कविता : रवींद्रनाथ ठाकुर
बांग्ला से अनुवाद : तनुज

पद्यों का एक आयुधागार

जीवन की व्यस्तता और चीख के मध्य,
पाषाणों में भित्तिकृत,
लावण्या हो तुम–
खड़ी मौन और स्थिर, अकेली और विलग

महान समय बैठा हुआ है,
मोहित होकर तुम्हारे चरणों के सम्मुख
और दोहराता है तुम्हें..

कहो, मुझसे कहो, मेरे महबूब, कुछ तो कहो,
मेरी मूक दुल्हन :

तुम्हारी कहन रुकी हुई है इन पाषाणों के भीतर!

“ओह!
तुम अचल सौंदर्य!”

कहो क्या यह सच है, मेरे महबूब,
कहो यह बात सच है–

जब भी मेरी आँखों से दमकती हैं बिजलियाँ तुम्हारी तरफ़
तुम्हारे उरोजों के ऊपर पसरा हुआ
अंधकारमय बादल,
देता है अक्सर तूफ़ानी जवाब!

क्या यह सत्य है, तब उन रातों से गिरती हैं ओस की बूंदें
जब भी ढूंढ लिया जाता हूँ मैं??
और खुश रहा करती है
सुबह की रौशनी तमाम, ओढ़कर मेरी देह??

क्या यह सच है?
क्या यह सच है?
“तुम्हारा प्रेम समय और ब्रह्मांड की लंबी यात्रा करने के पश्चात पहुंचा है मुझ तक!”

और जब तुम मुझे खोज लेती हो अंततः,
तुम्हारी उम्र भर की कामना पाती हैं पूर्ण शांति
मेरे शिष्ट भाषणों के भीतर
मेरी आँखों में,
मेरे होंठों पर,
और बहते हुए केशों के समीप

क्या यह सच है मेरी प्राण,
वह अनंत का रहस्य लिखा हुआ है मेरी नन्हीं भौहों के ऊपर!

बोलो मेरी प्राण,
क्या यह सब पूर्णतः सत्य है ?

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर (7 मई 1861 – 7 अगस्त 1941) विश्वप्रसिद्ध कवि हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता तनुज ने बांग्ला से अनूदित किया है। तनुज हिंदी कविता की नई पीढ़ी से सम्बद्ध कवि-अनुवादक हैं। उनसे और परिचय और इंद्रधनुष पर उनके पूर्व-प्रकाशित कार्यों के लिए देखें : धूल की तरह बिखरी हुई रहती है स्मृति

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