लेख :: उमर “लाखों लोग पलक झपकते ही अपनी रोज़ी-रोटी खो देंगे चूल्हों में आग नहीं होगी और तवा उलटा रखा होगा” यह पंक्तियाँ ही आज की हक़ीक़त हैं। यही सच है जो लगातार और भयावह होता जा रहा है।…
लेख :: मधुरिमा सीवान की धरती पर बहती घाघरा और गंडक, ये सिर्फ़ नदियाँ नहीं, इस दोआबा के अनगिनत सोतों से फूट कर अग्निलीक की धारा बनी है। आर्थिक, सामाजिक परिदृश्य में लोकजीवन की शीतलता और जेठ की दुपहरिया में…
लेख :: संजय कुंदन प्रस्तुत लेख, सौमित्र मोहन की सम्पूर्ण कविताओं के संग्रह ‘आधा दिखता वह आदमी’ के प्रकाशन के तुरंत बाद एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। यह लेख न सिर्फ़ सौमित्र मोहन की कविताओं के विभिन्न पहलुओं को…
नए पत्ते:: कविताएँ: मनीष यादव 1. धान के ओसौनी से भरे जिस माथे में ललक थी कभी अफसर बनने की वह व्यस्त है आजकल भात और मन दोनों को सिझाने में! उसने तो नहीं कहा था— बावन बीघा वाले से…
नए पत्ते:: कविताएँ: राज भूमि मिट्टी का घड़ा ये उस वक़्त की बात है, जब गीली मिट्टी, घड़े का आकार ले रही थी। बारिश के आगे-आगे दौड़ते हुए घर पहुंचना, किसी मैराथन से कम नहीं था। और कोयल की कूक…
