उस उदासीन महिला के लिए

न से नारी ::
कविता : शार्लट परकिंस गिलमैन
अनुवाद, चयन और प्रस्तुति : सृष्टि

शार्लट अमेरिका से आती हैं. उन्होंने कई कहानियां लिखी है, पर उनकी सबसे ज्यादा लोकप्रिय कहानी है , “दी येलो वॉलपेपर”.   इस कहानी में उन्होंने एक ऐसी महिला के बारे में ज़िक्र किया है जो मानसिक रूप से बीमार है और जिसका पति इस बात से बिल्कुल ही लापरवाह है.  स्त्रीवाद की दुनिया में शार्लट ने एक नए तरह का काम किया और स्त्री के बीमार होने पर किस तरह उसको दरकिनार किया जाता है, इस बात को रेखांकित किया है. ये उनकी आपबीती भी है.


उस
उदासीन महिला के लिए

तुम जो हजारों घरों में खुश हो,
या एक गूंगी शांति के लिए ज्यादा काम कर रही हो,
जिसकी आत्मा पूरी तरह से उस छोटे-से समूह पर केंद्रित है,
जिसे तुम व्यक्तिगत रूप से प्यार करती हो,
किसने कहा तुमसे कि तुमको जानने की और परवाह करने की जरूरत नहीं,
इस दुनिया के पाप और दुःख के बारे में?

क्या तुम्हारा मानना है कि दुनिया के दुःख,
तुम्हारे और तुम्हारे छोटे घरों की समस्या नहीं है?
कि तुम्हें यह कहा गया है तुम्हें खुद का ख्याल भूल जाना है और
मानव विकास और मानव शांति के लिए,
प्यार की शक्ति को बढ़ाने के लिए
परिश्रम करते रहना है?
जब तक तुम्हारी जिंदगी का हर कोना इसी से नहीं भर जाता?

मनुष्य का पहला कर्तव्य होता है,
सच्चाई, ज्ञान और प्यार से दुनिया को आगे बढ़ते रहने को बढ़ावा देना,
और तुम घर में छिपी हुई, इन सबको अनदेखा करती हो
खुश हो इन सब को एक अनिश्चित शान्ति को सौंप कर,
खुश हो हर चीज़ को बिना परवाह किए, छोड़कर,

फिर भी तुम माँ हो! और एक माँ की परवाह,
किसी भी दोस्ताना जिंदगी की ओर पहला कदम होती है-
एक ऐसी जिंदगी जहां सारे देश असीम शान्ति के साथ
इस दुनिया को बेहतर बनाएँ,
और उस खुशी को, जो हम घरों में खोजते हैं,
एक मजबूत और फलदायी प्रेम के साथ उसे हर जगह फैलाएं.

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सृष्टि कवि हैं और उनसे shristithakur7@gmail.com पर बात हो सकती है. इन्द्रधनुष के साप्ताहिक स्तम्भ ‘न से नारी’ के अंतर्गत स्त्री-विमर्श के प्रमुख हस्ताक्षरों के रचना-संसार से हम आपका निरन्तर साक्षात्कार करवा रहे हैं.  इस स्तम्भ की अन्य प्रस्तुतियों के लिए यहाँ देखें : न से नारी

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इन्द्रधनुष

जब समय और समाज इस तरह होते जाएँ, जैसे अभी हैं तो साहित्य ज़रूरी दवा है. इंद्रधनुष इस विस्तृत मरुस्थल में थोड़ी जगह हरी कर पाए, बचा पाए, नई बना पाए, इतनी ही आकांक्षा है.

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