्रन ऑफ़ वायलेंस (1952-1969), द गोल्डन नोटबुक (1962), द गुड टेररिस्ट (1985), और पांच उपन्यासों का क्रम जिन्हें सामूहिक रूप से कैनोपस इन आर्गोस कहा जाता है, शामिल हैं। लेसिंग को 2007 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2001 में लेसिंग को ब्रिटिश साहित्य में जीवन भर की उपलब्धि के लिए डेविड कोहेन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
तुम्हें पता है लोग सच में क्या चाहते हैं? मेरा मतलब है कि हर इंसान क्या चाहता है? दुनिया में हर कोई सोच रहा है कि, काश कोई एक ऐसा इंसान होता जिससे मैं सच में बात कर पाती, जो मुझे वाकई में समझता, जो मेरे साथ उदार होता। अगर लोग अपनी चाहत के बारे में सच कह रहे हैं तो वो यही चाहते हैं।
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कभी–कभी मुझे स्त्रियाँ पसंद नहीं आती हैं, मैं हम सब को नापसंद करती हूँ, क्योंकि जब स्थिति हमारे अनुकूल होती है तो हम में बिल्कुल न सोचने की एक ताक़त होती है। हम नहीं सोचना चुनते हैं जब हम खुश होते हैं।
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शब्द। शब्द। मैं शब्दों के साथ खेलती हूँ इस उम्मीद के साथ की कोई भी संयोजन, इत्तेफ़ाक में हुआ संयोजन भी शायद वो बात कह दे जो मैं कहना चाहती हूँ।
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उसने सोचा कि अकेलेपन को किसी और इंसान का साथ चाहिए था। किंतु उसे यह नहीं पता था कि अकेलापन आत्मा की ऐसी ऐंठन हो सकता है जिसे देखा ना गया हो, किसी साथी के ना होने की वजह से।
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उसने सौंवी बार ये सोचा कि स्त्रियों की भावनात्मक जिंदगी में ये सारे बुद्धिमान पुरुष इतनी नीची सोच से काम करते हैं जितनी नीची सोच से वो और कोई काम नहीं करते, कि ये सारे किसी और ही प्राणी की तरह जान पड़ते हैं।
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वो कहती है, ‘मुझे नफरत है 1960’s की स्त्रीवादियों से। वे सब रूढ़िवादी थीं, तुम अगर देखो तो। जैसे ही विचारधारायें आती हैं, वैसे ही समान्य ज्ञान बाहर चला जाता है। ये जिंदगी में मेरा अनुभव है’।
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बहुत लंबे समय तक मुझे लगता रहा कि मैंने कोई बहुत ही बहादुरी भरा काम किया है। किसी बुद्धिजीवी स्त्री के लिए, किसी बच्चे के साथ अंतहीन समय बिताने से ज्यादा उबाऊ काम कोई नहीं है। मुझे लगा मैं उनको पालने के लिए सही इंसान नहीं हूँ।
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स्त्रियाँ ही कायर हैं क्योंकि इतने लंबे समय तक वो आधी–गुलाम रही हैं।
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सृष्टि कवि और अनुवादक हैं। उनसे shristithakur7@gmail.com पर बात हो सकती है।