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कब्ज़ा कर लिया गया मकान

कहानी :: जुलिओ कोर्टाज़ार अंग्रेजी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह कब्ज़ा कर लिया गया मकान हमें मकान पसंद था, पुराना और काफी खुला होने के अतिरिक्त (ऐसे समय में जब पुराने मकान उन की विनिर्माण सामग्रियों की लाभदायक नीलामी की वजह से गिराए जा रहे थे), इसमें हमारे परदादाओं, दादा-दादी, माता पिता और स्वयं हमारे समूचे बचपन की स्मृतियाँ सुरक्षित थीं। इरेन और मुझे वहाँ अकेले रहने की आदत पड़ गयी थी, जो कि बड़ा अजीब...

सकीना की चूड़ियाँ

कहानी :: ज़ोहरा सईद अनुवाद : श्रीविलास सिंह सकीना की चूड़ियाँ जब मैं दस साल की थी, मेरी ही उम्र की मेरी एक सहेली थी जिसका नाम सकीना था। जब हम मित्र थे, उस समय मेरे परिवार में छः बेटियाँ थीं। तब तक मेरे दोनों छोटे भाई पैदा नहीं हुए थे। सकीना सात बड़े और विवाहित बेटों के बाद की एक मात्र बेटी थी। वह हमारे घर के ठीक सामने रहती थी किन्तु उसके पिता बहुत सख़्त थे इसलिए उसे घर से बाहर लम्बे समय तक खेलने की...

तूतनखामेन तुम्हारी नब्ज़….किस कलाई में चल रही है!!

कहानी :: अनघ शर्मा तूतनखामेन तुम्हारी नब्ज़….किस कलाई में चल रही है!! 1 धांय से गोली छूटती है और चीथड़े हवा में बिखर जाते हैं…….. परिंदे घबरा के चुप हो जाते हैं.  फिर जब उनके हवास कायम होते हैं तो उन्हें पता चलता है कि कुछ साथी उनका साथ छोड़ कर चले गये हैं.  दो घड़ी सहमी हुई हवा रुक के ज़मीन पर गिरे हुए उन परिंदों को देखती है. उन्नीस बरस कितनी नाज़ुक उम्र होती है……ऐसी उम्र...

स्वप्न बुक

गद्य:: सौरभ पांडेय स्वप्न बुक “एक पक्षी के मरने पर कितने आसमान समाप्त हो जाते हैं” – नवारुण भट्टाचार्य सारी ध्वनियां दृश्य में रही हैं। मैं उन दृश्यों से भयभीत, उन्हें एक स्वप्न की तरह नोट कर रहा हूं। स्वप्न मुझे हाइड्रोफोबिया है। मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरे आस पास की सारी चीजें, मेरे सारे खयाल, मेरे सारे अहसास जाने क्यूं किसी नदी में तैरने को बेचैन हैं।मैं पुल के एक छोर पर खड़ा...

एक पुरानी पाण्डुलिपि

कहानी :: फ्रांज़ काफ़्का हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह  ऐसा लगता है कि हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था में बहुत बातों की अनदेखी की गयी है। अभी के पहले तक इस बात के प्रति हम स्वयं कभी चिंतित नहीं हुए थे और अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त थे; लेकिन उन बातों ने, जो हाल में घटित हो रहीं थीं, हमें परेशान करना शुरू कर दिया है। सम्राट के महल के सामने स्थित चौराहे पर मेरी जूते गांठने की दूकान है। अभी भोर की...

उदासी एक मंजर है

कहानी :: अविनाश पीड़ा का एक शाश्वत सिद्धांत है कि उसकी तय समय-सीमा होती है, जिसके बाद वह निर्जीव हो जाती है. बड़ी से बड़ी दुर्घटना के बाद भी आपके पास स्मृति के कुछ छींटे रहते हैं जिनके साथ आप सांस ले रहे होते हैं, घर के काम कर रहे होते हैं, जीवन जी रहे होते हैं. मुझे अपने पिता की मृत्यु का दिन याद है, मैं दुखी था. जीवन में पहली मर्तबा कुछ स्वाभाविक था. पिता के मामले में चीज़ें इतनी आसान नहीं होती थीं...

स्केच

कहानी :: सौरभ पाण्डेय 1 मैं पेंसिल की लकीरों में छुपा हुआ पापा का पुराना चेहरा देख रहा था. अब पापा का चेहरा बहुत बदल गया है. मेरी उनसे कभी कोई खास घनिष्ठता नहीं रही, वजह कुछ खास नहीं, शायद ईडिपस कॉम्प्लेक्स भी हो सकता है. असल में उन्हें बिल्कुल सादा जीवन पसंद है. बिल्कुल सादा जीवन जीना मुझे चौबीसों घंटे कैमरे की नजर में रहने जैसा लगता है. मैं जब से पापा को देख रहा हूँ, वो उसी कैमरे की नजर में हैं...

घृणा

कहानी :: परवीन फैज़ जादा मलाल अनुवाद और प्रस्तुति : श्रीविलास सिंह “यह पूरे चार किलो है।” जब उसने ये शब्द सुने, उसके होंठो पर एक मुस्कराहट फैल गयी और उसने अपने छोटे से बेटे की ओर देखा….. दुकानदार ने बात जारी रखी : “बहन ये रुपये लो….पूरे आठ रुपये हैं।” उसने अपनी चादर से अपना हाथ बाहर निकाला और दुकानदार से रुपये ले लिए। अपराह्न की धूप में वह तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ी। वह...

रिश्ते

कहानी  :: श्रीविलास सिंह सड़क दूर-दूर तक सुनसान थी। किसी आदमी का कहीं कोई नामो-निशान नहीं। सन्नाटा बिलकुल तने हुए तार की भांति, हल्की-सी चोट पड़ते ही चीख पड़ने को आतुर था। कहीं कोई चिड़िया, कोई जीव भी नहीं, कोई आवाज़ नहीं। जैसे सब कुछ स्तब्ध हो अभी कल परसों ही गुज़रे हादसे से। कभी-कभार कोई कुत्ता ज़रूर दिख जाता था। पर वह भी सारे वातावरण की तरह सहमा हुआ-सा ही लगता। आतंक और भय हवा में घुला हुआ था। शाम...

पचखा

कहानी :: निशांत पचखा जेठ की सुबह कुछ ऐसी होती थी कि पूरा गाँव एकसाथ जागकर अपनी-अपनी ड्योढ़ी पर आ खड़ा होता था। पूरब दिशा में सूर्य जब तक अपनी पूरी लालिमा बिखेरता उसके पहले ही गाँव के सभी लोग जाग जाते थे। औरतें सबसे पहले जागती थीं। औरतों का जागना समूचे गाँव को संगीत की ध्वनि से भर देता था। कितने ही सुर एक-दूसरे से टकराकर रोज ही अनंत में खो जाते थे। हर घर से अलग-अलग आवाज़ें आती थीं। हर घर की औरतें...