निज़ार क़ब्बानी की कविताएँ :: अनुवाद और प्रस्तुति : अंचित 1. अपनी पोशाक उतारो। सदियों से कोई करिश्मा हुआ ही नहीं। मैं ख़ामोश हूँ और तुम्हारा जिस्म सारी ज़बानें जानता है। 2.
 मैं कितना बदल गया हूँ। एक वक्त मैं…

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