कविताएँ::
मेरिलिन हैकर
अनुवाद, चयन एवं प्रस्तुति: अमित तिवारी

अमरीकी कवयित्री मेरिलिन हैकर का जन्म 27 नवंबर 1942 को न्यूयॉर्क के एक यहूदी परिवार में हुआ था। पढ़ाई के बाद 1970 में वे लन्दन चली गयीं और बुक डीलर के तौर पर काम शुरू किया। 1974 में उनका पहला कविता संग्रह प्रेज़ेंटेशन पीस छपा जिसको कई पुरस्कार मिले। हैकर ने प्रेम की तात्कालिक ज़रूरत, तृष्णाओं विलगाव आदि पर समकालीन, अनौपचारिक भाषा में पर स्थापित विधाओं में एक स्त्रीवादी, एक समलैंगिक और एक कैंसर पीड़ित के नज़रिये से ख़ूब लिखा। उन्हें पुरुषों द्वारा स्थापित तरीकों के उलट लिखने की वजह से भी जाना गया। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि “वह भाषा जो हम इस्तेमाल करते हैं वह महिलाओं द्वारा भी उतनी ही बनायी गयी है जितनी पुरुषों द्वारा।” उन्होंने ग़ज़ल समेत दुनिया भर की कई काव्य-विधाओं का अध्ययन किया और उनमें लिखा भी। वे 50 से भी अधिक सालों तक लिखती रहीं और आलोचना, संपादन और अनुवादों के लिए भी ख़ूब सराही गयीं। अभी वे पेरिस में रहती हैं।

 

मैं तुम्हें और अधिक चाहने लगी

“तुमने कहा, मुझे कम चाहो और मैं तुम्हें और अधिक चाहने लगी
और तबसे यह जानकर मैं सदमे में हूँ
कि मुझे अब भी किसी की ज़रूरत पड़ रही है।
मुझे आदत थी अकेले रहने की आदत की
ये मैं नहीं हो सकती थी
जो बाहर साढ़े चार बजे तक जूते घिसे
जब तुम बिस्तर में पड़े रहो
और अपनी ज़रूरतों के साथ दरवाज़ा खोलने को तैयार।
उन दिनों तुम मुझे अधिक चाहते थे।
मैं रही तुम्हारी ज़रूरतों के हिसाब से
मैं उस कमरे में अकेले जागी जो तब तक था भी नहीं तुम्हारा कमरा
लेकिन जहाँ बिखरी पड़ी थीं तुम्हारी चीज़ें
तुम्हारा गिटार, जूते, कॉपियाँ, मोज़े, मेरी पतलूनों में उलझे तुम्हारे पजामे
आधी दुनिया मेरी छत के नीचे बिस्तरों पर आ कर सो रही थी
और मुझे थी अपने बिस्तर पर एक छत की इच्छा
ताकि उसे खींच कर दुबक सकूँ उसमें
जब-जब परित्यक्त, अभिशप्त महसूस हो
तुम्हें इतना अधिक चाहने पर।”

आर्क डि ट्रिऑम्फ़ के नीचे: 17 अक्टूबर

“फ़्रांसिसी घड़ी ने ढाई बजाए
और हमने देखा
जुलूसों से पटे शरत्कालीन पेरिस के ऊपर
चौंधिया देने वाले आसमान में सितारे टँके हुए थे।
तुमने उसके बाद उधर एकटक नहीं देखा।
मैंने भी नहीं।
बाद में उसी दिन शाम को, एक बेहद ठण्डे बिस्तर में
मैं सोती रही
उन समुद्रों की थकान से भरकर जिनमें मैं न तैर सकी
कैले शहर के उन तटों के पत्थरों से ठोकर खाई हुई, जहाँ मैं नहीं गयी
और उन हवाओं का सपना नहीं देखा जिनमें मैं नहीं उड़ी
और देर होने की वजह से, शहर में हाँफते हुए दौड़ने के दौरान
न गिरी और न नींद टूटी
और अगर हम वहां देखने के लिए मौज़ूद होते
तो वे पक्षी जो उस दोपहर वहां से उड़े
वे भी गोता लगाते हुए आसमान से नीचे नहीं आते।

उस दिन कुछ भी नहीं हुआ
मुझे नहीं पता मैंने किसके साथ दिन बिताया
या मैंने क्या सोचा
मैं अकेले सोयी और अकेले जागी।”

क्या साफ़ो ने ये नहीं कहा था कि उसके पेट में ऐसे ही मरोड़ें उठती थीं?

“क्या साफ़ो* ने ये नहीं कहा था कि उसके पेट में ऐसे ही मरोड़ें उठती थीं
नीचे से एक चेहरे के अचानक नमूदार होने से पहले
उसकी आँखें पनिया गयीं और घुटने ढीले हो गये
क्या उसकी छाती में फिर दूध उतर आया था, एक लड़की के चूमने से?
ऐसी घटनाओं से फूट पड़ती हैं उसके भीतर ज़ब्त धारायें
और हम दोनों में उठती है एक इच्छा नहीं बल्कि ज़रूरत
कि मालॉक्स* और काओपेक्टेन* का एक-एक पाइंट पी लिया जाय
मेरी आँखों में और जाँघों के बीच हमेशा सूजन रहती है
मेरा बिस्तर बस एक दलदल है जिसमें बेसुध लुढ़का जा सकता है
जहाँ मैं हो रही हूँ बारी-बारी से प्रदीप्त, चेतनाशून्य और निंद्राहीन
हालांकि तुम्हारे स्तनों को छूने भर से ही मेरी जींस भींग जाती है,
पर प्रियतम, यह लिप्सा नहीं है
यह वह बाकी सब है
जो मैं तुम्हारे साथ चाहती हूँ और जिनका भय मुझे थरथरा देता है।”

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*साफ़ो लेस्बोस द्वीप की एक पुरातन यूनानी कवि थी।
आज भी Sappho की कविता को असाधारण माना जाता है, और उसके काम ने अन्य लेखकों को आज तक प्रभावित करना जारी रखा है।
अकादमिक हलकों के बाहर, उसका शायद एक ही सेक्स के लिए इच्छा के एक प्रतीक के रूप में, विशेष रूप से महिलाओं के बीच सब से अधिक जाना जाता है।
आज, साफ़ो महिला समलैंगिकता का प्रतीक है और आम शब्द लेस्बियन, साफ़ो से जुड़ा हुआ है क्योंकि वो लेस्बोस द्वीप की थी।

**मालॉक्स और काओपेक्टेन: पेट के दर्द, ऐंठन और जलन की दवा

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