कविता-भित्ति :: जयशंकर प्रसाद जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 – 15 नवम्बर 1937) समादृत कवि-कहानीकार-नाटककार हैं। प्रसाद छायावाद के आधार स्तम्भों में से एक हैं। ‘उर्वशी’, ‘झरना’, ‘चित्राधार’, ‘आँसू’, ‘लहर’, ‘कानन-कुसुम’, ‘करुणालय’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘कामायनी’, ‘वन मिलन’…

Continue Reading

गजानन माधव मुक्तिबोध के कुछ उद्धरण :: तथ्य का अनादर करना, छुपाना, उससे परहेज करके दिमागी तलघर में डाल देना न केवल गलत है, वरन् उससे कई मानसिक उलझनें होती हैं। • मुझे लगता कि मन एक रहस्यमय लोक है।…

Continue Reading

कविताएँ :: ज्योति रीता कहानी की नायिका दुनिया के किसी भी कैलेंडर में औरतों के लिए छुट्टी शब्द दर्ज़ नहीं था अपने शौक़ को जीने वाली औरतें महान थीं नीम अंधेरी रात में जला आती थीं दीया इतिहास में दर्ज़…

Continue Reading

नए पत्ते :: कविताएँ: सत्यव्रत रजक भूखे बच्चे का कथन है एक परछाईं रोटियों पर उभर रही है गिट्टी डालते मजूर के बच्चे से टकराती है तमाचे की तरह बच्चा चिल्लाता है : “भूख चुप रहने की क्रिया नहीं है…

Continue Reading

लेख :: उमर “लाखों लोग पलक झपकते ही अपनी रोज़ी-रोटी खो देंगे चूल्हों में आग नहीं होगी और तवा उलटा रखा होगा” यह पंक्तियाँ ही आज की हक़ीक़त हैं। यही सच है जो लगातार और भयावह होता जा रहा है।…

Continue Reading