कथेतर

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समीक्षा :: अरुण श्री “डरा नहीं हूँ मैं हजारों अस्वीकारों से बनी है मेरी काया हजारों बदरंग कूंचियों ने बनायी हैं मेरी तस्वीर हजारों कलमों ने लिखी है एक नज़्म जिसका उनवान है मुस्कराहट और वे मेरी मुस्कुराहटें नहीं छीन सकते” संकलन की प्रतिनिधि कविता में कवि की…

समीक्षा :: ‘तख़्तापलटः तीसरी दुनिया में अमेरिकी दादागिरी’ जाने-माने पत्रकार-इतिहासकार विजय प्रशाद की अंग्रेजी किताब ‘वॉशिंगटन बुलेट्स’…